दुर्गा: मरने के कगार पर थी, अब दुधवा की सबसे दुलारी और शरारती हाथी है

ये कहानी हाथी के छोटे बच्चे की है। जो मधुमक्खियों के हमले में मरणासन्न हो गई थी, वन विभाग और दुध‍वा के कर्मचारियों ने बचाया और फिर वह सबकी दुलारी बन गई। देखिए वीडियो

Daya SagarDaya Sagar   25 May 2019 12:09 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

रिपोर्ट- दया सागर/ अरविंद शुक्ला

दुधवा ( लखीमपुर)। "जैसे हम अपने बेटे से मोहब्बत करते हैं, वैसे ही हम दुर्गा से मोहब्बत करते हैं। वह हमारे बच्चे की ही तरह है। वह जल्दी से ठीक हो जाए इसके लिए हम कई बार छुट्टी भी नहीं लेते हैं। वह अब पहले से सेहतमंद भी हो गई है और सबसे घुलने-मिलने भी लगी है। वह टूरिस्ट के साथ खेलती है और खूब शैतानी करती है।" महावत इरशाद मुस्कुराते हुए बताते हैं।

इरशाद उत्तर प्रदेश के लखीमपुर स्थित दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में महावत हैं और हाथियों का रख-रखाव करते हैं। उनके पास हाल ही में हाथी का एक बच्चा रेस्क्यू करके लाया गया था, उसकी देखभाल की जिम्मेदारी इरशाद की थी। लगभग एक साल की दुर्गा अक्टूबर, 2018 में अपने परिवार से बिछड़ गई थी। मधुमक्खियों ने उनके समूह पर हमला कर दिया था। कई दिनों तक वह इधर-उधर असहाय अवस्था में भटकती रही। बाद में वन विभाग के कर्मचारियों ने उसे बिजनौर से दुधवा राष्ट्रीय उद्यान, लखीमपुर लाए। दुधवा के उपनिदेशक उपनिदेशक महावीर कौजलगि ने गांव कनेक्शन को बताया, "दुर्गा को जब लाया गया था, उसकी हालत गंभीर थी, हमारे डॉक्टर और महावतों ने उसकी सेवा कर उसे बचा लिया। अभी वह पूरी तरह स्वस्थ है।"

नेपाल की सीमा से सटे दुधवा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में हाथियों का विशेष महत्व है। कर्नाटक से 10 हाथियों से आने के बाद यहां हाथियों की संख्या बढ़ गई है। दुर्गा को भी इन हाथियों में अपना नया परिवार मिल गया है।

रूपकली के साथ दुर्गा। मां और परिवार से बिछड़ने के बाद रूपकली के रूप में दुर्गा को एक मां मिली है।

"दुर्गा को जब यहां लाया गया था, वो लगभग मरणासन्न अवस्था में थी। पूरे शरीर में मधुमक्खियों के डंक थे, जिसे हम लोगों ने धो-धोकर निकाला। डीजी साहब (महावीर कौजलगि) खुद भी लगातार उसका हालचाल लेते रहते हैं। कई दिनों तक इसे ग्लूकोज चढ़ा और छोटे बच्चों को दिया जाने वाला पाउडर वाला दूध दिया गया। बहुत मेहनत हुई इसे ठीक करने में।" दुर्गा की पीठ पर हाथ फेरते हुए इरशाद बताते हैं।

उद्यान के अन्य हाथियों ने भी दिया पूरा सहयोग

शुरूआत में दुर्गा को अकेले ही रखा गया था। लगभग पांच महीने के इलाज के बाद फरवरी, 2019 में उसे उद्यान के अन्य हाथियों के संपर्क में लाया गया। इसके बाद वह चारा चरना, जमीन पर लोटना और खेलना सीख गई।

दुधवा के वन क्षेत्राधिकारी राम प्यारे बताते हैं, "दुर्गा को ठीक होने में उद्यान के अन्य हाथियों ने भी काफी सहयोग किया। वह अपने परिवार से बिछड़ गई थी लेकिन उद्यान के ही एक बुजुर्ग हाथी 'रूपकली' के रूप में उसे मां मिली। इसके अलावा दक्षिण भारत से आया हुआ उसका हमउम्र हाथी 'विनायक' उसके दोस्त की तरह है, जिसके साथ दुर्गा फुटबॉल भी खेलती है। वह उद्यान की सबसे चंचल और शरारती हाथी है।"

