पिछले लॉकडाउन की यादों को जेहन में लिए फिर से घरों की ओर रुख कर रहे प्रवासी मजदूर

कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए एक-एक करके कई राज्य नए प्रतिबंध लगा रहे हैं। साल 2020 में लगे लॉकडाउन की भयावहता प्रवासी मजदूरों के दिमाग में अभी भी है, इसलिए वे फिर से अपने गाँवों की ओर वापस लौटने लगे हैं। सिर पर कर्ज है और घर की जिम्मेदारियां भी निभानी हैं।

Somya LakhaniSomya Lakhani   13 April 2021 2:45 PM GMT

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पिछले लॉकडाउन की यादों को जेहन में लिए फिर से घरों की ओर रुख कर रहे प्रवासी मजदूर

उपेंद्र कुमार (26) अपनी पत्नी सविता (25) और तीन बेटियों के साथ आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर 9 अप्रैल को ट्रेन के इंताजर में बैठे थे। (फोटो-सौम्या लखानी)

मनी राम (35 वर्षीय) ने जब सोचा ही था कि एक बुरा सपना अब खत्म हो गया है और वे अपनी जिंदगी को दोबारा पटरी पर ला सकते हैं कि वह बुरा सपना फिर से वापस आ गया। उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के रहने वाले राम उन दिनों को याद करते हुए डर जाते हैं, जब वह पहले लॉकडाउन के दौरान बिना खाना-पानी के दिल्ली में कैद से हो गए थे। उस समय राम के पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे। राम दिल्ली के मायापुरी इंडस्ट्रियल एरिया के एक फैक्ट्री में काम करते हैं।

राम को अभी भी एक साल पहले की वह व्यर्थ कोशिश याद है, जब वह अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ घर वापसी की कोशिश कर रहे थे। उस दौरान उन्हें पुलिस ने बॉर्डर से ही वापस दिल्ली भेज दिया था। इसके बाद उन्हें पास के एक स्कूल में रोज घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता था, ताकि उन्हें और उनके बच्चों को खाना मिल सके। फैक्ट्री बंद होने के कारण उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा और पैसे उधार लेने पड़े।

राम ने गांव कनेक्शन से कहा, "हमें डर है कि इस बार भी हमारे साथ वही होगा, जैसा पिछले साल हुआ था। उस साल हमने बहुत दुख झेला था। लॉकडाउन के समय लोगों से पैसे मांग कर हमारी 15,000 रुपए की उधारी हो गई थी, जिसे हमने किसी तरह से हाल ही में चुकाया है। अगर लॉकडाउन दोबारा से होता है तो मुझे फिर से पैसे उधार लेने पड़ेंगे और मैं फिर उसे अगले साल तक चुकाता रह जाऊंगा। इसलिए मैं घर जाने की योजना बना रहा हूं।"

दिल्ली में राम की फैक्ट्री से 1,400 किलोमीटर की दूरी पर हम सुजीत कुमार से मिले जिनकी उम्र 20 साल है। सुजीत 8 अप्रैल को मुंबई से मजदूरों से लदी ट्रेन 023212 में सवार हुए थे। वह मुंबई से रांची अपने घर जा रहे थे, जब गांव कनेक्शन ने मध्य प्रदेश के सतना रेलवे स्टेशन पर उनसे मुलाकात की।

मुंबई से लगभग 35 किलोमीटर दूर पनवेल की एक डेयरी में काम करने वाले सुजीत ने कहा, "हमारा सेठ हमें रहने के लिए तभी कमरा देता है जब हम काम कर रहे होते हैं। चूंकि काम कम है तो सेठ ने हमें कुछ समय के लिए घर वापस जाने के लिए कहा है। ऐसे समय में कन्फर्म टिकट मिलना संभव नहीं था और इसलिए हमने सिर्फ एक चालू (अनारक्षित) टिकट बुक किया और घर लौट रहे हैं।

चूंकि सुजीत के पास कन्फर्म टिकट नहीं था इसलिए 2,000 किलोमीटर दूर अपने घर तक पहुंचने के लिए वो ट्रेन के टॉयलेट में मास्क लगा कर सफर कर रहे हैं।

सुजीत कुमार 8 अप्रैल को मुंबई से पैक ट्रेन 023212 में सवार हुए। वह झारखंड के रांची में अपने घर जा रहे थे। फोटो: सचिन तुलसा त्रिपाठी / जीसी

इस बीच उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के मिर्जापुर गांव में कुछ युवकों का दल हैदराबाद से लौटा है। देशव्यापी तालाबंदी की ख़बर व्हाट्सएप पर पढ़कर इन लोगों ने ये कदम उठाया है।

