जानिए जब राहुल गांधी के गोत्र और हनुमान जी की जाति पर चर्चा हो रही थी किसान क्यों दिल्ली पहुंचे थे?

जब मीडिया में इमरान खान के भाषण का पोस्टमार्टम, देश में हनुमान जी की जाति पर चर्चा हो रही थी, देश के किसान दिल्ली पहुंचे थे...

Arvind ShuklaArvind Shukla   1 Dec 2018 6:14 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

देश के कई राज्यों के किसान आखिर दिल्ली क्यों पहुंचे थे ? ऐसा क्या हुआ कि विभिन्न विचारधाराओं वाले 2008 किसान संगठन एक मंच पर आ गए ? आखिर क्यों किसान बार-बार सड़क पर उतरने को मजबूर होते हैं। जानिए क्यों संसद का विशेष सत्र बुला कर देश को कृषि संकट से उबारने की मांग रही है।

अरविंद शुक्ला/रणविजय सिंह

नई दिल्ली। "मैंने धान लगाया था उसमें रोग लग गया। गन्ने का पैसा नहीं मिला है। बच्चों की फीस नहीं भर पा रहा, स्कूल वाले धिक्कार रहे। बैंक वाले अलग से जीने नहीं दे रहे। ऐसे ही हालातों में किसान आत्महत्या कर लेता होगा, मेरे मन भी कई बार ये ख्याल आता है।" यूपी के किसान बलबीर सिंह का ये बताते हुए गला रुंध जाता है।

बलबीर सिंह के मन में सिर्फ आत्महत्या के ख्याल आते हैं लेकिन तेलंगाना के सूर्या रमेश ने पिछले साल खेती के कर्ज़ से परेशान होकर जान दे दी। उनकी पत्नी सूर्या राधा (25 वर्ष) किसान मुक्ति मार्च में शामिल होने दिल्ली पहुंचीं। हाथ में पति की फोटो और आंखों में आंसू लिए सूर्या कहती हैं, "पांच लाख का कर्ज़ था, सूखे के चलते खेती में कुछ हुआ नहीं था।" ऐसी कहानियां से रामलीला मैदान भरा हुआ था, जहां देशभर के हजारों किसान पहुंचे थे।

ये भी पढ़ें- किसान मुक्ति मार्च: मोदी सरकार से आर पार की लड़ाई को दिल्‍ली पहुंचे किसान

तेलंगाना से आए परिवार, जिनके पति या बेटों ने खेती के संकट के चलते आत्महत्या कर ली।

आजाद भारत में ये पहली बार है, जब देश के अलग-अलग राज्यों के 208 किसान एक मंच पर आकर सरकार के खिलाफ हल्लाबोल रहे हैं। मंदसौर में 6 किसानों की पुलिस की गोली से हुई मौत के बाद बनी अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देशभर के किसान संगठनों ने खेती और किसान को बचाने के लिए दिल्ली में 29 और 30 नवंबर को किसान मुक्ति मोर्चे के आयोजन किया। नानुकूर के बाद २९ की देर रात दिल्ली पुलिस ने रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक पैदल मार्च की इऩ किसानों की अनुमति दी।

किसान संगठन देश के सभी किसानों का एक बार पूरा कर्ज़ा माफ करने और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने और उस पर कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। अलग-अलग जत्थों में दिल्ली पहुंचे किसान संगठनों और दलों से एक आवाज़ लगातार आती रही, "जो किसान का काम करेगा और वही देश राज करेगा।"

समिति के संयोजक वीएम सिंह गांव कनेक्शन से खास बात में कहते हैं, "हमारे प्रधानमंत्री ने 2014 में किए किसानों के वादों को नहीं निभाया। इस सरकार का ये आखिरी साल है। अब भी हमारी मांगे नहीं मानी गईं तो 2019 में किसान अपना फैसला सुनाएगा।"

गांव कनेक्शन अख़बार में प्रकाशित किसान मुक्ति मार्च Kisan Mukti March की ख़बर..


