बच्चों में ये लक्षण हो सकती है टीबी की बीमारी, ऐसे करें बचाव

बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ों की तुलना में काफी कम होती है इसलिए वे टीबी की चपेट में बड़ी आसानी से आ जाते हैं

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   9 Sep 2019 10:47 AM GMT

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बच्चों में ये लक्षण हो सकती है टीबी की बीमारी, ऐसे करें बचाव

लखनऊ। जानकारी के अभाव के चलते भारत में बच्चों में टीबी के मामले बढ़ रहे हैं। भारत में टीबी के कुल मामलों में से 10 फीसदी बच्चों में होते हैं। बच्चों में टीबी को अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है, क्योंकि बच्चों में इसकी जांच और इलाज करना मुश्किल होता है। टीबी एक जानलेवा बीमारी है। यह किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है। बच्चों की टीबी व्यस्कों की टीबी से अलग होती है। बच्चों में इस बीमारी के होने के कारण और लक्षण भी बड़ों से अलग होते हैं, जिसे सही समय पर पहचान कर बच्चों को इस खतरनाक बीमारी से बचाया जा सकता है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बड़ों से कम होती है ऐसे में उन्हें टीबी होने की संभावना काफी रहती है।

ढाई साल के यश को दो माह से हल्का-हल्का बुखार था। दवा से फायदा नहीं हो रहा था। डॉक्टर ने लक्षण के आधार पर टीबी की आशंका जताई और जांच के लिए कहां। लेकिन यश के परिजन इस बात को मानने को तैयार नहीं थे कि इतने छोटे बच्चे को भी टीबी हो सकती है। जब यश की मेडिकल जांच कराई गई तो रिपोर्ट में टीबी की पुष्टि हुई।

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जानकारी का अभाव और इलाज के सिमित संसाधन के चलते भारत में बच्चों में टीबी के मामले बढ़ रहे हैं। भारत में टीबी के कुल मामलों में से 10 फीसदी बच्चों में होते हैं। बच्चों में टीबी को अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है, क्योंकि बच्चों में इसकी जांच और इलाज करना मुश्किल होता है।


स्टेट टीबी ऑफिसर, यूपी डॉक्टर संतोष कुमार ने बच्चों में टीबी होने के बारे में बताया, " टीबी किसी को भी हो सकती है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता व्यस्कों की तुलना में काफी कम होती है इसलिए वे इसकी चपेट में बड़ी असानी से आ सकते हैं। बाल और नाखुन छोड़कर शरीर के किसी अंग में टीबी हो सकती है।बच्चों में टीबी की बीमारी का पता तुरंत नहीं लग पता है। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे के शरीर में कई तरह की परेशानियां होती हैं, लेकिन वह बता नहीं पाता है। ट्यूबरकुलोसिस एक ऐसी बीमारी है जो उम्र देखकर नहीं आती। आज के समय में कई ऐसे बच्चे हैं जो टीबी की चपेट में हैं। इस बीमारी का यदि समय रहते पता न चल सके तो बच्चे की मौत भी हो सकती है।"


टीबी एक संक्रामक बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होता है। टीबी ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है।

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छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है।

बच्चों में टीबी की बीमारी को लेकर राम मनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रमोद कुमार बताते हैं, " बच्चों में टीबी के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हर महीने मेरे पास टीबी के नए मामले आते हैं। जिसमें पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चे भी शामिल होते हैं। ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होता है टीबी कहीं पर भी हो सकती है। बच्चों में टीबी के 60 फीसदी मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं जबकि बाकी 40 फीसदी फेफड़ों के अतिरिक्त अन्य अंगों में होते हैं। टीबी के मामलों में हर साल बढ़ोतरी हो रही है।"

बच्चों में टीबी का आम प्रकार नकारात्मक पल्मोनैरी टीबी है। छोटे बच्चों में बलगम नहीं बनता है, ऐसे में जांच के लिए वे बलगम नहीं दे पाते हैं। ऐसी स्थिति में गैस्ट्रिक रावेज बच्चों में टीबी का पता लगाने के लिए दूसरा विकल्प है। कुपोषण, एचआईवी या खसरा से संक्रमित बच्चों में टीबी अधिक आम और गंभीर होती है।" डॉक्टर प्रमोद कुमार ने आगे बताया।


आगरा के खंदरी निवासी मनोज (42 वर्ष) का बारह वर्ष का बेटा मोहित टीबी से पीड़ित है। मनोज ने बेटे का सरकारी अस्पताल में इलाज कराया, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हो पाई। आज मोहित के सीने की पसलियां दिखने लगी हैं और शरीर दिन-ब-दिन सूखता जा रहा है। मनोज ने बताया, " बेटे के टीबी का पूरा इलाज करा चुके हूं, फिर भी उसे बुखार आता रहता है। मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मेरे बेटे को टीबी कैसे हो गई। मोहित मेरा इकलौता बेटा है, इसे खूब खिलाता पिलाता भी हूं। "

