महाराष्ट्र: किसानों के दर्द पर लग पाएगा मरहम?
महाराष्ट्र की नई सरकार ने किसानों के लिए कर्ज़माफी की बात कही है। लेकिन कर्ज़ कितना माफ होगा और बारिश से राहत किस अनुपात में मिलेगी ये तय नहीं है। ऐसे में देखना ये भी कि गठबंधन सरकार किसानों के दर्द पर कितना मरहम लगा पाती है?
Arvind Shukla 29 Nov 2019 11:07 AM GMT
पानी की बूंद-बूंद को तरसने वाले महाराष्ट्र के ज्यादातर इलाकों में इस बार पानी ने ऐसी तबाही मचाई कि किसानों के खेत वीरान और घर सूने हो गए। मराठवाडा में सोयाबीन, कपास, ज्वार-बाजरा, मक्का, उड़द को नुकसान पहुंचा तो नाशिक, पुणे और सांगली में अंगूर, प्याज और टमाटार की फसलें बर्बाद हो गईं। इससे पहले सितंबर में आई बाढ़ सांगली और सतारा में किसानों को गहरे जख्म दे चुकी थी। फसल बर्बाद होने से कर्ज़ में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। गांव कनेक्शन ने महाराष्ट्र में फसल बर्बादी पर लगातार ख़बरें की है.. ख़बर और वीडियो के लिए यहां क्लिक करें
उद्धव ठाकरे सरकार ने पहली कैबिनेट की बैठक में किसानों के लिए 10,000 क रोड़ रुपए बारिश और बाढ़ राहत के लिए तुरंत जारी किए हैं। इससे पहले महाराष्ट्र विकास आघाड़ी ने सीएसपी में फसल बीमा योनजा के पुनरीक्षण, किसानों को फसल की सही कीमत दिलाने और सूखा प्रभावित इलाकों में सतत जलापूर्ति के लिए आधार भूत ढांचा तैयार करने की बात कही।
नादेंड के लोहा में रहने वाली 28 साल की देवन शिंदे और लातूर के औसा की आशा बाई पर नवंबर का महीना भारी गुजरा है। कर्ज़ में डूबे देवन के पति गजानन शिंदे ने खेत में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जबकि आशा बाई के 17 साल के बेटे ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि सोयाबीन की फसल बर्बाद होने के बाद उसके पति बेटे को फीस के पैसे नहीं दे पाए थे।
पिछले तीन वर्षों से लगातार सूखे का सामना कर रहे मराठवाड़ा के किसानों के साथ इस साल कुदरत ने फिर मजाक किया। जून-जुलाई में जब उनकी फसल बोई जानी थी, बारिश कम हुई और जब किसी तरह बोई गई तो अक्टूबर के आखिरी दिनों में हुई भारी बारिश ने हाथ आई फसल भी छीन ली।
करीब सवा महीने तक सियासी उठापठक में फंसे रहे महाराष्ट्र के किसानों के मुताबिक बेमौसम बारिश से मराठवाड़ा के आठों जिलों में 80-90 फीसदी तक नुकसान हुआ है। राष्ट्रपति शासन के दौरान प्रति हेक्टेयर 8000 और बागवानी के लिए 18000 का मुआवजे का ऐलान भी किया गया, लेकिन किसानों को कहना है उन्हें अभी तक पिछले साल सूखे से बर्बाद हुई सोयाबीन के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का पैसा नहीं मिला है। फसल बर्बाद होने से परेशान सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। कुदरत के सताए किसानों का दर्द सरकारी सिस्टम की उदासीनता और बीमा कंपनियों की हीलाहवाली से और बढ़ गया है।
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नांदेड के रायवाडी गांव में रहने वाले युवा किसान कैलाश पटेल ने कर्ज़ लेकर सोयाबीन बोई थी, लेकिन फसल आधी भी नहीं हुई। कैलाश की फसल साल भी फसल खराब हुई थी, और आज तक फसल बीमा का इंजतार है। कैलाश पटेल कहते हैं कई बार उनके मन भी आता है कि या तो खेती छोड़ दूं या दूसरों की तरह आत्महत्या ही कर लूं। लेकिन मजबूरी में खेती करनी होती है क्योंकि दूसरा कोई विकल्प नहीं है।
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