पिछले 24 घंटों में भारत में कोरोना के 1.61 लाख नए मामले रिकॉर्ड किए गए हैं। जबकि देश में सक्रिय मामलों ने लाखों का आंकड़ा पार कर लिया है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर के मद्देनजर कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश जैसे दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक और ओडिशा ने COVID-19 प्रतिबंधों की घोषणा की है।

हालांकि 10 अप्रैल को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ये साफ किया कि राष्ट्रीय राजधानी में एक और तालाबंदी नहीं होगी। इसके साथ ये भी कहा गया है कि नए प्रतिबंधों का कड़ाई से पालन कराया जाएगा। उन्होंने ट्वीट कर बताया कि दिल्ली में सभी कक्षाओं के स्कूलों को अगले नोटिस तक बंद कर दिया गया है।

महाराष्ट्र, जो सबसे बुरी तरह से प्रभावित राज्य है एक पूर्ण तालाबंदी की ओर अग्रसर है। 9 अप्रैल को स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने ऐसे ही कुछ संकेत दिया थे। वहीं कई अन्य राज्यों ने भी टीके की कमी की सूचना दी है।

जाहिर है, देश भर में लाखों प्रवासी मजदूर चिंतित हैं। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान 10,466,152 मजदूर अपने घरों को वापस लौट आए। श्रम और रोजगार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने पिछले साल सितंबर में संसद में एक लिखित जवाब में यह आंकड़ा बताया था।

हालांकि, रेलवे ने इस बात से इनकार किया कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों की वजह से मजदूर घर वापसी कर रहे हैं, जिसकी वजह से ट्रेनों में भीड़ इकठ्ठा हो रही है। रेलवे का कहना है कि ट्रेन सेवाओं को रोकने या कम करने की उनकी कोई योजना नहीं है।

रेलवे बोर्ड के चेयरपर्सन सुनीत शर्मा कहते हैं, "ट्रेन सेवाओं को रोकने या कम करने की कोई योजना नहीं है। हमें आवश्यता के रूप में जितनी जरूरत पड़ेगी उतनी ट्रेनें चलाएंगे। अभी ऐसी कोई इमरजेंसी नहीं है। अगर ऐसी कोई भी जरूरत आती है तो हम तुरंत ट्रेनों को चला सकते हैं। ट्रेनों में ये भीड़ गर्मी के मौसम के दौरान आम बात है और हमने पहले ही ट्रेनों से भीड़ कम करने की घोषणा कर दी है।

9 अप्रैल को आनंद विहार आईएसबीटी, दिल्ली से उत्तर प्रदेश के बहराइच के लिए निकले दैनिक मजदूर मनकुने। तस्वीर: सौम्या लखानी / जीसी

पिछले साल गर्मियों में अपने तरीके के पहले राष्ट्रीय सर्वेक्षण में लॉकडाउन के प्रभाव का दस्तावेजीकरण करने के लिए गांव कनेक्शन ने 25,371 ग्रामीण निवासियों का साक्षात्कार किया जिनमें 23 राज्यों के प्रवासी मजदूर भी शामिल थे।

सर्वे में पता चला कि 23 फीसदी प्रवासी मजदूर तालाबंदी के दौरान पैदल घर लौटे, जबकि 18 फीसदी बस से और 12 फीसदी ट्रेन से अपने घरों को आए। अपने घर जाते समय 12 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को पुलिस द्वारा कथित तौर पर पीटा गया था। इनमें से लगभग 40 प्रतिशत को घर वापसी के दौरान भोजन की कमी का भी सामना करना पड़ा था। (पूरी सर्वे रिपोर्ट पढ़े यहां)

COVID19 के बढ़ते मामले और दूसरे लॉकडाउन के डर से कई प्रवासी मजदूर घर वापस आ रहे हैं। वे उस दुख से नहीं गुजरना चाहते हैं, जिसे उन्होंने पिछले साल जब अचानक तालाबंदी हुई और बिना भोजन, पानी और पैसे के सहा था।

दिल्ली में 6 अप्रैल को जैसे ही रात का कर्फ्यू लगाया गया, 35 वर्षीय फैक्ट्री कर्मचारी प्रशांत तिवारी की पिछले साल की यादें ताजा हो गईं। प्रशांत को वो सब याद आ गया, जब उन्हें थोड़ी सी खिचड़ी के लिए लंबी कतार में खड़ा रहना पड़ा, एक ट्रेन की सीट के लिए घबराए हुए इंतजार किया और अपनी तरह कई मजदूरों को शहरों से कई किलोमीटर दूर तक पैदल चलते देखा था।

