उत्तर प्रदेश: भाजपा के 6 साल के कार्यकाल में सिर्फ 20 रुपए प्रति कुंतल बढ़ा गन्ने का रेट

उत्तर प्रदेश में वर्ष 1999 से अब तक भाजपा अलग-अलग वर्षों में छह साल तक सरकार में रही है। इन छह वर्षों में गन्ने का राज्य परामर्शित मूल्य मात्र 20 रुपए बढ़ा है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   26 Dec 2019 6:15 AM GMT

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उत्तर प्रदेश: भाजपा के 6 साल के कार्यकाल में सिर्फ 20 रुपए प्रति कुंतल बढ़ा गन्ने का रेट

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान एक बार फिर नाराज हैं। 11 दिसंबर 2019 को राजधानी लखनऊ सहित प्रदेश के अलग-अलग जिलों में किसानों ने गन्ना जलाकर अपना विरोध जताया। किसानों का प्रदर्शन अभी तो रुक गया है लेकिन उन्होंने कहा है कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होंगी तो वे एक बार फिर सड़कों पर उतरेंगे। किसानों का आरोप है कि लागत के अनुसार सरकार उन्हें कीमत नहीं दे रही है।

राज्य की भाजपा सरकार ने लगातार दूसरे साल गन्ना मूल्य में कोई वृद्धि नहीं की है। वर्ष 2019-20 के लिए गन्ने का राज्य परामर्शित मूल्य (एसएपी) पिछले वर्ष की तरह ही अगैती प्रजाति (अर्ली वैरायटी) के लिए 325, सामान्य प्रजाति के लिए 315 और अनुपयुक्त प्रजाति के लिए 310 रुपए प्रति कुंतल गन्ना मूल्य निर्धारित किया गया है। पिछले साल वर्ष 2018-19 में भी यही कीमत थी, जबकि पेराई सत्र 2017-18 में योगी सरकार ने गन्ने की कीमत में मात्र 10 रुपए प्रति कुंतल की मामूली बढ़ोतरी की थी।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 1999 से अब तक भाजपा छह साल तक सरकार में रही है। इन छह वर्षों में गन्ने का राज्य परामर्शित मूल्य मात्र 20 रुपए बढ़ा है। प्रदेश में गन्ने का एसएपी सबसे ज्यादा वर्ष 2012-13 में बढ़ा था। तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे और उनकी सरकार ने एसएपी की दरों में 40 रुपए प्रति कुंतल की बढ़ोतरी की थी।

इससे पहले वर्ष 1999 से 2001 के बीच भी जब भाजपा की सरकार थी तब एसएपी में महज 10 रुपए की बढ़ोतरी हुई थी। समाजवादी पार्टी ने अपने 8 साल के कार्यकाल में 95 रुपए जबकि बसपा ने अपने 7 साल के कार्यकाल में 120 रुपए की बढ़ोतरी की है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तरह केंद्र सरकार गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) तय करती है। लेकिन कुछ प्रदेश सरकार इसके ऊपर राज्य परामर्श मूल्य तय करती हैं। एफआरपी वह न्यूनतम दाम होता है जो शुगर मिलों को किसान को देना ही पड़ता है।


चीनी उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश टॉप पर है। प्रदेश में 35 लाख से अधिक किसान परिवार गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। वर्ष 2019-20 में 26.79 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की खेती हो रही है और प्रदेश में वर्तमान पेराई सत्र में 117 चीनी मिल संचालित हैं। प्रदेश में चीनी उद्योग करीब 40 हजार करोड़ रुपयों का है।

देश के गन्ना किसानों को केंद्र सरकार से उस समय झटका लगा जब पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए पेराई सीजन 2019-20 के लिए गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में बढ़ोतरी नहीं हुई। केंद्र सरकार ने पेराई सीजन 2019-20 के लिए गन्ने के एफआरपी को पिछले साल के 275 रुपए प्रति कुंतल पर ही स्थिर रखा है।

केंद्र सरकार द्वारा की जाने वाली एफआरपी कर दरें पिछले १० वर्षों की। स्त्रोत- इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन

उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के ब्लॉक चरथावर, गांव आखलोरा के 39 वर्षीय किसान पीयूष हमें बढ़ती कीमतों का गणित समझाते हैं। वे कहते हैं, " तीन साल पहले डीएपी की एक बोरी 1050 रुपए की थी जो आज 1450 रुपए की है। बिजली की कीमतें बढ़ गईं। निराई-गुड़ाई की कीमत पिछले तीन साल में दोगुनी हो गई है लेकिन गन्ने की कीमत बढ़ी मात्र 10 रुपए। हमारी लागत दोगुनी हो गई लेकिन आय बढ़ने की बजाय घट रही है।"

