केवल धान-गेहूं बोकर किसानों की आय दोगुनी नहीं हो सकती: बी बी सिंह

कृषि लोन लेने वाले अधिकांश किसान लोन के पैसे का उपयोग कृषि में नहीं करते लिहाजा लोन के नॉन -प्रोडक्टिव प्रयोग के कारण डिफाल्टर किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है।

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   25 March 2019 8:21 AM GMT

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लखनऊ। " रोजगार के अन्य क्षेत्रों में सुधार के साथ रोजगार के अवसर बढ़े हैं लेकिन कृषि क्षेत्र में उतना सुधार नहीं हो पाया जितना होना चाहिए था। यही वजह है की साल 2017-18 के आंकड़ों के अनुसार देश के अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान घटा है " ये कहना है डॉ बी. बी. सिंह सिसौदिया का। डॉ. सिसौदिया, उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले में स्थित चन्द्रभानु गुप्ता कृषि स्नाकोत्तर महाविद्यालय बीकेटी में प्राचार्य हैं। गांव कनेक्शन के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने किसानों से जुड़े मुद्दें पर न केवल सुझाव दिए बल्कि अपनी बेबाक राय भी रखी।

डॉ. बीबी सिंह, प्राचार्य, चंद्रभानु गुप्त कृषि महाविद्यालय, लखनऊ

केवल धान -गेहू की खेती से किसानो की आय दुगुनी नहीं हो सकती

किसानों की आय कैसे दुगुनी हो इस प्रश्न पर डॉ बी बी सिंह कहते है कि "केवल धान -गेहू बोकर किसानों की आय दुगुनी नहीं हो सकती। भारत सरकार द्वारा किसानों कि आय दुगुनी करने के लिए जो योजनाए बनायीं गयी हैं उनसे किसानों कि आय दुगुनी हो सकती है, लेकिन ये तब जब किसान और किसान से जुड़े सरकारी विभाग जैसे कृषि विभाग के साथ साथ उद्यान विभाग, मतस्य विभाग,पशुपालन विभाग, ये सभी मिलकर काम करें और धान -गेहू के साथ किसान सब्जी. मशरूम उत्पादन, फूलों कि खेती, मत्स्य-पालन, मधुमक्खी पालन, पशुपालन, रेशम उत्पादन आदि कार्य भी करें और सरकारी अधिकारी समय-समय पर किसानों को सही जानकारी देने के साथ साथ किसानों कि प्रोत्साहित करें तो आने वाले वर्षो में किसानों कि आय में जरूर वृद्धि हो सकती है।"

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कॉर्पोरेट सेक्टर अगर गांव कि तरफ बढ़े तो रुक सकता है पलायन

गांव से किसान के बेटों का रोजगार के लिए गांव से शहर कि तरफ बढ़ते पलायन और किसान के बच्चों का किसानी से दूर होने के चलन पर डॉ बी बी सिंह कहते है कि "रोजी -रोजगार कि तलाश में हर कोई बेहतर विकल्प के लिए स्थान परिवर्तन करना चाहता है। उत्तर प्रदेश में जो छोटी काश्त के किसान है इनकी संख्या 85 से 90 फीसदी तक है अब कम खेती में परिवार का गुजारा नहीं हो पाता,ऐसे में किसानों के पढ़े -लिखे बच्चे शहर कि तरफ मजबूरी में पलायन करते है। लेकिन धीरे धीरे ये पहले कि अपेक्षा ये थोड़ा काम हुआ है अब ग्रामीण क्षेत्रों में अवसर ज्यादा है। बहुत सी कारपोरेट सेक्टर कि कम्पनिया है जो खुद को कृषि से जोड़ रही है। अगर देश का कारपोरेट सेक्टर कृषि के साथ जुड़ता है तो कृषि उद्योग में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और पलायन कि संख्या में कमी आएगी। साथ ही सरकार द्वारा जो कौशल विकास कि योजनाए है उनसे भी काफी बदलाव आया है लेकिन कौशल विकास के प्रशिक्षण के बाद अगर ग्रामीण युवाओं को गांव और कस्बों में रोजगार मिल जाए तो उन्हें कही और जाने कि जरुरत नहीं होंगी।

छत्तीसगढ़ में धान के लिए खेत तैयार करता किसान। फोटो- अरविंद शुक्ला

कर्ज माफ़ करना किसानों कि समस्या का समाधान नहीं हैं

किसान और कर्ज का एक पुराना सम्बन्ध रहा है। कई बार सरकार द्वारा कर्ज माफ़ करने के कुछ समय बाद किसान फिर कर्ज में आ जाता है। इस मुद्दे पर डॉ बी बी सिंह का कहना है कि "कर्ज माफ़ी एक राजनीतिक हथियार है जो वोट लेने के लिए किया जाता है कर्ज माफ़ कर देना किसानों के समस्या का समाधान नही हैं। और कर्ज कौन लेता है सबसे चालाक किसान कर्ज लेता है, बीस -पच्चीस साल का इतिहास रहा है कि किसान कि ये सोच होती जा रही है कि चुनाव के समय सरकार कर्ज माफ़ कर देगी और वो हो भी रहा है। ज्यादातर किसान बैंक से कृषि के लिए लोन लेकर उसे खेती के काम में नहीं लगाते लिहाजा लोन का पैसा बैंक को वापस नहीं कर पाते। किसान को इस तरह कि व्यवस्था सरकार को देनी चाहिए कि वो अगर लोन ले तो सरकार को वापस कर सकें।

ज्यादा उत्पादन भी किसान के लिए समस्या

बी बी सिंह बताते है किसान के लिए ज्यादा उपज भी समस्या है। फसल कटने के तुरंत बाद किसान को पैसे कि जरुरत होती है और उस समय उसे एमएसपी नहीं मिल पाती। सरकार को चाहिए कि किसानों के लिए बेहतर मार्केटिंग चैनल तैयार करे और ताकि किसान को अपनी उपज बेचने में दिक्कत न हो और अधिक फसल होने पर उसका मूल्य कम न हो।

महिला किसान के मुद्दे पर डॉ बी बी सिंह बताते है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रोजगार कि तलाश में पुरुष शहर चले जाते है ऐसे में खेती कि जिम्मेदारी पूरी तरह से महिलाओं पर आ जाती है पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खेती का 90 फीसदी काम महिलाये करती है हालांकि अभी तक इन महिला किसानों को "किसान " का दर्जा नहीं मिल पाया है पर उम्मीद है अब मिलना चाहिए। साथ ही बी बी सिंह बताते है कि कृषि कि पढ़ाई में अभी तक ज्यादातर लड़के ही आते थे लेकिन अब लड़किया भी कृषि क्षेत्र में पढाई के लिए आ रही है इस सत्र में महाविद्यालय में लगभग 200 लड़किया एग्रीकल्चर से स्नातक कर रही हैं । कृषि क्षेत्र में बढ़ते रोजगार के अवसरों के चलते छात्रों का रुझान कृषि सम्बन्धी कोर्सेज कि तरफ बढ़ा है।


    

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