क्षेत्राधिकारी राम प्यारे और महावत इरशाद के साथ दुर्गा। दुर्गा इनके साथ खूब खेलती हैं और इनके हर निर्देशों को समझती है।


खान-पान का रखा जाता है खास ख्याल

दुर्गा के खान-पान का खास ख्याल उद्यान के अधिकारी, महावत और चारा कटर रखते हैं। दुर्गा को अन्य हाथियों की अपेक्षा स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता है ताकि वह जल्दी से ठीक हो सके। आम हाथियों के रेगुलर डाइट जैसे- दलिया, जंगली घास, खिचड़ी, चावल-दाल के अलावा दुर्गा को दूध, फल, गन्ना और चना भी खिलाया जाता है ताकि उसके शरीर में खून और ग्लूकोज का सही लेवल बना रहे।

दुर्गा के लिए खिचड़ी बनाते चारा कटर राम खिलावन। वह बताते हैं कि दुर्गा जल्द स्वस्थ हो जाए इसके लिए उसके भोजन का खास ख्याल रखा जाता है


दुर्गा को चारा खिलाने वाले उद्यान के ही कर्मचारी राम खिलावन बताते हैं, "दुर्गा को हर रोज आठ किलो की रोटी, आधा किलो गुड़, आधा किला चना, 250 ग्राम देशी घी, एक किलो चावल, आधा किलो अरहर दाल, आधा लीटर दूध, 25 ग्राम काली मिर्च और इलेक्ट्रोजीन दिया जाता है। इसके अलावा दुर्गा को सेब, अनार, संतरा, अंगूर और केला खिलाया जाता है ताकि उसका स्वास्थ्य ठीक रहे।"

पर्यटक लेते हैं सेल्फी

महावत इरशाद अपने अनुभव से बताते हैं कि दुर्गा की हालत तेजी से सुधरी है लेकिन उसे पूरी तरह से ठीक होने में करीब पांच साल लगेंगे। हालांकि अभी दुर्गा दुधवा में आने वाले पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है। दुर्गा जोर से चिंघाड़ती है, पर्यटकों के साथ खेलती है और ढेर सारी फोटोज और सेल्फीज खिंचवाती है। जब पर्यटक जाने लगते हैं तो उन्हें अपने सूड़ से प्यार कर उन्हें विदा करती है।

पर्यटकों के साथ खेलती दुर्गा। दुधवा में आने वाले हर पर्यटक के आकर्षण का केंद्र है दुर्गा

गैंडों की गिनती हो या टाइगर पकड़ना, हाथी हैं जरुरी

करीब 80 वर्ग किलोमीटर में फैले दुधवा टाइगर रिजर्व भी है। इसकी आठ में से 3 रेंज पर्यटकों के लिए खोली गई हैं। नेपाल की तराई में लखीमपुर से लेकर बहराइच तक फैले दुधवा में हाथियों से पर्टयकों को घुमाने के अलावा गैडों की मॉनिटरिंग की जाती है। हाथी जंगली एरिया में पेट्रोलिंग का बड़ा सहारा होता हैं, जहां पैदल जाना भी मुश्किल होता है वहां हाथी ही मददगार होते हैं। हाथियों की भूमिका उस वक्त भी बहुत अहम हो जाती है, जब कोई तेंदुआ या टाइगर जंगल पारकर आवासीय एरिया में पहुंच जाता है, ऐसे में हाथी की मदद से न सिर्फ उसे खोजते हैं बल्कि नशे का इंजेक्शन देकर वापस भी लाते हैं।

(कम्युनिटी जर्नलिस्ट मोहित शुक्ला के सहयोग और इनपुट के साथ)

पढ़ें- रेनू और किशन: मरने के लिए छोड़ दी गई बाघिन को मिली नई ज़िदगी और एक नया दोस्त


'उस हाथी के धैर्य ने मेरी बंद आंखें हमेशा के लिए खोल दीं'



   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.