संकट: 26,000 की आबादी पर एक डॉक्टर और 3,100 लोगों पर एक बेड वाला ग्रामीण भारत कोरोना से कैसे लड़ेगा?

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की लगभग 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। कोरोना अब गांवों तक पहुंच चुका है, लेकिन क्या ग्रामीण भारत इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार हैं ?

Mithilesh DharMithilesh Dhar   8 May 2020 6:15 AM GMT

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संकट: 26,000 की आबादी पर एक डॉक्टर और 3,100 लोगों पर एक बेड वाला ग्रामीण भारत कोरोना से कैसे लड़ेगा?ये तस्वीर सोनभद्र की है। कोरोना के संदिग्ध मरीज को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बाहर घंटों पेड़ के नीचे एंबुलेंस का इंतजार करना पड़ा।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला मुख्यालय से 90 किमी दूर विंढमगंज थाना क्षेत्र के ग्राम कुड़वा का एक युवक 14 मार्च को मुंबई से लौटता है। कुछ दिन बाद उसकी तबियत खराब हो जाती है। पहले वह गांव के ही डॉक्टर से दवा लेता है लेकिन आराम नहीं मिलता।

युवक को 24 मार्च को सांस लेने में भी तकलीफ होने लगती है। परिजन आनन-फानन में युवक को गांव के डॉक्टर के पास एक बार फिर लेकर जाते हैं। वहां से जवाब मिलने के बाद फिर उसे घर से 10 किमी दूर विंढमगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद ले जाया जाता है। वहां के डॉक्टर कहते हैं कि मरीज को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र दुद्धी ले जाया जाए।

इसके बाद परिजन युवक को लेकर 45 किमी दूर दुद्धी पहुंचते हैं। तब तक दोपहर के एक बज चुके होते हैं। दुद्धी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जैसे ही पता चलता है कि युवक के लक्षण कोरोना से मिलते जुलते हैं, हड़कंप मच जाता है। वहां ईलाज के लिए आये दूसरे मरीज तो भाग ही जाते हैं, केंद्र पर तैनात डॉक्टर भी डर की वजह से मरीज को देखने से मना कर देते हैं। युवक को अस्पताल के बाहर पीपल के पेड़ के नीचे लिटा दिया जाता है।

मरीज वहां लगभग तीन घंटे लेटे रहता है। शाम लगभग 5 बजे 75 किमी दूर जिला मुख्यालय राबर्ट्सगंज से स्वास्थ्य विभाग की एक टीम आती है जो उसे अपने साथ आइसोलेशन वार्ड के लिए ले जाती है। इसके बाद वहां से लगभग 80 किमी दूर युवक का ब्लैड सैंपल जांच के लिए वाराणसी के सर सुदंरलाल अस्पताल भेजा जाता है।

इस मामले से आप बड़ी आसानी से यह अनुमान लगा सकते हैं कि ग्रामीण भारत कोरोना जैसी महामारी से लड़ाई के लिए कितना तैयार है। यह सच है कि कोरोना वायरस का ज्यादा असर अभी शहरों तक ही है, लेकिन धीरे-धीरे अब यह गांवों की तरफ भी पैर पसार चुका है। बड़ी संख्या में लोग शहरों से गांव पहुंच रहे हैं। देशभर में अब तक कोरोना के कुल 56 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं जबकि 1,890 को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों के कई गांवों में कोरोना के मामले मिले हैं।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की लगभग 69 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ऐसे में अब सवाल यह भी है कि क्या ग्रामीण भारत कोरोना जैसी महामारी से निपट पायेगा ? 24 मार्च को लॉकडाउन वाले अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश भी इस बीमारी से नहीं लड़ पा रहे हैं, ऐसे में लॉकडाउन ही इससे बचाव का तरीका है?