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भारत सरकार वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने की तैयारी में है। लेकिन इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट टीबी ऐंड लंग डिजीज की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में भारत में टीबी से ग्रस्त करीब 1.2 लाख बच्चों की पहचान की गई। ये बच्चे 14 साल की उम्र तक के थे। बच्चों में टीबी के मामलों को लेकर इस रिपोर्ट में एक सूची भी दी गई है जिसमें भारत को दुनियाभर के देशों में पहले स्थान पर रखा गया है।


उप क्षय रोग अधिकारी, उन्नाव डॉक्टर मनीष मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया, " दो साल पहले जिनेवा में विश्व स्वास्थ्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें " अ कॉल टु एक्शन अगेंस्ट चाइल्ड टीबी' नाम की रिपोर्ट में बताया गया कि पूरी दुनिया के बच्चों में हर साल टीबी के करीब 10 लाख नए मामले सामने आ जाते हैं। टीबी से ग्रस्त करीब 90 फीसदी बच्चों को इलाज ही नहीं मिल पाता और भारत भी इससे अछूता नहीं है। कई बार फेफड़ों के टीबी से ग्रस्त बच्चों को वक्त पर इलाज न मिलने से यह बीमारी हड्डियों, जोड़ों और दिमाग तक पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है।"

किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्याय के पल्मोनरी विभाग के डॉक्टर संतोष ने बताया, इधर कुछ वर्षों में बच्चों में टीबी के मामलों में काफी तेजी से इजाफा हुआ है। बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। वहीं कुपोषित बच्चे भी जल्दी टीबी का शिकार हो जाते हैं। स्वस्थ्य बच्चे जब टीबी से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो वह भी बीमार हो जाते हैं। यदि बच्चे को दो हफ्ते या उससे ज्यादा समय से लगातार खांसी आती है तो जांच कराना आवश्यक है। टीबी के कीटाणु बच्चे के फेफड़ों से शरीर के अन्य अंगों में बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं। शुरुआत में बच्चों में हल्का बुखार बना रहता है।"


डब्ल्यूएचओ की ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस की वर्ष 2018 की रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व में वर्ष 2017 में एक करोड़ लोगों को टीबी हुई, इनमें से 58 लाख पुरूष, 32 लाख महिलाएं और दस लाख बच्चे हैं। दुनियाभर में टीबी के कुल मरीजों में दो तिहाई आठ देशों में हैं। इनमें से भारत में 27 फीसदी मरीज हैं, चीन में नौ फीसदी, इंडोनेशिया में आठ फीसदी, फिलीपीन में छह फीसदी, पाकिस्तान में पांच फीसदी, नाइजीरिया में चार फीसदी, बांग्लादेश में चार फीसदी तथा दक्षिण अफ्रीका में तीन फीसदी हैं।

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बच्चों में टीबी की उचित जांच और इलाज को लेकर लोग जागरूक नहीं हैं। ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि टीबी नाखुन और बाल छोड़कर कहीं भी हो सकती है। बच्चों में टीबी के 60 फीसदी मामले फेफड़ों से जुड़े होते हैं। बचपन में होने वाले टीबी से निपटना बहुत मुश्किल और जरूरी होता है क्योंकि इसकी जांच और इलाज में कई चुनौतियां होती हैं। जन्म के समय बच्चों को बीसीजी का टीका लगाना अनिवार्य होता है। 5 साल से कम उम्र के बच्चे में अगर टीबी के लक्षण दिखें तो मैनटॉक्स टेस्ट कराएं, जो वयस्कों के लिए बेहद किफायती और विश्वसनीय जांच है।


केंद्र सरकार के एक प्रोग्राम रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरक्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत चाहे गाँव का सरकारी अस्पताल हो या शहर का सरकारी अस्पताल हो, छोटे से लेकर कोई भी बड़ा सरकारी अस्पताल हो सभी जगहों पर टीबी की जांच निःशुल्क है। टीबी की एक और नई जांच आ गयी है जिसका नाम है जीन एक्सपर्ट मशीन के द्वारा टीबी के मरीज की जांच की जा सकती है। भारत देश में लगभग 650 जिले हैं और हर जिले में मशीन सरकार ने उपलब्ध कराई हैं। सरकार ने लगभग 1100 मशीने खरीदी हैं, जिसके टीबी की पहचान जल्दी हो सके। इसके अलावा एक्स-रे के द्वारा टीबी की पहचान की जाती है। इन सभी जांचों का खर्चा करीब 6000-7000 रूपये होता है लेकिन भारत सरकार द्वारा सभी जांचे मुफ्त की गई हैं।

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