ग्रामीण विकास की हकीकत: बंद कमरों में होती है खुली बैठक

पंचायतीराज व्यवस्था के तहत ग्राम पंचायत स्तर पर खुली बैठक कर विकास कार्यो को बेहतर ढंग से पारदर्शिता के साथ कराए जाने का नियम है, लेकिन खुली बैठक के बजाय अधिकतर फैसले बंद कमरों में चंद लोगों की मौजूदगी में ही लिए जाते हैं। गाँव वालों को तो इसकी भनक भी नहीं लग पाती।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   30 Jun 2018 5:26 AM GMT

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ग्रामीण विकास की हकीकत: बंद कमरों में होती है खुली बैठक

लखनऊ। गाँवों के विकास कार्यों की प्राथमिकता और पारदर्शिता के लिए ग्रामीणों के बीच खुली बैठक कर के गाँव के विकास के फैसले लेने का नियम तो है, लेकिन आसलियत में ये बैठकें सिर्फ कागजों पर ही हो रही हैं। ग्रामीण विकास के लिहाज से अहम इन खुली बैठकों की हकीकत जानने के लिए 'गाँव कनेक्शन' ने एक विशेष सीरीज ' नागरिकों का रिपोर्ट कार्ड' के तहत उत्तर प्रदेश के कई गाँवों में जाकर और बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में फोन पर ग्रामीणों से इस संबंध में जानकारी ली तो गाँवों की किस्मत बदलने वाली ये खुली बैठकें कागजी ही साबित हुईं।

"जब से होश संभाला है गाँव में कोई खुली बैठक नहीं हुई। पता नहीं कैसे प्रधान और अधिकारी कार्ययोजना तैयार कर पैसा स्वीकृत करा लेते हैं। ग्रामीणों की राय और उनकी स्थिति को सुधारने वाला कोई नहीं है। सब राम भरोसे चल रहा है," ये बताते हुए उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की तहसील में मझगवां गाँव निवासी हिमांशु कुमार (32 वर्ष) के शब्दों में निराशा साफ झलकी।

पंचायतीराज व्यवस्था के तहत ग्राम पंचायत स्तर पर खुली बैठक कर विकास कार्यो को बेहतर ढंग से पारदर्शिता के साथ कराए जाने का नियम है, लेकिन खुली बैठक के बजाय अधिकतर फैसले बंद कमरों में चंद लोगों की मौजूदगी में ही लिए जाते हैं। गाँव वालों को तो इसकी भनक भी नहीं लग पाती।

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बिहार के गया जिला के इमामगंज ब्लॉक निवासी उपेंद्र सिंह ( 55 वर्ष) ने फोन पर बताया, "हमारे गाँव में कभी भी आम बैठक नहीं की जाती। प्रधान अपने मन से कार्ययोजना तैयार कर आगे बढ़ा देते हैं। गाँव के लोगों की कोई सुनने वाला नहीं।"

नियमानुसार ग्राम सभा की बैठक साल में दो बार (रबी और खरीब फसल की कटाई के बाद) होनी चाहिए। बैठक की सूचना 15 दिन पहले सदस्यों को नोटिस से देनी होती है। बैठक को बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को है, वह किसी भी समय असामान्य बैठक बुला सकता है।

इस बारे में बिहार के सीवान जिले के गाँव डरैली मठिया निवासी राजाराम भगत पूरे सिस्टम पर को कटघरे में खड़े करते हुए कहा, "हमें ग्राम सभा की बैठक जैसी कोई सूचना तक नहीं होती। वार्ड सदस्य तक को खबर नहीं होती, ग्रामीणों के बैठक में आने की बात तो बहुत दूर की बात है। बैठक बस कागजों में हो जाती है।"

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देशभर में कुल 2.5 लाख ग्राम पंचायतें हैं, इनमें से सबसे अधिक 57 हजार ग्राम पंचायतें उत्तर प्रदेश में हैं। लेकिन ग्रामीण विकास मंत्रालय की रैंकिंग में टॉप टेन में यूपी की एक भी ग्राम पंचायत नहीं है। यह रैँकिंग गाँव में कराए गए विकास कार्यों और पंचायत की कार्यशैली के हिसाब से तय की जाती है।

राजस्थान के अलवर जिले के किशोरी गाँव निवासी राहुल (27 वर्ष) के लिए यह खुली बैठक किसी अजूबे से कम नहीं। वह कहते हैं, "खुली बैठक का नियम तो है, लेकिन सरपंच और अधिकारी अकेले में ही बैठक कर लेते हैं। गाँव वालों को बताते तक नहीं।"


