जानिए कैसे देश का पहला टीबी मुक्त जिला बना बडगाम?
Mudassir Kuloo | May 12, 2021, 12:30 IST
जम्मू-कश्मीर के बडगाम को हाल ही में देश का पहला टीबी-मुक्त जिला घोषित किया गया है। इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप को हाल ही में टीबी-मुक्त घोषित किया गया है। ऐसा तब संभव हुआ है, जब दुनिया के लगभग 30 प्रतिशत टीबी के मामले अपने देश में हैं।
बडगाम (जम्मू-कश्मीर)। जहां एक ओर देश में कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई कठिन होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ गंभीर संक्रामक बीमारी तपेदिक (टीबी) के मामले में राहत देने वाली खबर सामने आई है। जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप को हाल ही में टीबी-मुक्त घोषित किया गया है। भारत में टीबी मुक्त होने वाले ये पहले राज्य हैं। ऐसा तब संभव हुआ है, जब दुनिया के लगभग 30 प्रतिशत टीबी के मामले अपने देश में हैं और भारत दुनिया की टीबी राजधानी के रूप में जाना जाता है।
इस साल मार्च में हुई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम तकनीकी सलाहकार नेटवर्क टीमों की एक बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इसे तपेदिक के खिलाफ लड़ाई में एक "ऐतिहासिक उपलब्धि" बताया। भारत सरकार ने 2025 तक देश को टीबी मुक्त घोषित करने का लक्ष्य रखा है।
बडगाम का टीबी-मुक्त होने का सफर आसान नहीं था। देश के पैंसठ जिलों ने इसके लिए आवेदन किया था। इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (IAPSM, श्रीनगर के सहयोग से जिलों से एकत्र किए गए आंकड़ों को केंद्रीय टीबी प्रभाग द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सत्यापित किया गया था। 65 जिलों में से स्वास्थ्य मंत्रालय ने 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस पर बडगाम और लक्षद्वीप को टीबी मुक्त घोषित किया।
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर की टीबी अधिकारी रेहाना कौसर ने कहा, "टीबी मुक्त घोषित होने के लिए, जिले में आधारभूत वर्ष की तुलना में 80 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।"
जिले में लगभग 3,296 घरों का सर्वेक्षण किया गया, जिसके तहत श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक चिकित्सा विभाग की आईएपीएसएम टीम ने डेटा का सत्यापन किया। यह सर्वेक्षण भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), नई दिल्ली और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, चेन्नई द्वारा किया गया था।
बडगाम के जिला टीबी अधिकारी अधफर यासीन कादरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बडगाम को विभिन्न मापदंडों के आधार पर टीबी-मुक्त घोषित किया गया है। प्रति लाख जनसंख्या पर सर्वे, दवा बिक्री के आंकड़ों और रोगियों की संख्या जिनका परीक्षण किया गया, इस प्रक्रिया का हिस्सा थे, जिसके बाद बडगाम को टीबी मुक्त घोषित किया गया।" मौजूदा वक्त में बडगाम जिले की 735,753 से अधिक आबादी (2011 की जनगणना) में 170 टीबी रोगी हैं।
टीबी काफी हद तक कोविड-19 की तरह है। जैसे कोरोना छूने या इंसान के ड्रॉपलेट्स के माध्यम से फैल सकता है। टीबी के फैलने के पीछे भी ऐसे ही माध्यम हैं, जैसा कि 35 वर्षीय जाविद अहमद ने बताया।
अक्टूबर 2019 में एक किराने की दुकान के मालिक अहमद को कफ में खून और सीने में दर्द की शिकायत हुई, तो उन्होंने श्रीनगर के चेस्ट डिजीज अस्पताल में एक डॉक्टर से मुलाकात की, जहां कई परीक्षण के बाद बताया गया कि उन्हें टीबी है।
Also Read: टीबी को खत्म करने में खास भूमिका निभा सकता है न्यूट्री गार्डन!
