राजस्थानः कोरोनाकाल में बिना चिकित्सा सुविधाओं के कैसे जी रहे डांग क्षेत्र में चंबल किनारे के ग्रामीण ?

Madhav SharmaMadhav Sharma   29 Oct 2020 9:44 AM GMT

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राजस्थानः कोरोनाकाल में बिना चिकित्सा सुविधाओं के कैसे जी रहे डांग क्षेत्र में चंबल किनारे के ग्रामीण ?सोनम देवी की गर्भावस्था का ये आखिरी हफ्ता चल रहा है उनकी डिलीवरी कैसे होगी इस बात को लेकर वो चिंतित हैं. फोटो: माधव शर्मा

धौलपुर (राजस्थान)। राजस्थान के धौलपुर जिले के बीहड़ों से चंबल नदी बहकर निकलती है। डांग क्षेत्र में चंबल नदी के किनारे बसे गांवों के लोग कोरोना जैसी महामारी में भी बिना चिकित्सा सुविधाओं के जीने को मजबूर हैं। इन गांवों में ना तो डॉक्टर हैं और ना ही सरकार की तरफ से महामारी के बीच कोई इंतजाम किए गए हैं। हालात इतने खराब हैं कि अगर किसी को हल्की चोट भी लगती है तो 40 किमी दूर बाड़ी इलाज के लिए जाना पड़ता है। यह स्थिति तब है जब बाड़ी विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा इसी सेवर गांव से आते हैं। गांव के लोगों का कहना है कि विधायक यहां कभी झांकने भी नहीं आए। उनकी तरफ से हम मरें या जीएं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।

इस फर्क को सोनम सिकरवार का डर सही साबित कर रहा है। 25 साल की सोनम 5 साल पहले चंबल के किनारे बसे राजस्थान के सबसे आखिरी गांव सेवर-पालीकी बुद्धपुरा ढाणी में बहु बनकर आई थीं। सोनम दूसरी बार गर्भवती हैं और गर्भावस्था का उनका आखिरी हफ्ता चल रहा है। घर में एक नया सदस्य आने की खुशी से ज्यादा सोनम चिंतित हैं। चिंता इसीलिए है कि गांव में डिलीवरी की कोई व्यवस्था नहीं है और सबसे नजदीकी अस्पताल 40 किमी दूर है। वे बताती हैं, 'मेरे घर में ना तो मोटरसाइकिल है और ना ही हमारी हैसियत किराए पर गाड़ी लेकर जाने की है। एंबुलेंस यहां आती नहीं हैं। समझ नहीं आ रहा कि अगर लेवर पेन शुरू हुआ तो मुझे शुरूआती जरूरी इलाज कौन देगा?'

कोरोनाकाल में चंबल क्षेत्र में गर्भवती महिलाओं को इलाज की हो रही दिक्कत. फोटो: नीतू सिंह

सोनम की सास अंगूरी सैनी भी डरी हुई हैं। अपने डर का कारण बताते हुए कहती हैं, 'इससे पहले गांव में कुछ औरतों की बच्चे होने के दौरान मृत्यु हो चुकी है। क्योंकि उन्हें ले जाने के लिए समय पर किसी वाहन की व्यवस्था नहीं हो सकी। दो साल पहले ही बरसातों के मौसम में गांव की एक औरत को बच्चा होना था। चंबल में बाढ़ आई हुई थी इसीलिए एमपी भी नहीं ले जा सकते थे। अंत में एक ट्रैक्टर से उसे ले जाया गया, लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। '

धौलपुर जिले के डांग क्षेत्र में आने वाले ये गांव गोलारी ग्राम पंचायत में आते हैं। सोने का गुर्जा, बुड़ावली, बाबूपुरा, बुद्धपुरा, पाली, खरेर, बड़ापुरा, करूआ, सेवर जैसे छोटे-छोटे गांव चंबल के बिलकुल किनारे पर बसे हुए हैं। इसी तरह चंबल पार कर मध्यप्रदेश के भी करीब 25 गांवों की स्थिति है।

डॉक्टर का पद खाली, एमपी के झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे हजारों की आबादी

गांव कनेक्शन चंबल के जिन गांवों में पहुंचा वहां सिर्फ सेवर गांव में एक उप-स्वास्थ्य केन्द्र है जो राजीव गांधी केन्द्र की बिल्डिंग में ही चलता है। इसमें कई सालों से डॉक्टर का पद खाली है। एक एएनएम है, लेकिन ग्रामीणों ने बताया कि वो महीने में एक-दो बार ही केन्द्र खोलती हैं। पास ही के सोने का गुर्जा गांव में एक छोटा सा अस्पताल है, लेकिन वहां भी कोई मेडिकल स्टाफ नहीं है।