एनडीए सरकार के पूर्व सहयोगी और अब सरकार के खिलाफ मोर्चे में शामिल लोकसभा सांसद और महाराष्ट्र के स्वाभीमानी शेतकारी संगठना के अध्यक्ष राजू शेट्टी कहते हैं," जब प्रधानमंत्री की जिद के लिए रात में संसद के दोनों सदनों का विशेष सत्र (जीएसटी के लिए) बुलाया जा सकता है, तो कृषि प्रधान देश भारत में किसानों के लिए क्यों विशेष सत्र नहीं बुलाते।" वो आगे कहते हैं, "किसान अब जाग चुका है, अपना हक लेकर रहेगा।"

संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग वरिष्ठ कृषि पत्रकार पी साईनाथ पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं। अखिल भारतीय किसान सभा के पैदल मार्च में शामिल पी साईनाथ कहते हैं, "खेती का संकट अब राष्ट्रीय संकट है। पिछले 20-25 वर्षों को देखेंगे तो पाएंगे खेती-किसानी किसानों से छीनकर कॉर्पोरेट को सौपा जा रही है, कृषि संकट यही है।" सरकार ने पिछले दो वर्षों से एनसीआरबी में किसान आत्महत्या के आंकड़े जारी करना बंद कर दिया है लेकिन साईंनाथ कहते हैं पिछले 20 वर्षों में 3 लाख 10 हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

आत्महत्या और कर्ज़ की बात पर पीलीभीत जिले के किसान अनिरुद्ध गुप्ता और उनके साथ आए किसान अलग दर्द बयां हैं। अनिरुध बताते हैं, "शारदा नदी में हमारे गांव की करीब 1000 एकड़ जमीन कटी है। खेत तो रहे नहीं लेकिन बैंक के कर्ज़ पर ब्याज पर ब्याज लग रहा है। मेरे पिता यदुनंदन गुप्ता ने ढाई लाख कर्ज़ा लिया था जो अब साढ़े तीन लाख हो गया है। हमारे पास खाने को नहीं है, बैंक वाले नोटिस पर नोटिस भेज रहे हैं।"

इसी साल केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा था कि देश के 52 प्रतिशत किसान परिवारों के कर्ज़दार होने का अनुमान है। इन परिवारों पर औसत कर्ज़ 47,000 रुपए का है।

किसान मुक्ति मार्च में शामिल किसान स्वराज (आशा) की सदस्य कविथा कुरुग्रंथी कहती हैं, "किसान बैंक से कर्ज़ लेकर ऐशोआराम में थोड़े खर्च़ करता है। खेती में लगाता है, लेकिन जब प्राकृतिक आपदाएं (बाढ़, सूखा, साइक्लोन) आती हैं तो किसान के पास कुछ नहीं बचता और प्रधानमंत्री फसल बीमा जैसी योजनाएं कागज़ी साबित होती हैं। इसीलिए हम लोग एक बार सभी किसानों का कर्ज़ माफ की बात कह रहे हैं।"

अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति ने पिछले वर्ष 20-21 नवंबर को दिल्ली में किसान मुक्ति संसद का आयोजन कर दो बिल पास किए थे, ये बिल निजी विधेयक के रुप में संसद में भी पेश किए जा चुके हैं। किसान संगठन अब इन्हीं बिलों संसद में पास करने की मांग कर रहे हैं।

रामलीला मैदान में किसान नेता वीएम सिंह और लोकसभा राजू शेट्टी। फोटो- अरविंद शुक्ला

वीएम सिंह कहते हैं," 208 किसान संगठनों के अलावा शिवसेना, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस समेत 21 राजनैतिक दल इन बिलों को अपना समर्थन दे चुके हैं। मोदी जी ये बिल पास करवा दें, किसान आगे भी उन्हें वोट देंगे वर्ना अब किसान बेवकूफ नहीं बनेगा। लोकसभा चुनाव आने वाले हैं किसान गर्म लोहे पर चोट करेगा।"

