"लॉकडाउन में मजदूरी बंद है ऐसे में पानी खरीद कर प्यास बुझाएं या आटा खरीदकर भूख मिटाएं"

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लॉकडाउन में मजदूरी बंद है ऐसे में पानी खरीद कर प्यास बुझाएं या आटा खरीदकर भूख मिटाएं

राजस्थान के बाड़मेर जिले में तापमान बढ़ने से कई क्षेत्रों में पानी का संकट बढ़ गया है।

"लॉक डाउन में मजदूरी बंद है। ऐसे में पानी खरीद कर प्यास बुझाएं या आटा खरीदकर भूख मिटाएं, इसी असमंजस में दिन काट रहे हैं। गरीबी में आटा गीला वाली कहावत इस लॉक डाउन में उल्टी हो गई। आटे का तो किसी प्रकार से जुगाड़ कर लेते हैं, लेकिन गीला करने के लिए पानी नहीं है, " करणीसर गाँव के रहने वाले बाबूराम भील इन दिनों पानी के संकट से जूझ रहे हैं।

बाड़मेर जिले के करणीसर गांव में भील समुदाय की 25 ढाणियों में पेयजल विभाग की तरफ से पानी सप्लाई नहीं हो रहा है। कुछ साल पहले एक जीएलआर बनाकर उसे पाईप लाइन से जोड़ा गया था, लेकिन उसमें पानी कभी नहीं आया। व्यक्तिगत टांकों और तालाबों में पानी सूख चुका है।

"हर साल गर्मी में यही हाल होता है। पिछले दो सालों से जल विभाग के अधिकारियों को इस समस्या के बारे में बता रहे हैं लेकिन आजतक कोई समाधान नहीं निकला, " बाबूराम बोले।


देश में कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए जहां एक तरफ बार-बार साबुन से हाथ धोने की बात कही जा रही हैं वहीं दूसरी तरफ ये बात पानी के संकट से जूझ रहे क्षेत्रों के लिए केवल एक कहावत साबित हो रही है।

पाटोदी पंचायत समिति स्थित बड़ना वाचारणान गांव के रहने वाले रिमूखां बताते हैं, "पानी का टैंक मंगवाएंगे तो 1200 रूपये पड़ेगा। लॉक डाउन में मजदूरी बंद है, हमारे हाथ खाली हैं। पानी कैसे खरीदें? जब पैसा नहीं तो पानी कैसे खरीदें?"

चलने-फिरने में अक्षम रिमूखां कहते हैं, "टांकों में जमा किया बरसात का पानी खत्म हो गया। पशुओं को पांच-छः किलोमीटर दूर कहीं ले जाकर पानी पिला सकते हैं लेकिन इन्सानों के लिए पानी की बहुत मुश्किल है। कई बार शिकायत कर चुका हूँ पर विभाग के अधिकारी अलग-अलग तर्क देकर समस्या नहीं सुलझा रहे हैं।"

बाड़मेर का आम जन मांस जहां एक ओर पानी के संकट से जूझ रहा है वहीं दूसरी ओर वाटर माफियाओं के लिए चांदी बटोरने का ये बेहतरीन जरिया बना हुआ है। इंदिरा गांधी नहर परियोजना के पाइप लाइन द्वारा पानी सप्लाई सिस्टम वाटर माफियाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है। ये सेंधमारी करके प्रतिदिन लाखों लीटर पानी टैंकर के जरिए बेचकर पैसा कमा रहे हैं।

बाड़मेर जिले के साजियाली पंचायत की शांति देवी कालबेलिया कहती हैं, "संकट के इस दौर में कुछ भामाशाहों ने राशन पहुंचाया है, जिससे गुजारा चल रहा है। लेकिन पीने के पानी के लिए मीलों भटकना पड़ता है। टांकों में पानी नहीं बचा हैं। इंदिरा गांधी नहर के पानी की सप्लाई का प्वाइंट हमारी बस्ती में नहीं बनाया गया। एक हैंडपंप था जिसमें खारा पानी आता था, वह भी पिछले डेढ़ महीने से खराब है।"