"मेरे जिले में रोज बड़ी संख्या में लोग बाहर से आ रहे हैं। जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। मेरे पड़ोस में ही परसों मुंबई से दो लोग आये। उनकी कोई जांच नहीं हुई जबकि मैंने सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी सूचना जिले के अधिकारियों दी थी। लोगों को जागरूक भी नहीं किया जा रहा है। हमें समाचार चैनलों से पता चला है रहा है कि मामला बहुत गंभीर है। हमारे यहां न सामुदायिक, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इसे लेकर कोई जागरुकता नहीं है।" भदोही के समाजसेवी हरीश सिंह कहते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 250 किमी दूर वाराणसी से सटे भदोही जिले की एक बड़ी जनसंख्या मुंबई में रहती है जो अब वापस अपने घर लौट रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसका जिक्र किया था, बावजूद इसके लापरवाही बरती जा रही है।

भारत में कोविड-१९ वायरस की जांच के लिए यहां-यहां लैब बनाये गये हैं। ब्लू कलर के इंडीकेटर प्राइवेट लैब्स के हैं।

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक लगभग 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में कोविड-19 टेस्टिंग के लिए 8 लैब बनाये गये हैं। ये लैब लखनऊ, वाराणसी, अलीगढ़, मेरठ, सैफई और गोरखपुर में बनाये गये हैं। अब अगर प्रतापगढ़ में कोई संदिग्ध मरीज मिलता है तो उसकी जांच 165 किमी दूरी लखनऊ में हो पायेगी या फिर 143 किमी दूर वाराणसी में।

कोविड-19 टेस्टिंग के लिए देशभर में कुल 119 सरकारी और 25 प्राइवेट लैब बनाये गये हैं। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में आठ सरकारी और 4 प्राइवेट लैबों में कोविड-19 वायरस की जांच हो रही है। इनमें 4 लैब मुंबई में, पुणे में तीन और नागपुर में एक लैब बनाये गये हैं। चारों प्राइवेट लैब मुंबई में हैं। इसी तरह बिहार में 5 टेस्ट लैब बनाये गये हैं। इनमें से तीन पटना और दो दरभंगा में हैं। लैंबों की संख्या कम तो हैं ही, गांवों से बहुत दूर भी हैं। ग्रामीण भारत के सामने कोरोनो को हराने में यह भी एक बड़ी मुश्किल सामने आ सकती है।

भारत की ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को और बेहतर भारत सरकार की ही रिपोर्ट नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 से समझा जा सकता है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 21,403 सरकारी अस्पताल (प्राथमिक, सामुदायिक और उप-जिला / मंडल अस्पताल को मिलाकर) हैं जिनमें 2,65,275 बेड हैं, जबकि शहरों के 4,375 अस्पतालों में 4,48,711 बेड हैं। देश में तो वैसे हर 1,700 मरीजों पर एक बेड है लेकिन ग्रामीण भारत में इसकी स्थिति चिंताजनक है। ग्रामीण क्षेत्रों में 3,100 मरीजों पर एक बेड है।

राज्यों की बात करें तो इस मामले में बिहार की स्थिति सबसे खराब है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसान बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 10 करोड़ आबादी रहती है जिनके लिए कुल 1,032 अस्पताल है जिनमें महज 5,510 बेड हैं। इस हिसाब से देखेंगे तो लगभग 18,000 ग्रामीणों के लिए एक बेड की व्यवस्था है।

भारत के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों में बेडों की संख्या।

वहीं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की 77 फीसदी (15 करोड़ से ज्यादा) आबादी गांवों में रहती है, जिनके लिए 4,442 अस्पताल और कुल 39,104 बेड हैं। लगभग 3,900 मरीज पर एक बेड की व्यवस्था है। तमिलनाडु इस मामले में सबसे अच्छी स्थिति में है जहां के ग्रामीण क्षेत्र में कुल 40,179 बेड हैं और कुल 690 सरकारी अस्पताल हैं। इस हिसाब से तमिलनाडु में हर बेड पर लगभग 800 मरीज हैं।

बिहार की स्थिति के बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉ सुनील कुमार बताते हैं, "हमारे यहां तो दो लैबों में जांच होनी थी, लेकिन अभी तक एक में ही काम शुरू हो पाया है। दूसरे के लिए मशीन रखी है, उससे कब जांच होगी यह भगवान ही जाने। इससे आप समझिए कि हमारी सरकार कोरोना वायरस के प्रति कितनी सजग है। गांवों में रोज हजारों की संख्या में लोग बाहर से आ रहे हैं, किसी भी कोई जांच नहीं हो रही है।"