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" पहले मैं 30 बीघा खेत में गन्ना लगाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षों से थोड़ा-थोड़ा कम करके अब 20 बीघे में गन्ना लगा रहा हूं। पता नहीं हमारी आय दोगुनी कैसे होगी।" पीयूष आगे कहते हैं।

गन्ना किसानों के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे किसान नेता और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय संयोजक सरदार वीएम सिंह कहते हैं, "19 अक्टूबर 2019 को पहली बार किसानों ने गन्ने का रेट तय किया। किसानों को उम्मीद थी कि प्रदेश सरकार उन्हें 436 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से कीमत देगी। उत्तर प्रदेश के गन्ना मंत्री ने विधानसभा में पिछले साल कहा था कि एक कुंतल गन्ने के पीछे लागत 290 रुपए आती है, और अब तो बढ़कर 296-297 रुपए हो गई है।"

"देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम किसानों को लागत का डेढ़ गुना दे रहे हैं, उसी हिसाब से किसानों ने 435 रुपए प्रति कुंतल की मांग की थी। पेराई सीजन शुरू हुए डेढ़ महीने बीत चुके हैं लेकिन प्रदेश सरकार ने कीमत नहीं बढ़ाई। हर जगह महंगाई बढ़ी है लेकिन गन्ने की कीमत वही है।" वे आगे कहते हैं।

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प्रदेश सरकार ने भले ही गन्ना कीमतों में बढ़ोतरी नहीं की है लेकिन प्रदेश चीनी उत्पादन के मामले में पहले नंबर पर बना हुआ है जबकि देशभर में चीनी उत्पादन घटने का अनुमान है। 19 दिसंबर को जारी इस्मा (इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि चालू सीजन में राज्य में 15 दिसंबर तक 21.1 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका जो कि पिछले साल की अपेक्षा 12.17 फीसदी ज्यादा है।

राज्य में इस समय 119 चीनी मिलों में गन्ना पेराई का काम चल रहा है जबकि पिछले साल इस समय 116 चीनी मिलों में पेराई चल रही थी। इस्मा निजी मिलों का सबसे बड़ा संगठन है।

वर्ष 2018-19 में उत्तर प्रदेश का चीनी उत्पादन करीब 1.18 करोड़ टन रहा जो 2017-18 के 1.2 करोड़ टन से कुछ अधिक है। 2019-20 में भारत का चीनी उत्पादन करीब 14 फीसदी तक गिरकर लगभग 2.8 करोड़ रहने का अनुमान है, जबकि मौजूदा चीनी सीजन 2018-19 में यह 3.3 करोड़ टन है।

देश में चीनी उत्पादन 15 दिसंबर तक 35 फीसदी गिरकर 45.8 लाख टन पर आ गया है। मार्केटिंग वर्ष 2018-19 में इसी अवधि में चीनी की उत्पादन 70.5 लाख टन था। इस्मा ने बताया कि 15 दिसंबर 2019 तक 406 मिलों में गन्ने की पेराई चल रही है जबकि पिछले साल इस अवधि में 473 मिलों में पेराई चल रही थी।

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कीमत न बढ़ाये जाने के मुद्दे पर भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक गांव कनेक्शन से कहते हैं, " गन्ना मूल्य में बढ़ोतरी न करना प्रदेश सरकार का फैसला बिल्कुल गलत है। प्रदेश सरकार किसानों को आत्महत्या के रास्ते पर ले जा रही है। पिछले तीन साल में हमारी लागत काफी बढ़ी है। सरकार मिलों को फायदा पहुंचा रही है।"

वे आगे कहते हैं, "आप रिकवरी दर को देख लीजिए। पिछले तीन वर्षों में गन्ने की रिकवरी दर को साढ़े 8 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया गया है। इसका पूरा लाभ मिल मालिकों को मिल रहा है। किसानों को समय पर पैसे नहीं मिलते, किसानों का फायदा हर तरह से कम किया जा रहा है। फिर भी सरकार कहती है कि ये किसानों की सरकार है।"

