वो भारत की सबसे रईस महिलाओं में शामिल हैं, लेकिन 21 साल से नहीं खरीदी नई साड़ी... वजह जान आप भी कहेंगे वाह
गाँव कनेक्शन 30 July 2017 7:13 PM GMT
नई दिल्ली (भाषा)। किसी रईस महिला का डिजाइनर साड़ी पहनकर इठलाना और उन पर गुमान करना स्वाभाविक है लेकिन सुधा मूर्ति के लिए ऐसा नहीं है। भारत की सबसे अमीर महिलाओं में से एक और इंफोसिस फाउंडेशन की अध्यक्ष ने खरीदारी करना छोड़ दिया है। आखिरी साड़ी उन्होंने काशी जाने से पहले 21 साल पहले खरीदी थी।
इस बारे में बात करते हुए सुधा ने बताया, '21 साल पहले गंगा नहाने के लिये मैं काशी गयी थी और जब आप काशी जाते हैं तो आपको किसी ऐसे वस्तु का त्याग करना होता है जिसे आप सबसे अधिक पसंद करते हैं। इसके बाद मैंने विशेषकर साड़ियों की खरीदारी का त्याग कर दिया।' उन्होंने कहा, 'मुझे कहना होगा कि मैं बेहद खुश और आजाद महसूस करती हूं।' लेकिन सुधा और उनके उद्योगपति पति नारायण मूर्ति ने जिस काम पर खर्च करना जारी रखा वह है - किताबें खरीदना।
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पढ़ना बेहद पसंद
सुधा और नारायण मूर्ति दोनों को पढ़ना बेहद पसंद है और दो पुस्तकालयों, स्टैंडों में बड़े करीने से व्यवस्थित कर रखा गया 20,000 से अधिक किताबों का विशाल संग्रह इसकी गवाही देता है। लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता सुधा इस बात को कबूल करती हैं कि उन्हें अपनी किताबों को किसी को यहां तक कि अपने पति को भी उधार देने के ख्याल से नफरत है। वह मानती हैं उनके पति आसानी से इन्हें खरीद सकते हैं।
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वह बताती हैं कि मैंने अपने पति से कहा कि अगर हर कोई लेखकों की किताबें उधार लेना शुरू कर दें तो एक लेखक कैसे जिएगा? हम सभी लेखक यह चाहते हैं कि लोग उनकी किताबें खरीदें। इंफोनिस फाउंडेशन के माध्यम से कर्नाटक में 60,000 से अधिक पुस्तकालयों की स्थापना करने वाली सुधा की नई किताब 'थ्री थाउजैंड्स स्टिचेज' हाल में प्रकाशित हुई है।
सुधा ने ही दिए थे इंफोसिस को शुरू करने के लिए पैसे
यह बहुत कम लोगों को पता है कि वर्ष 1981 में जब इंफोसिस के विचार ने जन्म लिया तब वह सुधा ही थीं जिन्होंने कंपनी को शुरू करने में 10,000 रुपये की अपनी जमापूंजी लगायी थी। पति को अपना सपना पूरा करने के लिये उन्होंने तीन साल का वक्त दिया। वह बताती हैं कि उस वक्त मैंने उनसे यही कहा था कि इन तीन साल में वह घर की रोजी रोटी चलायें और अगर वह एक दुपहिया खरीदते हैं व दो कमरे का घर लेते हैं तो यह मेरे लिये सबसे बड़ी खुशी होगी। बाकी सब तो इतिहास है।
खो दिए कुछ अच्छे दोस्त
बहरहाल, सुधा के लिये धन और प्रसिद्धि कुछ अच्छे मित्रों की कीमत पर मिली। सुधा ने बताया, 'अपने धन के कारण मैंने अपने कई दोस्त खो दिये। जब मेरे दोस्त मुझसे मिलते तो उनके दिमाग में एक एजेंडा होता। चूंकि मेरे पास पैसा था इसलिए वे मुझसे कुछ न कुछ पाने की उम्मीद करते थे। इसलिए, मैंने कुछ अच्छे दोस्त गंवाये और यही मुझे सबसे अधिक कचोटता है। दूसरी ओर वह यह भी मानती हैं कि इसी धन से उन्होंने अपने तमाम सामाजिक कार्य किये। चाहे वह बाढ़ प्रभावित इलाकों में 2,300 घरों का निर्माण हो या गुजरात में भूकंप पीड़ितों की मदद हो।
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