मध्य कश्मीर के बडगाम जिले के निवासी अहमद ने कहा, "जब लोगों को मेरी बीमारी के बारे में पता चला, तो वे मुझसे दूर रहे और मुझे 'टीबी का मरीज' बताया।" हालांकि सरकारी अस्पताल ने उनके लिए डायरेक्टली आब्सर्व्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स (डॉट्स) शुरू कर दिया। इसके तहत उन्हें छह महीने तक इलाज दिया गया, जिसके बाद वे टीबी-मुक्त हो गए।
अहमद ने अपनी तकलीफ बताते हुए पूछा, "ये छह महीने मेरे लिए दर्दनाक थे। यहां तक कि मेरे करीबी दोस्त मुझसे दूर रहे। मुझे नहीं पता कि टीबी रोगियों को उनके रिश्तेदारों द्वारा भेदभाव, सामाजिक अलगाव और उपेक्षा का सामना क्यों करना पड़ता है। इसकी चपेट में कोई भी आ सकता है। ऐसे में यह मरीज की गलती कैसे है।" उन्होंने आगे कहा, "केवल मेरी पत्नी और बड़े भाई थे, जो मेरे साथ खड़े थे।"
टीबी मरीज के एक्सरे को देखती डॉक्टर। Photo: Bijoyeta Das/IPS सामाजिक अलगाव होता है दर्दनाक
अहमद बडगाम में टीबी के बचे लोगों में से एक है, जिनका सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में निशुल्क इलाज किया गया। जिले में उनके जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने टीबी का इलाज करवाया और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं।
बडगाम की आलिया जान को कुछ हफ्ते के लिए सूखी खांसी का सामना करना पड़ा। अस्पताल जाकर टेस्ट करवाया तो पाया कि उसे टीबी है। 28 वर्षीय आलिया ने गाँव कनेक्शन को बताया। "मैंने बडगाम में स्वास्थ्य केंद्र गई और छह महीने तक इलाज जारी रखा। स्वास्थ्य अधिकारी लगातार मेरी निगरानी कर रहे थे।" उन्होंने आगे कहा, "मेरे साथ मेरे माता-पिता को भी निगरानी में रखा गया था।"
जान के अनुसार, बीमारी इतनी बुरी नहीं थी, जितना कि सामाजिक अलगाव, जो दर्दनाक था। उन्होंने कहा, "मेरे रिश्तेदार कहते थे कि टीबी के कारण मेरे लिए शादी करना कितना मुश्किल होगा। इस तरह का भेदभाव सबसे बुरा है।"
निगरानी, स्क्रीनिंग और परीक्षण
बडगाम जिले ने टीबी को नियंत्रित करने के लिए कैसे काम किया, यह बताते हुए टीबी अधिकारी रेहाना कौसर ने कहा, "टीबी निगरानी टीमों ने कई साल काम किया। वे घर-घर जाकर लोगों से इस बारे में पूछती थी और जांच करती थी।"
उन्होंने कहा, "एक बार मामला सामने आने के बाद हम मरीज का इलाज शुरू करते हैं और यह तब तक जारी रहता है जब तक कि बीमारी खत्म नहीं हो जाती है।" उन्होंने यह भी कहा कि रोगियों को सावधनी पूर्वक देखभाल की जाती है ताकि उनके जरिए दूसरों में ये संक्रमण न फैले। उन्होंने कहा, "एक मरीज एक साल में 10 लोगों को संक्रमित कर सकता है। हम मरीज पर नजर रखते हैं और दो साल तक उनसे जानकारी लेते रहते हैं।"
एक सामान्य टीबी रोगी को ठीक होने में छह महीने लगते हैं। जबकि गंभीर मामलों में टीबी मुक्त होने में 18 महीने से दो साल तक भी लग सकते हैं। खांसी, दो सप्ताह से अधिक समय तक बुखार और अचानक से वजन कम होना टीबी के कुछ प्रमुख लक्षण हैं। रोगी को पौष्टिक आहार की कमी न हो इसके लिए केंद्र सरकार 500 रुपये प्रतिमाह देती है।
Also Read: जानकारी के अभाव और समय पर जांच न हो पाने के कारण नहीं हो पाता टीबी का इलाज कौसर के अनुसार, 2015-2016 में जिले में टीबी के 257 मामले थे। 2020-2021 में मार्च तक 170 मामले थे। उन्होंने कहा,"कुल मामलों में लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट है, लेकिन बीमारी के मामलों में 80 प्रतिशत की कमी है।"
कादरी ने स्पष्ट किया, "जिले की प्रति लाख आबादी में टीबी के मामलों में 80 फीसदी की गिरावट आई है। उदाहरण के लिए, 2015 में अगर दस नमूने एकत्र किए गए और हमें एक पॉजिटिव केस मिला, अब हमें एक पॉजिटिव केस खोजने के लिए 180 सैंपल लेने होते हैं। जिले के सभी मौजूदा 170 टीबी के मामले सिर्फ स्थानीय आबादी के नहीं हैं, बल्कि इसमें बाहरी लोग भी शामिल हैं, जो मजदूरी करने यहां आते हैं।