सेवर गांव में किराने की छोटी सी दुकान चलाने वाले धर्मेंद्र गांव कनेक्शन को बताते हैं कि पूरी दुनिया में कोरोना जैसी महामारी चल रही है, लेकिन हमारे गांव में मार्च से लेकर अब तक स्वास्थ्य विभाग की कोई भी टीम नहीं आई। बच्चों और गर्भवती महिलाओं को समय पर टीके भी नहीं लगे हैं। 18 अक्टूबर को एक मेडिकल टीम आई, लेकिन गांव में रुकी नहीं। इससे पहले जब लॉकडाउन घोषित हुआ था तो कुछ लोग गाड़ी से आए और घरों में रहने की हिदायत देकर चले गए।

इस संबंध में जब गांव कनेक्शन ने धौलपुर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी गोपाल गोयल से बात की तो उन्होंने इस कमी को स्वीकारा। गोपाल गोयल ने कहा, 'डांग क्षेत्र में चंबल के किनारे बसे गांवों में चिकित्सा सेवाओं की कमी है, लेकिन हम अपने संसाधनों में पूरी कोशिश करते हैं कि उन्हें सुविधाएं मिलें। सेवर-पाली गांव में डॉक्टर का पद खाली चल रहा है, लेकिन गोलारी में डॉक्टर है।' बता दें कि गोलारी सेवर-पाली से करीब 15 किमी ऊंचाई पर है, जहां पहुंचने के लिए करीब 40 मिनट का वक्त लगता है। टीकाकरण नहीं होने की बात पर गोयल चेक करवाने की बात कहते हैं।


सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं ना होने के कारण इन गांवों में मध्यप्रदेश के झोलाछाप डॉक्टर इलाज करते हैं। गांव की कुसुमा हमें बताती हैं कि अगर हमारे गांवों में कोई बीमार होता है तो मध्यप्रदेश के मुरैना या सवलगढ़ से झोलाछाप डॉक्टर आते हैं। आने की फीस 500 रुपए है और एक बार में इलाज के नाम पर 1500-2000 रुपए तक लेकर जाते हैं। कई बार तो उनसे केस भी बिगड़े हैं, लेकिन हमारी भी मजबूरी है। वे आगे बताती हैं, 'लॉकडाउन के दौरान स्वास्थ्य विभाग की तरफ से हमें कोई भी देखने नहीं आया, लेकिन हमारे बुलाने पर चंबल पार से झोलाछाप डॉक्टर जरूर आए हैं।'

सेवर गांव के ही अशेन्द्र सिंह परमार ने तीन साल पहले इलाज के अभाव में अपने 18 साल के बेटे को खोया है। वे उस दर्दनाक हादसे को याद करते हुए बताते हैं, '2017 में मेरे बेटे के ऊपर दीवार गिरी थी, जिससे उसके जांघ की हड्डी टूट गई। अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिला। खून ज्यादा बह जाने से रास्ते में ही उसकी मौत हो गई। अगर गांव में कोई पट्टी बांधने वाला भी उस वक्त होता तो मेरा बेटा आज जिंदा होता।'

डांग के विकास के लिए अलग से बोर्ड, लेकिन हालात बदतर

प्रदेश के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी वे जिले जो दस्यु प्रभावित रहे हैं, उनके विकास के लिए सरकार ने 2005-06 में डांग विकास बोर्ड की स्थापना की। इसमें आठ जिलों (भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर, बूंदी, बारां, झालावाड़ और कोटा) की 22 पंचायत समितियों के करीब 2200 गांव हैं। इन गांवों की जनसंख्या 20 लाख है। 2015 से 2020 तक चिन्हित इन गांवों के लिए 300 करोड़ रुपए का फंड बना था। लेकिन सड़क जैसी सुविधाओं को छोड़कर बाकी चीजें इन ग्रामीणों को अब तक नसीब नहीं हुई हैं। राजस्थान के ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2020 तक डांग विकास बोर्ड में तय राशि में से 50 फीसदी ही खर्च हुआ है। 80.94 करोड़ रुपयों में से सरकार ने सिर्फ 42.66 करोड़ रुपए ही खर्च किए हैं। इस राशि से 1575 तरह के काम होने थे, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते सिर्फ 898 काम ही पूरे हो पाए। इन कामों में सड़क, पानी, चिकित्सा, स्वच्छता जैसी बुनियादी काम शामिल हैं।

सुविधाओं की कमी को लेकर जब गांव कनेक्शन ने बाड़ी विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा से बात की तो उन्होंने राजनीतिक बयान देकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। कहा, 'मैं वहां जाकर गांव वालों से बात करूंगा और सभी सुविधाएं उपलब्ध कराऊंगा।' हालांकि वे इस बात का जवाब नहीं दे पाए कि 10 साल से विधायक होने के बाद भी एक डॉक्टर गांव में क्यों नहीं पहुंचा पाए?

   

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