जानवरों का ये अस्पताल आपके दिल को छू जाएगा, यहां एक्सरे से लेकर ऑपरेशन तक का है इंतजाम

जानवरों की दुनिया से आपको रू-ब-रू कराने के लिए गाँव कनेक्शन ने एक विशेष शो शुरू किया है इस शो का नाम है 'टेल्स'। इस शो में जानवरों से जुड़ी रोचक कहानियां आपको देखने को मिलेगी। शो के तीसरे भाग में बरेली के एक पशु अस्पताल की कहानी है।

Diti BajpaiDiti Bajpai   13 July 2019 9:56 AM GMT

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इज्जतनगर(बरेली)। आठ बाई छह के ऑपरेशन थिएटर में दो डॉक्टर छोटू के कान की सर्जरी कर रहे हैं। वहीं थिएटर के बाहर बैठी उसकी मां जसोदा देवी (65 वर्ष) यह आस लगाए हुए है कि उसका छोटू जल्द से जल्द ठीक हो जाए।

छोटू इंसान नहीं बल्कि एक खरगोश है जिसके कान में फोड़ा होने से घाव हो गया था। पिछले कई दिनों से चल रहे इलाज से न ठीक होने पर डॉक्टर अब उसका ऑपरेशन कर रहे है।


आंखों में उदासी और थोड़ी घबराई हुई आपरेशन थिएटर के बाहर बैठी जसोदा देवी बताती हैं, "छोटू कह के बुलाते हैं तो कहीं भी होता है मेरे पास आ जाता है। हम उससे बहुत प्यार करते है बहुत चिंता लगी हुई है बस किसी तरह से सही हो जाए।" जसोदा देवी छोटू को अपने बेटे से भी बढ़कर मानती है वह खुद को उसकी मां कहती है। "दो-तीन महीने पहले इसको एक घर से लाए उनके घर के बच्चे मारते थे तो हम लेकर आ गए। मैं उसको बहुत प्रेम से रखती हूं।" जसोदा देवी ने बताया।


छोटू अब स्वस्थ है। वह जिस अस्पताल में भर्ती है वह बरेली जिला मुख्यालय से 9 किलोमीटर दूर इज्जतनगर में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान ( आईवीआरआई) में बना हुआ है। इस अस्पताल में जानवरों को बेहतर से बेहतर इलाज देने के लिए बड़े और छोटे जानवरों के लिए अलग-अलग ऑपरेशन थिएटर, माइनर ओटी, प्रसव कक्ष, एक्सरे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, जांच प्रयोगशाला, एंडोस्कोपी, डायलिसिस यूनिट समेत कई सुविधा उपलब्ध है।

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इसके साथ ही इस अस्पताल में आईसीयू की भी सुविधा है, जिसमें ऑपरेशन के बाद जानवरों को रखा जाता है। उत्तर भारत के पहले मल्टी स्पेशलियटी पशु अस्पताल को करोड़ों रुपए की लागत से तैयार किया गया है। इस अस्पताल में आईवीआरआई ने देश का पहला वेटनरी माड्यूलर ऑपरेशन थिएटर भी तैयार किया है, जिसमें छोटू जैसे कई जानवरों को नई ज़िदगी मिल रही है।

आईवीआरआई के सर्जरी विभाग के हेड डॉ अमरपाल बताते हैं, "इस पॉलीक्लीनिक को एक छोटे से कमरे से शुरू किया था। धीरे-धीरे में इसमें सुविधाएं बढ़ाएगी गई और इस पॉलीक्लीनिक में हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध है।" अपने जानवर से एक पशु मालिक के रिश्ते को समझाते हुए डॉ अमरपाल कहते हैं, "हमारे पास कई राज्यों से पशु मालिक आते है। ज्यादातर लोग उस पशु को अपने परिवार का सदस्य मानते है और महंगे से महंगे इलाज कराने के लिए पीछे नहीं हटते है। अस्पताल कुछ सही होकर जाते है तो कुछ को हम बचा नहीं पाते। कई बार परिवारों को जानवरों के लिए मैंने रोते देखा है उनका एक अलग जुड़ाव होता है अपने जानवर से।


जब छोटू का ऑपरेशन चल रहा था। उसी दौरान अस्पताल के परिसर में आंकाक्षा पहवा (28वर्ष) रो-रोकर डॉक्टरों से गुहार कर रही थी कि कोको (श्वान) को ठीक कर दो। कोको पार्वो बीमारी से पीड़ित था(यह बीमारी गर्मियों में होती है और विदेशी श्वानों में यह ज्यादा होती है। इस बीमारी का अभी कोई इलाज नहीं है)।

"मुझे पता है इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन मैं इसको अस्पताल इसलिए लाई हूं क्योंकि यह मेरा बच्चा है।" इतना कहकर आंकाक्षा के आंखों में आंसू आ जाते हैं। आंख में आंसू लिए वह आगे कहती हैं," पिछले 15 से दिन इसने कुछ नहीं खाया इसलिए मैंने भी खाना छोड़ दिया है। इसको मैं अपने बच्चे की तरह प्यार करती हूं। अपने साथ सुलाना, साथ खेलना।" बीमारी का इलाज न होने से कोको अब जीवित नहीं है।