हालांकि टीबी अधिकारी रेहाना कौसर ने स्पष्ट किया, "बडगाम को देश का पहला टीबी-मुक्त जिला घोषित किया गया है, लेकिन टीबी मुक्त होने का मतलब शून्य मामले नहीं हैं। इसका मतलब है कि इसके प्रसार को रोकने के लिए किए गए उपायों के कारण अब बहुत कम मामले सामने आएंगे।"
इस बीच कश्मीर संभाग के सभी 10 जिलों में टीबी के मामलों में भी भारी गिरावट आई है। 2018 में 4,774 मामले दर्ज किए और अगले वर्ष 2019 में 4080 मामलों मिले। 2020 में यह संख्या घटकर 2836 हो गई। इस प्रकार दो वर्षों में 41 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
Source: India TB Report 2020
बडगाम जिले के प्रयासों की सराहना करते हुए श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रमुख मोहम्मद सलीम खान ने कहा कि कश्मीर से केवल बडगाम जिले ने टीबी मुक्त सर्वेक्षण के लिए आवेदन किया था।
सलीम खान, जो कश्मीर में सत्यापन टीम (IAPSM)के नोडल अधिकारी भी हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया,
"जीएमसी श्रीनगर की एक टीम ने आंकड़ों का सत्यापन किया और उनकी गतिविधियों की निगरानी की। इस दौरान यह पाया गया कि बडगाम जिले ने टीबी की घटनाओं में 80 प्रतिशत कमी के साथ अधिकतम परिणाम प्राप्त किए हैं, जो देश में सबसे अधिक थे।"
उनके अनुसार, बडगाम अगले तीन वर्षों तक निगरानी में रहेगा। उन्होंने बेहतर स्थिति के लिए कुशल स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और जनता के सहयोग को जिम्मेदार ठहराया।
(इस स्टोरी में टीबी से ठीक हुए लोगों के नाम उनके अनुरोध पर बदले गए हैं)
खबर को अंग्रेजी में यहां पढ़ें
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इस साल मार्च में हुई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम तकनीकी सलाहकार नेटवर्क टीमों की एक बैठक में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इसे तपेदिक के खिलाफ लड़ाई में एक "ऐतिहासिक उपलब्धि" बताया। भारत सरकार ने 2025 तक देश को टीबी मुक्त घोषित करने का लक्ष्य रखा है।
बडगाम का टीबी-मुक्त होने का सफर आसान नहीं था। देश के पैंसठ जिलों ने इसके लिए आवेदन किया था। इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (IAPSM, श्रीनगर के सहयोग से जिलों से एकत्र किए गए आंकड़ों को केंद्रीय टीबी प्रभाग द्वारा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सत्यापित किया गया था। 65 जिलों में से स्वास्थ्य मंत्रालय ने 24 मार्च को विश्व क्षयरोग दिवस पर बडगाम और लक्षद्वीप को टीबी मुक्त घोषित किया।
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जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर की टीबी अधिकारी रेहाना कौसर ने कहा, "टीबी मुक्त घोषित होने के लिए, जिले में आधारभूत वर्ष की तुलना में 80 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।"
जिले में लगभग 3,296 घरों का सर्वेक्षण किया गया, जिसके तहत श्रीनगर के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के सामुदायिक चिकित्सा विभाग की आईएपीएसएम टीम ने डेटा का सत्यापन किया। यह सर्वेक्षण भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), नई दिल्ली और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, चेन्नई द्वारा किया गया था।
बडगाम के जिला टीबी अधिकारी अधफर यासीन कादरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बडगाम को विभिन्न मापदंडों के आधार पर टीबी-मुक्त घोषित किया गया है। प्रति लाख जनसंख्या पर सर्वे, दवा बिक्री के आंकड़ों और रोगियों की संख्या जिनका परीक्षण किया गया, इस प्रक्रिया का हिस्सा थे, जिसके बाद बडगाम को टीबी मुक्त घोषित किया गया।" मौजूदा वक्त में बडगाम जिले की 735,753 से अधिक आबादी (2011 की जनगणना) में 170 टीबी रोगी हैं।
Budgam declared as first TB free District in the country.
