अच्‍छी फसल के लिए उत्तराखंड में मनाया जाता है अनोखा त्‍योहार

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

रॉबिन सिंह चौहान, कम्युनिटी जर्नलिस्‍ट

नैनबाग (उत्तराखंड)। उत्तराखंड में अच्‍छी फसल के लिए लोग अनोखा त्‍योहार मनाते हैं। इसे दुबडी त्योहार कहते हैं, यह अपने आप में अनूठा पर्व है। इसे मनाने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। इसे मैदानी इलाके में बिल्‍कुल अलग तरीके से मनाया जाता है। इसे पहाड़ों का रक्षाबंधन भी कहते हैं।

टिहरी जिले के जौनपुर इलाके के नैनबाग ब्लॉक में मनाया जाने वाला दुबडी त्योहार अपने आप में बेहद अनूठा पर्व है। इस त्योहार को इलाके में आने वाले मौसम में अच्छी फसल के लिए मनाया जाता है। दरअसल, इस दिन गांव की सभी बहने अपने मायके आती हैं और दुबडी के दिन वो अपने भाई की खुशहाली के लिए पूजा करती हैं। हालांकि इसे मनाने का तरीका थोड़ा अलग होता है।

इसे भी पढ़ें- उत्‍तराखंड के किसानों को भा रही कीवी की बागवानी

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में जिस गांव में बालिका का जन्म होता है, उस गांव में ये त्योहार मनाया जाता है। जानकारों की मानें तो दुबडी अलग-अलग फसलों से मिलाकर बनाया जाता है, जिसे खंबे जैसे आकार देकर तैयार किया जाता है। इसमें गांव की फसलों को भरा जाता और बाहर से भांग के पत्तों से लपेटा जाता है। इसको गांव के लोग तैयार करते हैं।


इसके बाद इसे लाकर गांव के मंदिर के आंगन में लगाते हैं। गड्ढा खोदकर इसे वहां पर खड़ा कर दिया जाता है और बाद में इसकी पूजा अर्चना की जाती है। ये आने वाले मौसम में फसल अच्छी होने का प्रतीक होता है और साल की शुरुआत में इस इलाके का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार होता है।

इसे भी पढ़ें- पलायन से टक्कर: विपरीत हालात में उम्मीद जगाते ये नायक

स्‍थानीय निवासी बिट्टू कवि बताते हैं, "जब महिलाएं दुबडी की पूजा कर रही होती हैं, ठीक उस समय गांव के दूसरे कोने में पुरुष नाचते-गाते हैं। इस दौरान पुरुष नाचते गाते गांव के उस पवित्र आंगन की तरफ बढ़ते हैं, जहां दुबडी लगाई गई होती है। दुबडी के चारों तरफ घूम घूमकर ये लोग पारंपरिक नृत्य करते हैं, जिसे रासो कहा जाता है। रासो करते करते अचानक ये सभी दुबडी को गिरा देते हैं। ऐसा माना जाता है इससे वो भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके पीछे पौराणिक मान्यता भी है।"

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.