प्रशांत तिवारी अभी उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर लौटे हैं। वह दिल्ली में नौकरी करते थे। पिछले लॉकडाउन के समय वह दिल्ली में फंसे हुए थे। तस्वीर: By Arrangement

दिल्ली से लगभग 750 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर पहुंचे तिवारी ने फोन पर कहा, "क्या होगा अगर रात के कर्फ्यू के बाद अगला कदम एक पूर्ण लॉकडाउन हो? क्या होगा अगर मैं फिर से भूखा रह गया? मुझे डर लग रहा है। मुझे सरकार पर भरोसा नहीं है। इसलिए मैंने समान पैक करके यहां से जाने का फैसला किया। मैं 9 अप्रैल को घर पहुंचा।

हमें 9 अप्रैल को पूर्वी दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन पर, 26 वर्षीय उपेंद्र कुमार, उनकी पत्नी सविता और उनकी तीन बेटियां जिनमें एक छोटा बच्चा भी शामिल है, इंतजार करते दिखे। उपेंद्र दिल्ली के बदरपुर में मार्बल फ्लोरिंग बनाने वाले ठेकेदार का काम करते हैं। उन्हें 13,000 रुपये महीना मिलता है। उपेंद्र उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के बैरिया से हैं। वह आठ वर्षों से राष्ट्रीय राजधानी, दिल्ली में काम कर रहे हैं।

उपेंद्र ने बताया, "पिछले साल जब लॉकडाउन की घोषणा की गई थी उस समय मैं अपने गांव में किसी काम के लिए गया था, इसलिए उस दौरान मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों को जो कष्ट हुआ उससे मुझे नहीं गुजरना पड़ा। मैंने टीवी पर देखा कि कितने लोग वापस चले आए, कुछ मर गए, कई भूख के कारण मर गए तो कुछ ने वापसी के समय रेलवे पटरियों और हाइवे पर अपना दम तोड़ दिया। इस सप्ताह जब मुझे रात के कर्फ्यू के बारे में पता चला, तो मैं और मेरी पत्नी डर गए।"

सविता बताती हैं कि उनके ससुराल वालों ने पिछले साल लॉकडाउन के दौरान पुणे में फंसे चार रिश्तेदारों को वापस लाने के लिए 15,000 रुपये खर्च किए थे। सविता कहती हैं, "ऐसा हमारे साथ हो हम फिर से इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। मेरी बेटियां पांच साल से कम उम्र की हैं। मैं उनसे यह उम्मीद नहीं कर सकती कि वे पिछले साल की तरह पैदल चलें या भूखी रहें। इसलिए हम घर वापस जा रहे हैं। "

उपेंद्र कुमार (26), पत्नी सविता (25) और उनकी तीन बेटियां। ये सभी 9 अप्रैल को दिल्ली के आनंद विहार रेलवे स्टेशन से अपने गांव उत्तर प्रदेश के बलिया जाने का इंतजार कर रहे हैं। तस्वीर: सौम्या लखानी / जीसी

आनंद विहार आईएसबीटी (अंतर्राज्यीय बस टर्मिनल) पर कुछ मीटर दूर, 28 वर्षीय भास्कर पांडे उत्तराखंड के अल्मोड़ा जाने के लिए सूटकेस लिए एक बस की ओर बढ़ रहे हैं। भास्कर नई दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में एक कुक का काम करते हैं। शहर में रात के कर्फ्यू के बारे में पढ़ते ही उन्होंने दो सप्ताह की छुट्टी ले ली।

"मेरे पास डरने का अच्छा कारण है। पिछले साल, जब लॉकडाउन लागू किया गया था उस वक्त मैं पुणे में था और मुझे घर वापस आने में चालीस दिन लग गए। मैंने यात्रा पर पंद्रह हजार रुपये खर्च किए और मुझे चौदह दिनों के लिए दो बार यानी एक बार यूपी में और फिर उत्तराखंड में क्वारंटाइन किया गया। यह दुखद था।"

भास्कर पांडे और सोनू दिल्ली के आनंद विहार, आईएसबीटी पर उत्तराखंड के अल्मोड़ा जाते हुए। तस्वीर: सौम्या लखानी / जीसी

पास के रेलवे स्टेशन पर हमें मिले बिहार के छपरा के रहने वाले 50 वर्षीय शत्रुघ्न प्रसाद जो अपने गांव जाने के लिए इस सप्ताह दिल्ली से जाने वाली ट्रेनों के बारे में पूछताछ करने आए थे। गांव में उनकी पत्नी और पांच बच्चे रहते हैं। वह नोएडा में प्लास्टिक बॉक्स बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते हैं और हर महीने 10,000 रुपये कमाते हैं

