और इस कारण से ये छोटी छोटी बीमारियां भी बन जाती हैं जानलेवा

Shrinkhala PandeyShrinkhala Pandey   27 Oct 2017 5:37 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
और इस कारण से ये छोटी छोटी बीमारियां भी बन जाती हैं जानलेवादवाएं हो रहीं बेअसर।

लखनऊ। जब भी हमें सर्दी, जुकाम या बुखार होता है तो हम बिना डॉक्टर के सलाह के मेडिकल स्टोर पर बताकर दवाइयां ले लेते हैं। डॉक्टर भी ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाएं ही लिखते हैं। लेकिन एंटीबायोटिक्स लेने से सभी बैक्टीरिया नहीं मरते और जो बच जाते हैं, वे और ज्यादा ताकतवर हो जाते हैं और इन बीमारियों को जानलेवा बना देते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन में कहा गया है कि 53 प्रतिशत भारतीय बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक लेते हैं और अगर सर्दी जुकाम जैसी मामूली बीमारी में डॉक्टर एंटीबायोटिक नहीं लिखते तो 48 प्रतिशत लोग डॉक्टर बदलने की सोचने लगते हैं। यही नहीं, 25 प्रतिशत डॉक्टर बच्चों के बुखार में भी एंटीबायोटिक लिखते हैं।

लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में औषधि विभाग के प्रो. आरके दीक्षित बताते हैं, “एंटीबायोटिक जब शरीर में जाती है तो शरीर के अंदर के कीटाणु उसे पहचान लेते हैं ये जब लगातार शरीर में पहुंचने लगता है तो असर खत्म हो जाता है क्योंकि हमारे बैक्टीरिया इसके आदी हो जाते हैं।”

डॉ दीक्षित आगे बताते हैं, “अगर शरीर में एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस डेवलेप हो गया तो बैक्टीरिया उससे मरेगा ही नहीं वो शरीर में पड़ा रहेगा उसपर दवा असर नहीं करेगी। हम अक्सर सुनते हैं कि वो सेप्टिक से मर गया ये इसी कारण होता है।”

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक 12 नए ऐसे रोगज़नक़ों की पहचान की गई है जो निमोनिया जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं और परेशानी की बात ये है कि बाज़ार में मौजूद एंटीबायोटिक इन नये रोगजनकों पर बेअसर साबित हो रही हैं। यानी हमें जल्द से जल्द नई एंटीबायोटिक दवाओं की ज़रूरत है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरी दुनिया में हर साल 7 लाख लोगों की मौत एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस की वजह से हो जाती है और वर्ष 2050 तक ये आंकड़ा 1 करोड़ प्रतिवर्ष भी हो सकता है। वहीं एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल के मामले में भारत नंबर एक पर है।

ये भी पढ़ें:पोल्ट्री फार्मों में इस्तेमाल की जा रही एंटीबायोटिक दवाएं आपको बना रही हैं रोगी

इनमें सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है टीबी के मरीज के लिए। टीबी से भारत में वर्ष 2015 में करीब 4 लाख 80 हज़ार लोगों की मौत हुई थी और आगे भी एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर होने से ये संख्या और बढ़ सकती है। डॉ दीक्षित इस बारे में कहते हैं आज से कुछ साल पहले भारत में टीबी का इलाज संभव था लेकिन एंटीबायोटिक के इस्तेमाल ने इसके बैक्टीरिया को बेअसर कर दिया और आज के समय में टीबी के मरीज बढ़ रहे हैं।

वायरल बीमारियों में बेअसर हैं एंटीबायोटिक्स

भारत के दवा बाजार में एंटीबायोटिक्स की हिस्सेदारी लगभग 43 प्रतिशत की है। एंटीबायोटिक्स दवाएं आमतौर पर इंफेक्शन व कई गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। अगर एंटीबायोटिक्स का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया, तो लाभ की जगह ये नुकसान पहुंचा सकती है। वायरल बीमारियों, जैसे- सर्दी ज़ुकाम, फ्लू, ब्रॉन्काइटिस, गले में इंफेक्शन आदि में इसका कोई फायदा नहीं होता।

ये हो सकते हैं नुकसान

देश के 52 प्रतिशत डॉक्टर मानते हैं कि सेहत बेहतर महसूस होते ही एंटीबायोटिक लेना नहीं छोडऩा चाहिए। जबकि एंटीबायोटिक दवाओं के लगातार सेवन से बैक्टीरिया इतने ताकतवर हो जाते हैं कि उन पर दवाओं का असर कम होता है। इसके अलावा ज्यादा एंटीबायोटिक खाने से डायरिया, कमजोरी, मुंह का संक्रमण, व पाचन तंत्र में कमजोरी का खतरा बढ़ जाता है। इसके साथ-साथ किडनी में स्टोन, खून का थक्का बनने, सुनाई न पडऩे जैसी शिकायतें भी बढ़ रही हैं।

बिना डॉक्टरी सलाह के न लें दवाएं

एंटीबायोटिक्स दवाएं सेहत के लिए अच्छी न होकर स्वास्थ्यकर बैक्टीरिया को भी मार देती हैं। हां, बैक्टीरियल इंफेक्शन से होनेवाली हेल्थ प्रॉब्लम्स में कई बार एंटीबायोटिक्स लेना जरूरी हो जाता है। इसलिए एंटीबायोटिक्स तभी लें, जब जरूरी हो और जब डॉक्टर ने प्रिस्क्राइब किया हो ताकि आपके शरीर पर इन दवाओं का रेज़िस्टेंस न विकसित हो पाए और जरूरत होने पर एंटीबायोटिक दवाएं अपना सही असर दिखा सकें।

मेडिकल स्टोर से दवा लेना पड़ सकता है भारी।

ये भी पढ़ें:सावधान: हर्बल दवाएं भी पहुंचा सकती हैं नुकसान

ये भी पढ़ें:जान लेंगी ये नकली दवाएं

ये भी पढ़ें:एक्सपायरी डेट से पहले ही ख़राब हो रहीं दवाएं

           

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.