"जांच करेगा ही कौन। पूरे प्रदेश में मुश्किल से 600 वेंटिलटर हैं। अस्पतालों में न तो डॉक्टर हैं और न ही बेड। और अगर कहीं कोरोना वायरस गांवों तक पहुंचा तो हम बस लाशें गिनेंगे। ऐसे में इस महामारी से लड़ने के लिए हमारी कोई तैयारी नहीं है। हमारी भलाई इसी में है कि हम खुद को सुरक्षित रखें, अपना बचाव करें।" डॉ सुनील कहते हैं।


बेड के अलावा डॉक्टर्स की उपलब्धता भी ग्रामीण भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। रूरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स की मानें तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 26,000 की आबादी पर महज एक एलोपैथिक डॉक्टर हैं जबकि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) कहता है कि हर 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होने चाहिए वहीं पूरे देश की बात करें तो देश में 10,000 की आबादी पर लगभग सात डॉक्टर हैं। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के यहां रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की कुल संख्या लगभग 1.1 करोड़ है।

कोरोना से लड़ रहे दूसरे देशों की बात करें तो चीन में प्रति 10 हजार की आबादी पर 17 से ज्यादा डॉक्टर हैं। 32 करोड़ की कुल आबादी वाले अमेरिका में प्रति 10 हजार लोगों पर 25 से ज्यादा और 6 करोड़ की कुल आबादी वाले इटली में प्रति 10 हजार पर लगभग 37 डॉक्टर हैं।

राज्यों के हिसाब से डॉक्टरों की उपलब्धता के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे खराब है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 881 डॉक्टर हैं जबकि यहां की लगभग 6.2 करोड़ आबादी गांवों में रहती है। मतलब लगभग 70,000 लोगों पर एक डॉक्टर है। झारखंड और बिहार की हालत भी खराब है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में 50,000 से ज्यादा की आबादी पर सिर्फ एक डॉक्टर है।

ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की बुनियाद प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर टिकी है, लेकिन यह बुनियाद भी बेहद कमजोर है।

देश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की स्थिति

इस बारे में हमने पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क की निदेशक डॉक्टर वंदना प्रसाद से बात की। वह बताती हैं, "हमारी स्वास्थ्य सेवा कमजोर है इसीलिए तो पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया। जब मजबूत स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश इससे महामारी से पार नहीं पा रहे हैं तो हमारे लिए तो यह बहुत मुश्किल होगा।"

"और हमारी ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएं तो बहुत ही बदतर हैं। सरकार ने इस ओर कभी ध्यान ही नहीं दिया। हम इस ओर बहुत ज्यादा धेने की जरूरत है। अभी तो फिलहाल इसी में भलाई है कि हम ग्रामीणों को ज्यादा से ज्यादा जागरूक करें और वही करें जैसा सरकार कहती है, लेकिन इससे हमें सबक लेना चाहिए। अगली बार से हमारी व्यवस्था पहले से ही दुरुस्त रहे, न कि विपदा के समय।" वंदना आगे कहती हैं।

वर्ष 2019 में 22 नवंबर को एक सवाल के जवाब में लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 31 मई 2018 की एक रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि देश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 34,417 डॉक्टरों की जरूरत है जबकि 25,567 डॉक्टर ही तैनात हैं, मतलब प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में ही 8,572 डॉक्टरों की कमी है।

यही नहीं, सरकार ने अपने जवाब में यह भी बताया है कि देश के 72,045 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उपकेंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ऐसे भी हैं जहां स्टाफ के लिए शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है, जबकि 1,15,484 केंद्र ऐसे हैं जहां महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं। 823 स्वास्थ्य केंद्र तो ऐसे भी हैं जहां बिजली तक नहीं है, जबकि 1,313 केंद्रों पर नियमित बिजली नहीं रहती है।

देश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली और पानी तक की व्यवस्था नहीं है

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में उत्तर प्रदेश की स्थिति सबसे खराब है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 3,621 डॉक्टरों की जरूरत है जबकि काम केवल 1,344 डॉक्टर ही कर रहे हैं। यहां तक कि राज्य के 942 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर बिजली, पानी की सप्लाई बराबर नहीं। सड़कें ऐसी हैं कि खराब मौसम में मरीज अस्पताल तक पहुंच ही नहीं सकते। जिन राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल है उनमें उत्तर प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक और बिहार भी हैं।

(यह खबर पहली बार 25 मार्च 2020 को प्रकाशित हुई थी)

   

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