साजियाली में 40 फीट पर 18 कालबेलिया परिवार रहते हैं। इनके आवगमन का कोई रास्ता नहीं है। वर्ष 2019 में ग्राम पंचायत ने महात्मा गांधी नरेगा के तहत सड़क कार्य स्वीकृत कराया, लेकिन सड़क नहीं बनी। पेयजल की कोई योजना इस ढाणी तक नहीं पहुंची है। अकाल या आफत में राहत के दौरान सरकारी टैंकर से पानी सप्लाई भी यहां नहीं पहुंच पाता। टीले की ऊंचाई और रास्ता नहीं होने के कारण यहां दो टैक्टर जोड़कर पानी का टैंकर पहुंचाया जाता है। यहाँ के लोगों को से एक टैंकर के लिए 2000 रू. लिए जाते हैं।


जल विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की मिलीभगत से पानी चोरी और अवैध कनेक्शन का काम धड़ल्ले से चल रहा है। पाइप लाइन से अवैध कनेक्शन, एयर वाल्व को खोलकर व पाइपलाइन को तोड़कर टैंकर भरने के कारण प्रेशर टूट जाता है जिससे सप्लाई वाले गांव पानी से वंचित रह जाते हैं।

पेयजल योजना से वंचित गांवों, ढाणियों में पानी वितरण का सिस्टम तक नहीं बन पाया है। रसूखदार लोगों की ढाणियों में पानी वितरण के प्वाइंट बनाये गये हैं जबकि गरीब, दलित समुदाय की ढाणियां अभी भी वंचित है। कोविड-19 के तहत लॉक डाउन की स्थिति में लोगों को अपना गला तर करने के लिए पानी की जगह प्यास के कड़वे घूंट पीने पड़ रहे हैं।

"गांव में पीने का पानी खत्म हो गया है। गांव में पचास ढाणियां हैं लेकिन किसी में भी पानी सप्लाई का कोई प्वाइंट नहीं है और न ही कोई हैंडपंप है," रिमूखां ने बताया।

जिले की पाटोदी पंचायत समिति की नवसृजित ग्राम पंचायत गंगापुरा में भील समुदाय की 50 ढाणियां हैं। इन ढाणियों के पास से इंदिरा गांधी नहर परियोजना से पेयजल सप्लाई योजना की पाइप लाइन गुजरती है, लेकिन ढाणी के लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिलता है। गांव में एक हैंड पंप है जिसके निर्माण के बाद कुछ दिन पानी आया लेकिन अब उसमें भी पानी नहीं आता है।


गांव के किरता राम भील ने बताया, "व्यक्गित टांकों में पानी नहीं है। अब पानी के लिए ढाणियों के लोग कष्ट झेल रहे हैं। पाइप लाइन से पानी सप्लाई का प्वाइंट हमारी ढाणियों में नहीं बनाया गया। बड़नावा जागीर में प्रतिदिन पाइप लाइन से चोरी कर सैंकड़ों टैंकर भरकर पानी बेच रहे हैं, लेकिन हमें मटका भरने तक के लिए सार्वजनिक प्वाइंट नहीं दिया गया।"

कई गांवों में सरकार की इंदिरा गांधी नहर से पाइप लाइन द्वारा पानी सप्लाई योजनाओं पर काम चल रहा है। कुछ गांवों में 20-25 ढाणियों के बीच सार्वजनिक सप्लाई के प्वाइंट बने हैं, लेकिन यह ढाणियां वंचित है।

यह महज कुछ गांवों की समस्या नहीं है। प्रतिवर्ष गर्मी के सीजन में छितरी हुई आबादी वाले बाड़मेर जिले के अधिकांश गांवों की कहानियां हैं,जो पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। पारंपरिक जल स्रोत सूख चुके हैं, व्यक्तिगत टांकों में एकत्रित किया गया बरसात का पानी भी समाप्त हो गया है।

भूजल अत्यधिक खारा और फ्लोराइड वाला है। जिससे गंभीर बिमारी का खतरा बना हुआ है। लेकिन इसके बावजूद मजबूरीमें लोग उसी पानी को पी रहे हैं। दूसरी ओर पेयजल वितरण का सरकारी तंत्र योजनाओं की अपनी उपलब्धियों में कागजी पानी तो पिला रहे हैं, लेकिन हकीकत में सैकड़ों गांव पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। कोरोना कहर के कारण हुए लॉक डाउन में जन स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी विभाग के निष्फल कार्य प्रक्रिया से यह साबित हो रहा है कि किसी भी डिजास्टर में पेयजल व्यवस्था के लिए तंत्र पूरी तरह से असफल हो चुका है।

साभार- (चरखा फीचर) दिलीप बीदावत, बाड़मेड़, राजस्थान.


   

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