इस बारे में नियत यह भी है कि जि़ला पंचायती राज अधिकारी या क्षेत्र पंचायत द्वारा लिखित रूप से मांग करने पर अथवा सदस्यों की मांग पर प्रधान द्वारा 30 दिनों के भीतर बैठक बुलाया जाएगा। यदि प्रधान बैठक आयोजित नहीं करता है, तो बैठक उस तारीख़ से 60 दिनों के भीतर होगी, जिस तारीख़ को प्रधान से बैठक बुलाने की मांग की गई है।

बाराबंकी के जिला पंचायतीराज अधिकारी अनिल कुमार ने बताया, "ग्राम पंचायत की बैठक में खंड स्तरीय अधिकारी, प्रधान, सचिव और सदस्यों का रहना अनिवार्य है। अगर प्रधान इस बैठक का आयोजन नहीं कराते तो गाँव के लोग बीडीओ या सीधे जिलाधिकारी से मामले की शिकायत कर सकते हैं। इसके लिए शपथ पत्र देना पड़ता है।" हालांकि बाराबंकी जिले के गाँवों में ग्राम सभा की खुली बैठकें न होने के सवाल पर उन्होंने फोन काट दिया।

गाँव के विकास के लिए जरूरी इन बैठकों की अहमियत को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी स्मार्ट सिटी की तर्ज़ स्मार्ट गाँव बनाने की बात कही थी। इसके लिए ग्राम सभा की खुली बैठकों को जरूरी बताया था।

इस बारे में बाराबंकी के जिलाधिकारी उदयभान त्रिपाठी ने कहा, "असल समस्या नियमों के क्रियान्वयन की है, लोग अपने अधिकारों को लेकर जागरुक नहीं है, इसके लिए लोगों को दो तहर से जागरुक होना पड़ेगा। एकडमिक रूप से और राजनैतिक रूप से भी। हालांकि हमारे पास जब शिकायत आती है तो हम एक्शन लेते हैं।"

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हर हाल में गाँवों में खुली बैठक होनी चाहिए। खुली बैठक का प्रावधान हर जगह है। अगर किसी गाँव में खुली बैठक नहीं हो रही है तो यह गलत है। मामले की जांच कराकर संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

भूपेन्द्र सिंह चौधरी, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पंचायतीराज विभाग, उत्तर प्रदेश

गोरखपुर के विकास खंड कौड़ीराम के गाँव चाड़ी निवासी संतोष राय (35 वर्ष) ने कहा, "ग्राम पंचायतों से लेकर उच्चस्तरीय तमाम बैठकों में भेदभाव से काम किए जाते हैं। वही काम होते हैं जो कुछ विशेष लोगों की मनमर्जी के होते हैं। जनता को केवल भ्रमित किया जाता है। आम बैठक आम लोगों के लिए होती है, लेकिन इसमें विशेष लोग ही रहते हैं।"

"गाँव की विकास योजना कैसे तैयार होती है, हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। अधिकारियों की मिलीभगत से सारा खेल होता है। सरपंच कभी भी बैठक के बारे में जानकारी नहीं देतीं," मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के जनवार गाँव निवासी लक्ष्मण कुमार कहते हैं।

उधर, हरियाणा के भिवानी जिला निवासी आतिश पुनिया (30 वर्ष ) भी कहते हैं, "प्रधान किसी गाँव के विकास के लिए सबसे अहम व्यक्ति होता है। हमारे गाँव में बहुत समय पहले एक खुली बैठक हुई थी। अब तो प्रधान खुद कार्ययोजना तैयार कर लेते हैं। गाँव वालों की राय क्या है इसकी उन्हें कोई फिक्र नहीं है।"




ग्राम सभा की खुली बैठक में इन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर होती है चर्चा

. ग्राम पंचायत के वार्षिक लेखा-जोखा के बारे में चर्चा के साथ ही पिछले वित्तीय वर्ष के प्रशासनिक प्रतिवेदन पर विचार।

. अगले वित्तीय वर्ष के लिए पंचायत के बजट पर विचार करना।

. पिछले वर्ष के विकास सम्बंधी कार्यों की समीक्षा करना व चालू वित्तीय वर्ष में शुरू किए जाने वाले प्रस्तावित विकास कार्यक्रम पर विचार करना।

. निगरानी समिति की रिपोर्ट पर विस्तार से चर्चा करना।

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