सर्जरी विभाग में वैज्ञानिक डॉ ए.सी सक्सेना इलाज के दौरान अनुभवों के बारे में बताते हैं, "यहां जो पशु मालिक आते हैं वह पशु को गोदी में लेकर घूमते हैं उनका दर्द महसूस करते हैं। हम उनको इंजेक्शन लगा रहे होते है तो भी उनको यहीं लगता है कि दर्द न हो रहा हो। कई बार पशु मालिक इतने भावुक हो जाते है कि उस वह नुकसान नहीं सह पाते हैं।"

अपनी बात को जारी रखते वह आगे बताते हैं, "इंसानों को पता नहीं होता है कि एक जानवर की उम्र और एक इंसान की उम्र में बहुत अंतर होता है। एक श्वास की उम्र सिर्फ 12 साल होती है और इंसान सोचता है कि अभी मेरे भी तो 12 साल हुए है इसको और चलना चाहिए मेरे साथ।"


पशु चिकित्सा की कई सुविधाए होने से चलते है अस्पताल में कई राज्यों के लोग अपने पशु को लेकर आते है। ऐसे में पशुओं को भर्ती करने और पशु मालिकों को रोकने की भी पूरी व्यवस्था है। इसी अस्पताल में पिछले 40 दिनों से विमलेश अपने घोड़े का इलाज करा रहे हैं। विमलेश अपने घोड़े का पिछला पैर दिखाते हुए कहते हैं, "यह ट्राली के पास बंधा हुआ था उसने पैर मारा और ट्रॉली के त्रिकोने से इसकी नस कट गई। ऑपरेशन कराया उसके बाद प्लास्टर कराया। अब जाकर थोड़ा सही है।" बरेली जिले से 70 किलोमीटर दूर रामनगर तहसील के जगन्नाथपुर गाँव से विमलेश घोड़े को इस उम्मीद से लाए है कि वह ठीक हो जाएगा।

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वह आगे कहते हैं, "पिछले 40 दिन से घोड़ा बैठा नहीं है दिनभर-रातभर खड़ा ही रहता है। हम इसी के पास सोते है पता नहीं कब गिर जाए। मेरी एक बेटी है और ये। इसे हम अपना बेटा समझते है।" इलाज के बाद विमलेश का घोड़ा अब स्वस्थ है।

देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लचर सरकारी तंत्र और पशु अस्पतालों में मूलभूत सुविधाएं न होने से जानवरों को कई बेहतर इलाज नहीं मिल पाता है, जिससे उनकी मौत हो जाती है। ऐसे में उत्तर भारत का यह अस्पताल जानवरों को एक नई ज़िदगी देने का काम कर रहा है। इस अस्पताल में कई फोर्स जैसे सीआईएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी के श्वान भी आते हैं जो ड्यूटी के दौरान घायल हो जाते है। यहां मिले बेहतर इलाज से वह दुबारा ड्यूटी करने के लिए जाते हैं।


इंसानी चिकित्सा के मुकाबले पशु चिकित्सा में बहुत चुनौतियां आती है। इन चुनौतियों के बारे में आईवीआरआई में सर्जरी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ अभिजीत एम पावड़े बताते हैं, "इंसान तो बता देता है कि उसको क्या दिक्कत है और उसका सही इलाज हो जाता है लेकिन पशुओं से उगलवाना यह बहुत ही मुश्किल है। पशु का मालिक हमको यह बताता है कि मेरा पशु लंगड़ा है यह तो पशुचिकित्सक को देखना होता है चलाकर कि वह बाएं पैर से लंगड़ता है या दाहिने पैर से।"

बरेली जिले के बिहारीपुर इलाके से रज़ाबुद्दीन अपनी बिल्ली का इलाज कराने आए थे। अस्पताल में मिले उसको सही इलाज से वह काफी खुश है। रज़ाबुद्दीन अपनी बिल्ली को गोदी में लिए कहते हैं, "इसकी पेशाब की थैली पूरी भर गई थी। डॉक्टरों ने इसका इलाज किया अब यह सही है। जो दवा लिखी वो इसको देना है।"


अस्पताल में कुछ जानवर ठीक होकर जाते हैं तो कुछ नहीं। बरेली के इस पशु अस्पताल में काफी सुविधाएं है जिससे जानवरों को नई ज़िदगी मिल रही है। अगर देश के पशुचिकित्सालयों में ऐसी सुविधाएं हो जाए तो जिन पशुओं को सही समय पर इलाज न मिलने से मौत हो जाती है। उनको बचाया जा सकता है।

जिनके पास पैसे और जो जिले के आस-पास है वो तो यहां अपने पशु को लेकर आ जाते है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के लिए अपने पशु को 200-300 से लाना संभव नहीं है। गाँव और कस्बो क्या जिले स्तर पर भी पशुचिकित्सा की सुविधा नहीं है। हमारा यह मानना है कि कम से कम जिला स्तर पर एक पॉलीक्लीनिक ऐसा हो जहां पर पशुचिकित्सा के लिए सभी प्रकार की सुविधाएं हो। इसके लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए।" आईवीआरआई के सर्जरी विभाग के हेड डॉ अमरपाल ने सुझाव देते हुए कहा।



      

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