कोविड महामारी के दौरान शिक्षा पर टेक्नोलॉजी का प्रभाव, अच्छा रहा या गलत?

छात्रों, शिक्षकों, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं ने हाल ही में तमिलनाडु के अनईकट्टी में शिक्षा पर हुए राष्ट्रीय सम्मेलन में कक्षाओं में टेक्नॉलॉजी के प्रभाव पर चर्चा की।

Pankaja SrinivasanPankaja Srinivasan   31 May 2022 10:44 AM GMT

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कोविड महामारी के दौरान शिक्षा पर टेक्नोलॉजी का प्रभाव, अच्छा रहा या गलत?

छात्रों, शिक्षकों, नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, एजेंसियां जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकारों के साथ काम किया है और मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों ने सीखने के परिणामों पर टेक्नॉलॉजी के प्रभाव या इसकी कमी पर चर्चा की। सभी फोटो: अरेंजमेंट

अनईकट्टी (तमिलनाडु)। कोविड महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन की चुनौतियों ने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को सीखने और सिखाने के तरीके में कुछ नया करने और फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया। 27 और 28 मई को तमिलनाडु के एक गाँव अनईकट्टी में राष्ट्रीय शिक्षा पर दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें शिक्षा में टेक्नोलॉजी पर ध्यान केंद्रित किया गया, जबकि टेक्नोलॉजी ने महामारी के दौरान सीखने और सिखाने में मदद की, साथ ही बहुत बड़े डिजिटल गैप को भी उजागर किया गया। दूरदराज और ग्रामीण इलाकों में, बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी और स्मार्ट उपकरणों तक पहुंच में कमी की वजह से सीखने और सिखाने में काफी नुकसान हुआ।

छात्रों, शिक्षकों, नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, एजेंसियां जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकारों के साथ काम किया है और मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों ने सीखने के परिणामों पर टेक्नॉलॉजी के प्रभाव या इसकी कमी पर चर्चा की।

बेयरफुट फिलॉसॉफर्स, एक संगठन जो भारत में दार्शनिक बातचीत के लिए एक खुला हुआ मंच प्रदान करता है, के संस्थापक सुंदर सरुक्काई ने मुख्य भाषण दिया। सरुक्काई इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बैंगलोर में सेंटर फॉर सोसाइटी एंड पॉलिसी में विजिटिंग फैकल्टी हैं और बच्चों के लिए फिलॉसफी: थिंकिंग रीडिंग एंड राइटिंग सहित कई किताबों के लेखक हैं।

उन्होंने सम्मेलन के लिए स्वर निर्धारित किया और ऑनलाइन सीखने की सीमाओं की तरफ इशारा किया कि जब तक बुनियादी ढांचे में कोई समस्या न हो। उन्होंने कहा कि जबकि टेक्नालॉजी को दूर नहीं किया जा सकता है। सोचने रचनात्मक होने के बुनियादी अमल की तरफ वापस जाना जरूरी है। उन्होंने मनुष्यों के लिए प्रौद्योगिकी के नियंत्रण की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके विपरीत कोई मशवरा नहीं दिया।

सम्मेलन की आयोजक और अन्नाईकट्टी में आदिवासी समुदायों के बच्चों के लिए एक स्कूल विद्या वनम की निदेशक प्रेमा रंगाचारी ने उम्मीद जताई कि शिक्षा पर सार्थक बातचीत होगी। उन्होंने कहा, "मंच पर और बाहर इन वार्तालापों से शिक्षकों को एक-दूसरे से सीखने, अपने विचारों को प्रसारित करने और लर्निंग को अपने-अपने वातावरण में वापस ले जाने में मदद करनी चाहिए।"


सम्मेलन का फोकस शिक्षा में टेक्नोलॉजी पर था, क्योंकि यह समझना जरूरी था कि लोग समस्याओं से कैसे निपटते हैं। रंगाचारी ने गाँव कनेक्शन से बताया, "मुझे उम्मीद है कि सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले, चाहे वे छात्र हों, शिक्षक हों या प्रभावशाली व्यक्ति, यहां से उन विचारों को वापस लेंगे जो उनके संघर्ष को कम कर दें।"

सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत शिक्षा में डिजिटल डिवाइस पर चर्चा के साथ हुई। अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय बैंगलोर, जो शिक्षा, कानून और नीति के केंद्र का भी नेतृत्व करता है, के स्कूल ऑफ एजुकेशन में एसोसिएट प्रोफेसर बीएस ऋषिकेश और रीच टू टीच, एक संगठन जो राज्य सरकारों के साथ शिक्षण और लर्निंग को मजबूत करने के लिए साझेदारी करता है से सुदर्शन श्रीनिवासन ने प्रणालीगत हस्तक्षेपों के माध्यम से परिणाम, टेक्नॉलॉजी के उपयोग की बात की, कि यह कैसे अलग हो सकती है और बच्चों की सामाजिक आर्थिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि के साथ हमदर्दी रखना कैसे अहम है।

दोनों वक्ताओं ने शिक्षकों को सुने जाने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने माता-पिता, अन्य प्रभावशाली लोगों समेत समुदाय को मजबूत बनाने और टेक्नोलॉजी के उपयोग को समझने की प्रक्रिया में शामिल करने की आवश्यकता की तरफ भी इशारा किया।

ऋषिकेश, जिन्होंने कस्तूरीरंगन समिति के साथ काम किया है, जिन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2019 का मसौदा लिखा है, ने कहा कि यह अंदाजा करना अहम था कि क्या तकनीक हकीकत में सीखने के परिणामों की यात्रा में सहायता कर रही थी। उन्होंने कहा,"टेक्नॉलॉजी का उपयोग करते हुए शिक्षक एजेंसी स्थापित करना बहुत जरूरी है। टेक्नॉलॉजी सहायक होनी चाहिए न कि शिक्षक की जगह पर होनी चाहिए।"

श्रीनिवासन, जो टीच फॉर इंडिया फेलो भी रहे हैं और सरकारी स्कूलों में शिक्षा परियोजनाओं पर सिक्किम के संसद सदस्य के साथ काम कर चुके हैं, ने बताया, "ऑनलाइन शिक्षण एक अलग अनुभव हो सकता है। जबकि प्रौद्योगिकी शिक्षकों को मदद कर सकती है, यह उनकी जगह नहीं ले सकती और नहीं लेना चाहिए।"

वेंडरबिल्ट मेडिकल सेंटर, टेनेसी, यूएसए के न्यूरोसाइंटिस्ट श्री राम सुब्रमण्यम, चेन्नई से मनोचिकित्सक सलाहकार एस मोहन राज और कोयंबटूर में कोवई मेडिकल सेंटर के क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक कार्तिकायनी मुरुगन ने मानसिक स्वास्थ्य पर ऑनलाइन शिक्षा के असर पर चर्चा की।


सुब्रमण्यम ने मानव मस्तिष्क के काम करने और बच्चों के विकास के लिए सामाजिक संपर्क और मानवीय हस्तक्षेप के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि अनियंत्रित और बिना निगरानी वाले स्क्रीन समय का उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। डॉक्टर मोहन राज और कार्तिकायनी ने पिछले दो सालों में महामारी के दौरान ऑनलाइन शिक्षा के तत्काल असर के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि इसने युवाओं को हमदर्द होने से दूर कर दिया। और साथ ही साथ पराजय और निराशा को अपने कदमों में ले लिया। उन्होंने यह भी कहा कि ऑनलाइन शिक्षा एक बच्चे के मुकम्मल विकास के लिए हानिकारक है।

सरकारी स्कूलों से लेकर पब्लिक स्कूलों के शिक्षकों का एक बढ़िया पैनल में, रानीपेट के वेदवल्ली विद्यालय से नवनीतम, कोयंबटूर के युवा भारती पब्लिक स्कूल लता जयरामन, सरकारी जनजातीय आवासीय हाई स्कूल से उमा देवी, अन्नाईकट्टी, जे रुबिन मर्सी और आर गौरी शंकर विद्या वनम से, अपने अनुभव पर चर्चा की। जबकि वह वे इस बात से सहमत थे कि टेक्नोलॉजी ने उन्हें महामारी के दौरान अपने छात्रों के साथ संपर्क में रहने में मदद की, लेकिन यह उम्मीदों से बहुत कम रहा। और, कई शिक्षकों के लिए, टेक्नोलॉजी का उपयोग करने के लिए मजबूर किया जाना निराशाजनक और वास्तविक संघर्ष था।