किसान संगठन जिन दो बिलों की बात कर रहे हैं उनमें संपूर्ण कर्ज़माफी के अलावा 23 फसलों का स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सीटू (किसान की लागत, जमीन और मशीनरी का किराया और परिवारिक लेबर मिलाकर) पर एमएसपी तय करने की मांग करे हैं। इनती ही नहीं किसान संगठन ये भी चाहते हैं कि न सिर्फ लागत का डेढ़ गुना मूल्य दिया जाए बल्कि उस पर कानून भी बना दिया जाए, ताकि देश में कोई सरकारी एजेंसी, आढ़ती या कारोबारी उससे नीचे किसान की उपज़ खरीद न सके।

न्यूनतम समर्थन मूल्य किसान की उपज का वह कीमत होती है, जो सरकार तय करती है। खेती को संकट से उबारने के लिए वर्ष 2004 में भारत में हरित क्रांति के जनक प्रो. एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई में किसान आयोग बना था, इस आयोग की रिपोर्ट 2007 से लागू होनी थीं, आयोग ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना लाभकारी मूल्य समेत कई सिफारिशें की थीं। किसान संगठनों का आरोप है 2014 तक मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार इन्हें दबाए रही और बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में इसे मुद्दा बनाया। जिस पर भरोसा कर किसानों ने उन्हें वोट दिए लेकिन मोदी जी ने वादा नहीं निभाया। जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि वो स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिशों को लागू कर ही लाभकारी मूल्य दे रही है। जिसे वीएम सिंह सिर्फ एटूएफएल बताते हैं यानि वह मूल्य जिसमें किसान की लागत और पारिवारिक लेबर शामिल हैं।

पंजाब में गुरुदासपुर से आए बुजुर्ग किसान जगमोहन सिंह कहते हैं, "सरकारी खरीद की हालत बहुत खराब है। सरकार ने धान का रेट (एमएसपी) 1750 रुपए रखा लेकिन मंडियों में 1300-1400 में खरीद हुई। सरकार भले ही कर्ज़ माफ न करे लेकिन लाभकारी मूल्य दे और किसान को ये गारंटी दे कि उसके खेत में जो कुछ होगा पूरा खरीदा जाएगा।'

दिल्ली में दो दिन के अपने कार्यक्रम और मार्च को लेकर किसान संगठनों ने दिल्लीवालों से कुछ ऐसी अपील की है।

पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली की तरफ किसान के कूचों की संख्या बढ़ गई है। पिछले दो वर्षों में महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश से लेकर पंजाब, राजस्थान और दक्षिण के कई राज्यों में किसान आंदोलन हो चुके हैं। 2 अक्टूबर को भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई कई संगठन किसान क्रांति यात्रा निकालकर दिल्ली पहुंच चुके हैं। खुद अखिल भरतीय किसान समन्वय संघर्ष समिति के किसान चौथी बार दिल्ली पहुंचे थे।

स्वराज अभियान के संयोजक और समिति के अहम सदस्य योगेंद्र यादव पिछले दिनों कई बार कह चुके हैं कि सरकार वो गाय है तो पांच साल में एक बार दूध देती है। किसान ये मौका हाथ से जाने नहीं देंगे। मोदी सरकार के कामकाज पर हाल ही किताब लिखने वाले योगेंद्र यादव के मुताबिक किसानों की आमदनी बढ़ाने का वादा करने वाली ये सरकार किसानों के लिए नुकसान दायक है।

किसान नेताओं के इन तेवरों के बाद केंद्र सरकार और बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। गुजरात चुनाव में ग्रामीण मतदाताओं के बदले रुझान ने ये साफ कर दिया था कि किसानों की अनदेखी संभव नहीं होगी। देश के वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा टीवी में संसदीय मामलों के संपादक अरविंद कुमार सिंह अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते हैं, "देश का किसान अब जाग गया है। संगठन कोई भी हो, मुद्दा एक ही है। राजनीतिक दलों के लिए ये खतरे की घंटी है।"

         

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.