प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया, "लोगों में हल्ला है कि लॉकडाउन होने वाला है, घरवाले कह रहे हैं कि वापस आ जाओ। पिछले साला मजदूरों का बुरा हाल हुआ था, हमने टीवी पर देखा था।

बढ़ता कर्ज

प्रवासी मजदूरों को डर है कि एक और लॉकडाउन का मतलब अतिरिक्त ऋण हो सकता है। अभी भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्होंने पिछले साल लॉकडाउन के समय जो पैसे उधार लिया थे उसे चुका नहीं पाए हैं।

दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में अपने घर पहुंचे, तिवारी ने गांव कनेक्शन को बताया "मैं एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर का काम करता था और महीने में चौदह हजार पांच सौ रुपये कमाता था। पिछले साल लॉकडाउन के दौरान मैं अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ यहां फंस गया था और आखिरकार हम 15 मई को अपने घर जा पाए। इस साल भी लॉकडाउन लग सकता है ऐसा सुनकर तिवारी फिर से अपने घर, अंबेडकरनगर चले आए।

"पिछले साल मार्च से मई तक मैंने दोस्तों और परिवार से पच्चीस हजार रुपये का ऋण लिया था। जुलाई में मैं वापस दिल्ली आ गया, क्योंकि मुझे उस पैसे का भुगतान करने के लिए पैसे कमाने थे, लेकिन नौकरियां कम थीं। मैंने आठ हजार पांच सौ प्रति माह के कम वेतन पर दूसरी फैक्ट्री में काम करना शुरू किया। उन्होंने सवाल करते हुए कहा, "अभी तक पिछला कर्ज नहीं चुका पाए हैं और क्या कैसे ले लें अपने सर पर?

इसी तरह की भावनाएं 40 वर्षीय दुर्गा प्रसाद की भी हैं। प्रसाद ओखला औद्योगिक क्षेत्र में एक केबल तार कारखाने में काम करते थे और साल 2020 के लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपनी नौकरी खो दी थी। उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले दुर्गा अब दिल्ली में एक कारखाने में काम करते हैं, जहां उन्हें 500 रुपये प्रति दिन समान लोडिंग और अनलोडिंग के मिलते हैं।

उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "मेरे वेतन से कमरे का किराया, बच्चों के ट्यूशन की फीस और दैनिक खर्च का भुगतान किया जाता था। जब मैंने अपनी नौकरी खो दी तो मैंने गांव में रहने वाले रिश्तेदारों से लगभग बीस हजार रुपये उधार लिए। मुझे वो पूरी राशि अभी चुकानी बाकी है। ऐसे में अगर मैं अभी दिल्ली में रहता हूं और एक और तालाबंदी हो जाती है तो कोई भी मुझे उधार नहीं देगा। मेरा परिवार चाहता है कि मैं अगले कुछ दिनों में घर वापस आ जाऊं।

रामदीन प्रजापति, जो दिल्ली में निर्माण स्थलों पर काम करते हैं। लॉकडाउन की खबर सुनकर उन्होंने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में अपने मूल स्थान पर लौटने की योजना बनाई। तस्वीर: सौम्या लखानी / जीसी

दिल्ली में निर्माण स्थलों पर काम करने और आजमगढ़ के रहने वाले 35 वर्षीय रामदीन ने कहा कि वह इस सप्ताह अपनी पत्नी और चार बच्चों को गांव छोड़ देंगे। उन्होंने कहा, "अगर दिल्ली में तालाबंदी होती है, तो मैं किसी तरह अकेले मैनेज कर लूंगा। पिछले साल हम सभी लॉकडाउन में एक साथ दिल्ली में थे और हमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। मेरे वेतन से हमारा गुजारा नहीं हो पाया। कोई भी पिछले साल की त्रासदियों को दोहराना नहीं चाहता है।"

इसलिए ये सभी बस और रेलवे स्टेशनों पर प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्हें डर है कि एक और लॉकडाउन लग सकता है। इसके अलावा कोरोना की दूसरी लहर और भी खतरनाक हो गई है जिससे भविष्य के बारे में भय की एक सामान्य भावना आना जाहिर है। ऐसे में वे आखिरकार उस एक जगह की तलाश करते हैं, जो गरीबी के बीच भी उन्हें राहत देती है और वो है उनका – घर।

(इनपुट: सचिन तुलसा त्रिपाठी, मध्य प्रदेश, सतना)

अनुवाद: सुरभि शुक्ला

इस खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

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