मैंगो एजुकेशन, कोयंबटूर में स्थित बच्चों के लिए स्कूल के बाद की मौलिक विज्ञान की एक कम्युनिटी है के सह-संस्थापक एस अर्मुघम, ने गांव कनेक्शन को बताया कि सम्मेलन तरक्की कर रहा है।

उन्होंने कहा, "शिक्षकों की बात सुनकर मुझे एहसास हुआ कि एक समाज के तौर पर हम उनके प्रति कितने असंवेदनशील हैं।" अर्मुघम ने स्कूल इनिशिएटिव फॉर मेंटल हेल्थ एडवोकेसी - टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (SIMHA-TISS) द्वारा "क्रिएटिंग इंटरैक्टिव ऑनलाइन कम्युनिटी" सम्मेलन में एक कार्यशाला में भी भाग लिया। "कार्यशाला ने हमें इस बारे में सोचने पर मजबूर किया कि समुदाय की भावना का क्या अर्थ है। जिस तरह एक पारंपरिक समुदाय भावनात्मक समर्थन, अपनापन और साझा करने की पेशकश करता है, उसी तरह ऑनलाइन कम्युनिटी को भी करना चाहिए," अर्मुघम ने कहा। कनक कटारिया, एक क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक और सिम्हा के प्रोजेक्ट मैनेजर और सिम्हा के एक मनोचिकित्सक और वरिष्ठ सलाहकार लामिया बगसरावाला ने कार्यशाला का नेतृत्व किया।

विष्णु थोजुर कोल्लेरी, कलाकार/वास्तुकार और शिक्षक और सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी में विजिटिंग प्रोफेसर, कॉलेब्रेटिव डिजाइन स्टूडियो और अहमदाबाद में क्ले क्लब के संस्थापक सदस्य ने "टीचिंग आर्ट ऑनलाइन" कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें पच्चीस शिक्षकों ने भाग लिया। विद्या वनम के गणित और पर्यावरण स्टडीज के शिक्षक गोमती आर ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमने सीखा कि कैसे आर्ट शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए चिकित्सीय हो सकती है।"

रूबी मर्सी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "कला कक्षा में अंतर्मुखी बच्चे को आकर्षित करने का एक शानदार तरीका है।" यह हाथ और आंखों के तालमेल का एक पाठ भी था और लगभग एक ध्यानपूर्ण अनुभव था, जैसा कि विद्या वनम के अंग्रेजी शिक्षक ने बताया।

विद्या वनम की प्रिंसिपल टीएम श्रीकांत, ने 12वीं कक्षा के छात्रों एम प्रियंका, पूजा महेश, सत्य श्री और केआर सुधारा के साथ एक सत्र का संचालन किया, जिन्होंने सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों का प्रतिनिधित्व किया। कुछ छात्रों ने खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों ने कहा स्मार्ट डिवाइस की कमी चिंता का सबब बनी, क्योंकि उन्हें जो पढ़ाया जा रहा था उसे बाकी रखने का कोई तरीका नहीं था। दूसरों के लिए, यह कैमरे पर दिखने का दबाव था।

छात्रों में से एक ने कहा, "सहपाठियों द्वारा स्क्रीनशॉट लिए गए और गलत कैप्शन के साथ साझा किया गया।" उन्होंने यह भी महसूस किया कि उन्हें 'कैद में' रखने के लिए शिक्षकों ने उन्हें होम वर्क में डुबो दिया है, जिसका मतलब स्क्रीन के सामने लंबा समय बिताना था। उन्होंने कहा, "हम अपने दोस्तों के साथ रहने और अपने शिक्षकों पर आमने-सामने विश्वास विश्वास करना छोड़ दिया।"

अंग्रेजी में पढ़ें

अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी

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