Dr Adhafar Yasin DTO Budgam receiving award from Honble Minister for Health today at Dehli @diprjk @DC_Budgam pic.twitter.com/g5EAGMOpxi
— Shahbaz Mirza (@shahbazmirza9) March 24, 2021
रोग और उससे उपजी दुर्भावना
अक्टूबर 2019 में एक किराने की दुकान के मालिक अहमद को कफ में खून और सीने में दर्द की शिकायत हुई, तो उन्होंने श्रीनगर के चेस्ट डिजीज अस्पताल में एक डॉक्टर से मुलाकात की, जहां कई परीक्षण के बाद बताया गया कि उन्हें टीबी है।
Also Read: टीबी को खत्म करने में खास भूमिका निभा सकता है न्यूट्री गार्डन!
मध्य कश्मीर के बडगाम जिले के निवासी अहमद ने कहा, "जब लोगों को मेरी बीमारी के बारे में पता चला, तो वे मुझसे दूर रहे और मुझे 'टीबी का मरीज' बताया।" हालांकि सरकारी अस्पताल ने उनके लिए डायरेक्टली आब्सर्व्ड ट्रीटमेंट शॉर्ट कोर्स (डॉट्स) शुरू कर दिया। इसके तहत उन्हें छह महीने तक इलाज दिया गया, जिसके बाद वे टीबी-मुक्त हो गए।
अहमद ने अपनी तकलीफ बताते हुए पूछा, "ये छह महीने मेरे लिए दर्दनाक थे। यहां तक कि मेरे करीबी दोस्त मुझसे दूर रहे। मुझे नहीं पता कि टीबी रोगियों को उनके रिश्तेदारों द्वारा भेदभाव, सामाजिक अलगाव और उपेक्षा का सामना क्यों करना पड़ता है। इसकी चपेट में कोई भी आ सकता है। ऐसे में यह मरीज की गलती कैसे है।" उन्होंने आगे कहा, "केवल मेरी पत्नी और बड़े भाई थे, जो मेरे साथ खड़े थे।"
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अहमद बडगाम में टीबी के बचे लोगों में से एक है, जिनका सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में निशुल्क इलाज किया गया। जिले में उनके जैसे कई लोग हैं, जिन्होंने टीबी का इलाज करवाया और अब सामान्य जीवन जी रहे हैं।
बडगाम की आलिया जान को कुछ हफ्ते के लिए सूखी खांसी का सामना करना पड़ा। अस्पताल जाकर टेस्ट करवाया तो पाया कि उसे टीबी है। 28 वर्षीय आलिया ने गाँव कनेक्शन को बताया। "मैंने बडगाम में स्वास्थ्य केंद्र गई और छह महीने तक इलाज जारी रखा। स्वास्थ्य अधिकारी लगातार मेरी निगरानी कर रहे थे।" उन्होंने आगे कहा, "मेरे साथ मेरे माता-पिता को भी निगरानी में रखा गया था।"
जान के अनुसार, बीमारी इतनी बुरी नहीं थी, जितना कि सामाजिक अलगाव, जो दर्दनाक था। उन्होंने कहा, "मेरे रिश्तेदार कहते थे कि टीबी के कारण मेरे लिए शादी करना कितना मुश्किल होगा। इस तरह का भेदभाव सबसे बुरा है।"
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निगरानी, स्क्रीनिंग और परीक्षण
बडगाम जिले ने टीबी को नियंत्रित करने के लिए कैसे काम किया, यह बताते हुए टीबी अधिकारी रेहाना कौसर ने कहा, "टीबी निगरानी टीमों ने कई साल काम किया। वे घर-घर जाकर लोगों से इस बारे में पूछती थी और जांच करती थी।"
उन्होंने कहा, "एक बार मामला सामने आने के बाद हम मरीज का इलाज शुरू करते हैं और यह तब तक जारी रहता है जब तक कि बीमारी खत्म नहीं हो जाती है।" उन्होंने यह भी कहा कि रोगियों को सावधनी पूर्वक देखभाल की जाती है ताकि उनके जरिए दूसरों में ये संक्रमण न फैले। उन्होंने कहा, "एक मरीज एक साल में 10 लोगों को संक्रमित कर सकता है। हम मरीज पर नजर रखते हैं और दो साल तक उनसे जानकारी लेते रहते हैं।"
