इस स्कूल में शौचालय में पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे, लाखों स्कूलों में नहीं है ब्लैकबोर्ड, हजारों की बिल्डिंग नहीं

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   4 Aug 2017 6:27 PM GMT

इस स्कूल में शौचालय में पढ़ने को मजबूर हैं बच्चे, लाखों स्कूलों में नहीं है ब्लैकबोर्ड, हजारों की बिल्डिंग नहींनीमच के एक स्कूल का हाल (फोटो साभार :  ANI)

लखनऊ। पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया का नारा चल रहा है... सरकार बार-बार ये बताती है कि ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ें। यूपी में हाईकोर्ट दखल दे चुका है कि अधिकारियों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में जाए लेकिन जिनके बच्चे इन स्कूलों में पढ़ने जाते हैं, वो कुछ और कहानी कहते हैं। सरकारी स्कूलों से आने वाली ख़बरें भी कई सवाल खड़े करती हैं।

बड़े अरमानों से माता-पिता जब अपने बच्चों को स्कूल पढ़ने के लिए भेजते हैं कि पढ़-लिखकर वे उनके सपने पूरे करेंगे, उसी स्कूल में अगर बच्चे को ठीक से बैठने की जगह न मिले वहां वह मन से पढ़ाई कैसे करेगा। कुछ ऐसा ही मामला आया है मध्य प्रदेश के नीमच जिले के एक प्राथमिक विद्यालय से जहां स्कूल के लिए कोई जगह न होने के चलते बच्चे, इस्तेमाल में न लाए जाने वाले शौचालय में बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं। इस स्कूल की कोई बिल्डिंग नहीं है। 2012 में बने इस स्कूल को एक अध्यापक द्वारा चलाया जा रहा है। यह नीमच जिले के मुख्यालय से 35 किमी दूर है।

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न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, 2013 तक यह स्कूल एक किराए के मकान पर चलाया जा रहा था, लेकिन फिलहाल ये कमरा अब उपलब्ध नहीं है। स्कूल के अध्यापक कैलाश चंद्र का दावा है कि वह शौचालय में कक्षा लेने को मजबूर हैं क्योंकि यहां विद्यालय का कोई भवन नहीं है। यह भी सामने आया कि जब बारिश होती है तो यही शौचालय बकरियों के लिए आश्रय घर बन जाता है।

लखनऊ के बक्शी का तालाब का एक प्राथमिक विद्यालय।

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सीमित साधनों की वजह से दूसरे स्कूलों के भवन निर्माण कराना संभव नहीं


एएनआई के मुताबिक मध्य प्रदेश के शिक्षामंत्री विजय शाह ने गुरुवार को कहा कि राज्य में लगभग 1.25 लाख स्कूल हैं और सीमित साधनों की वजह से दूसरे स्कूलों के भवन निर्माण कराना संभव नहीं है इसलिए किराये पर कमरे उपलब्ध कराए जाते हैं।
शाह एएनआई से कहते हैं, ‘इस मामले में अभी किसी तरह की स्कूल बिल्डिंग का निर्माण नहीं कराया गया है। हम इसके लिए कलेक्टर और विभाग से बात करेंगे। हम ये सुनिश्चित करेंगे कि किराए पर जगह मिलने पर किसी तरह की परेशानी न हो। इस तरह शौचालय में कक्षाएं नहीं लगनी चाहिए।’

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वह आगे कहते हैं कि हमने इसके लिए जांच रिपोर्ट भी मांगी है। जब तक स्कूल की खुद की बिल्डिंग तैयार नहीं होती, तब तक उन्हें किराए पर बिल्डिंग उपलब्ध कराई जाए और राज्य सरकार ही इसका खर्चा उठाएगी।

मध्य प्रदेश में 50 हजार शिक्षकों की कमी


वैसे मध्य प्रदेश में यह हाल सिर्फ एक स्कूल का नहीं बल्कि कई सरकारी स्कूलों का कुछ ऐसा ही नजारा है। कहीं बिल्डिंग नहीं है तो कहीं शिक्षकों की भयंकर कमी है। 2016 में संसद में एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें बताया गया कि देश में 1,05,630 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं, जिसमें 17,874 स्कूलों के साथ मध्यप्रदेश सबसे निचली पायदान पर है। आलम ये है कि मध्यप्रदेश में लगभग 50,000 शिक्षकों की कमी है।

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और भी स्कूलों में है खस्ता हालत


कुछ समय पहले न्यूज चैनल एनडीटीवी की टीम ने मध्य प्रदेश के स्कूलों की पड़ताल की जिसमें कहीं शिक्षकों की कमी है तो कहीं विद्यार्थियों के लिए उचित साधन नहीं है-
मध्यप्रदेश के शाजापुर के उकावता में 2005 में स्कूल बना, 12 साल में ही इमारत की छत टपकने लगी, ज़मीन धंस गई, नींव भी दरकने की खबर है। उकावता से ही 20 किलोमीटर दूर पनवाड़ी स्थित कन्या विद्यालय में एक ही कैंपस में प्राइमरी, मिडिल, हाई स्कूल सबकुछ चलता है। यहां भी 107 बच्चियों पर दो शिक्षिकाएं हैं।
शासकीय विद्यालय सोमवारिया में स्कूल की बिल्डिंग के कुछ कमरे बांस-बल्लियों पर टिके हैं। तीन क्लास के लिए तीन शिक्षक हैं। एक कमरा दफ्तर भी, मिड डे मील के लिए रसोई भी, बच्चों की पढ़ाई भी यहीं होती है।

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एनआइइपीए (राष्ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्वविद्यालय) के आंकड़ो‍ं के अनुसार,

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजूकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन एनआइइपीए के मुताबिक देश में 42 हजार स्कूलों के पास अपने भवन नहीं।

  • एक लाख से ज्यादा स्कूल ऐसे जिनके पास भवन के नाम पर एक कक्षा ।
  • मध्य प्रदेश की हालत सबसे खराब। करीब 14 हजार स्कूल भवन विहीन।

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यूपी में भी हाल बुरा

  • यूपी में करीब 11 सौ स्कूल भवन विहीन।
  • 50 हजार स्कूलों में ब्लैक बोर्ड नहीं।
  • यूपी में स्कूलों में एक लाख 77 हजार शिक्षक कार्यरत हैं।
  • यूपी में 42 हजार स्कूलों में एक शिक्षक तैनात हैं जबकि 62 हजार स्कूलों में दो शिक्षक हैं।
  • तीन साल तक स्कूल जाने के बाद 60 फीसद से ज्यादा बच्चे अपना नाम नहीं पढ़ पाते।
  • कक्षा एक में नामांकित बच्चा 50 फीसद बच्चे कक्षा दसवीं तक पहुंचते हैं।
  • यूपी में एक लाख 10 हजार स्कूल में चार लाख 86 हजार से ज्यादा शिक्षकों की जरूरत ।

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