मुजफ्फरनगर में गन्ने के खेत में बैठा किसान।

"आप पिछले कुछ सालों की महंगाई दर देख लीजिए। महंगाई तो सबके लिए बढ़ी है फिर किसानों को उस हिसाब रेट भी तो मिलने चाहिए। शाहजहांपुर सुगर केन इंस्टीटयूट कहता है कि एक कुंतल गन्ने की खेती में 304 रुपए का खर्च आता है और सरकार हमें 325 रुपए तक दे रही है। अब इसमें एक किसान को कितना मुनाफा होगा ? " मलिक बताते हैं।

भारतीय किसान यूनियन के मंडल अध्यक्ष (मुजफ्फरनगर) राजू अहलावत कहते हैं, " प्रदेश की सरकार को आये 30-31 महीने हो गये लेकिन इन्होंने गन्ना किसानों की सुध ही नहीं ली। पिछले साल 10 रुपए बढ़ाया था इस साल वह भी नहीं बढ़ाया। शुगर लॉबी के दबाव में सरकार किसानों की सुन ही नहीं रही। खाद, बिजली सब महंगा हो गया है। बिजली तो देश में सबसे ज्यादा महंगी हमारे प्रदेश में है। अकेले मेरे जिले मुजफ्फरनगर में ही गन्ना मिलों पर किसानों का 550 करोड़ रुपए बकाया है। मिलों को तो सरकार राहत के नाम पर करोड़ों रुपए दे रही है लेकिन किसानों के लिए पैसे नहीं है।"


उत्तर प्रदेश शुगर मिल एसोसिएशन से मिली जानकारी के अनुसार 23 दिसंबर 2019 तक राज्य की चीनी मिलों पर किसानों का पेराई सीजन 2018-19 का 2,418 करोड़ रुपए बकाया बचा हुआ है। इसमें सबसे ज्यादा प्राइवेट चीनी मिलों पर 2,092 करोड़ रुपए है। इसके अलावा राज्य की कॉपरेटिव चीनी मिलों पर 303 करोड़ और कॉपरेशन की चीनी मिलों पर 21.69 करोड़ रुपए बकाया है। पेराई सीजन 2017-18 का भी राज्य की चीनी मिलों पर 40.54 करोड़ रुपए बकाया है।

बिजनौर के तहसील चांद, गांव सिकंदर नगला के गन्ना किसान अरविंद शर्मा कहते हैं कि हमारी लागत इतनी ज्यादा इसलिए बढ़ गई है क्योंकि प्रदेश सरकार ने बिजली की दरों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की है। वे बताते हैं, " मैं आपको एक एकड़ का गणित समझाता हूं। अगर आपने फरवरी में गन्ना लगाया है कि तो एक एकड़ में कम से कम 5 बार पानी देना लगेगा। हर बार सिंचाई के लिए कम से कम 8 घंटे ट्यूबवेल चलाना पड़ता है। एक बार में कम से कम 500 रुपए की बिजली खर्च होती है, मतलब एक एकड़ में कम से कम 2500 रुपए का खर्च आ रहा सिंचाई में।"


"यही बुवाई अगर अप्रैल महीने में होती है तो और अच्छी बारिश हो जाती है तो भी कम से कम चार बार सिंचाई तो करनी ही पड़ती है। इस हिसाब से खर्च 2000 रुपए प्रति एकड़ समझ लीजिये। और अगर बीच-बीच में बिजली जाती-आती रहती है तो बिजली की खपत ज्यादा आती है। एक एकड़ में गन्ना सिंचाई में जो खर्च तीन साल पहले 1000 से 1500 रुपए आता था वह 2500 से 2000 रुपए हो गया है।" अरविंद बताते हैं।

वे आगे कहते हैं, " ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों लोगों के बिजली ने सबसे ज्यादा बजट बिगाड़ा है। अगर मैं ही अपनी ही बात करूं तो ट्यूबवेल सहित घर का कुल बिजली बिल अब साल का 35 से 36 हजार रुपए आता है। यही बिल तीन साल पहले तक 14 हजार रुपए तक आता था।

उत्तर प्रदेश की बिजली दर देश में सबसे ज्यादा है। सितंबर 2019 में प्रदेश सरकार ने बिजली की दरों में 12 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। जबकि वर्ष 2019 में देश के दूसरे प्रदेशों की बात करेंगे तो मध्य प्रदेश में 7 फीसदी, कर्नाटक में 4.28, पंजाब में 2.14, उत्तराखंड में 2.79 फीसदी बिजली की दरें बढ़ाई गईं। दिल्ली ने तो दरों में कटौती की है।


  

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