एक सामान्य टीबी रोगी को ठीक होने में छह महीने लगते हैं। जबकि गंभीर मामलों में टीबी मुक्त होने में 18 महीने से दो साल तक भी लग सकते हैं। खांसी, दो सप्ताह से अधिक समय तक बुखार और अचानक से वजन कम होना टीबी के कुछ प्रमुख लक्षण हैं। रोगी को पौष्टिक आहार की कमी न हो इसके लिए केंद्र सरकार 500 रुपये प्रतिमाह देती है।
Also Read: जानकारी के अभाव और समय पर जांच न हो पाने के कारण नहीं हो पाता टीबी का इलाज कौसर के अनुसार, 2015-2016 में जिले में टीबी के 257 मामले थे। 2020-2021 में मार्च तक 170 मामले थे। उन्होंने कहा,"कुल मामलों में लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट है, लेकिन बीमारी के मामलों में 80 प्रतिशत की कमी है।"
कादरी ने स्पष्ट किया, "जिले की प्रति लाख आबादी में टीबी के मामलों में 80 फीसदी की गिरावट आई है। उदाहरण के लिए, 2015 में अगर दस नमूने एकत्र किए गए और हमें एक पॉजिटिव केस मिला, अब हमें एक पॉजिटिव केस खोजने के लिए 180 सैंपल लेने होते हैं। जिले के सभी मौजूदा 170 टीबी के मामले सिर्फ स्थानीय आबादी के नहीं हैं, बल्कि इसमें बाहरी लोग भी शामिल हैं, जो मजदूरी करने यहां आते हैं।
हालांकि टीबी अधिकारी रेहाना कौसर ने स्पष्ट किया, "बडगाम को देश का पहला टीबी-मुक्त जिला घोषित किया गया है, लेकिन टीबी मुक्त होने का मतलब शून्य मामले नहीं हैं। इसका मतलब है कि इसके प्रसार को रोकने के लिए किए गए उपायों के कारण अब बहुत कम मामले सामने आएंगे।"
इस बीच कश्मीर संभाग के सभी 10 जिलों में टीबी के मामलों में भी भारी गिरावट आई है। 2018 में 4,774 मामले दर्ज किए और अगले वर्ष 2019 में 4080 मामलों मिले। 2020 में यह संख्या घटकर 2836 हो गई। इस प्रकार दो वर्षों में 41 प्रतिशत की गिरावट देखी गई।
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बडगाम जिले के प्रयासों की सराहना करते हुए श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रमुख मोहम्मद सलीम खान ने कहा कि कश्मीर से केवल बडगाम जिले ने टीबी मुक्त सर्वेक्षण के लिए आवेदन किया था।
सलीम खान, जो कश्मीर में सत्यापन टीम (IAPSM)के नोडल अधिकारी भी हैं, ने गांव कनेक्शन को बताया,
"जीएमसी श्रीनगर की एक टीम ने आंकड़ों का सत्यापन किया और उनकी गतिविधियों की निगरानी की। इस दौरान यह पाया गया कि बडगाम जिले ने टीबी की घटनाओं में 80 प्रतिशत कमी के साथ अधिकतम परिणाम प्राप्त किए हैं, जो देश में सबसे अधिक थे।"
उनके अनुसार, बडगाम अगले तीन वर्षों तक निगरानी में रहेगा। उन्होंने बेहतर स्थिति के लिए कुशल स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और जनता के सहयोग को जिम्मेदार ठहराया।
(इस स्टोरी में टीबी से ठीक हुए लोगों के नाम उनके अनुरोध पर बदले गए हैं)
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