किसान मुक्ति मार्च: मोदी सरकार से आर पार की लड़ाई को दिल्ली पहुंचे किसान .
200 से ज्यादा किसान संगठन मिलकर संपूर्ण कर्जमाफी और एमएसपी पर कानून बनाने को लेकर अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाएंगे।
Arvind Shukkla 28 Nov 2018 12:52 PM GMT

लखनऊ/नई दिल्ली। दिल्ली एक बार फिर किसान मय हो रही है। बस, ट्रेन और पैदल चलते हुए हजारों देशभर किसान और मजदूर दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं। 29 और 30 नवंबर को 200 से ज्यादा किसान संगठन मिलकर संपूर्ण कर्जमाफी और एमएसपी पर कानून बनाने को लेकर अपनी मांगों को लेकर दबाव बनाएंगे।
"चुनाव सामने है, लोहा गरम है, किसान भाइयों मिलकर हथौड़ा मारना है।" किसान नेता वीएम सिंह कुछ इन शब्दों में किसानों में जोश भरते हैं। तो स्वराज अभियान के संयोजक योगेंद्र यादव इस किसान आंदोलन की अहमियत और उद्देश्य बताते हैं, "सरकार ऐसी गाय है जो चुनाव के दौरान ही दूध देती है, अब नहीं तो 5 साल का इंतजार करना होगा।"
योगेंद्र यादव और वीएम सिंह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अहम सदस्य हैं और इसी समिति की अगुवाई में देश के 200 से ज्यादा किसान संगठन 29-30 नवंबर को दिल्ली में किसान मुक्ति संसद का आयोजन कर रहे हैं। दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए स्वराज अभियान के संयोजक और संघर्ष समिति के सदस्य योगेंद्र यादव कहते हैं, "ये देश में पहली है जब विभिन्न विचारधारा के संगठन, लाल, नीले, पीले और हरे झंड़ों वाले किसान और मजदूर संगठन एक साथ हैं। 'दिल्ली चलो' इसलिए भी खास है क्योंकि ये सिर्फ विरोध नहीं है। किसानों के पास विकल्प के रूप में उनके दो बिल हैं। जवान और किसान एक साथ हैं।"
"लोकसभा चुनाव सामने हैं। हमारी सरकार से दो मांगे हैं। संसद के विशेष सत्र में दोनों बिल पास हों। पहला संपूर्ण कर्जमाफी, यानि किस्तों में नहीं, एक बार किसान पर जिनता कर्जा है पूरा माफ किया जाए और सबका माफ हो। दूसरा लागत पर डेढ़ गुना समर्थन मूल्य, वो भी गारंटी के साथ, मतलब जिनता किसान के खेत में पैदा हो पूरा खरीदा जाए।" - योगेंद्र यादव
20-21 नवंबर 2017 दिल्ली में आयोजित किसान मुक्ति संसद में पास हुए थे किसानों केे दो बिल। फोटो- गांव कनेक्शन किसान संगठन इस आंदोलन को आरपार की लड़ाई भी बता रहे हैं। क्योंकि 2019 में आम चुनाव हैं और संघर्ष समिति से जुड़े किसान संगठन चौथी बार दिल्ली पहुंचे हैं। 29 नवंबर को विभिन्न राज्यों से दिल्ली पहुंचे किसान दिल्ली में चार जगह इकट्ठा होंगे। यहां से सुबह 11 बजे के करीब मार्च निकालते हुए ये लोग शाम को रामलीला मैदान पहुंचेंगे। रामलीला मैदान में 29 की रात को इनका रहना होगा और 30 नवंबर की सुबह आठ बजे ये संसद मार्ग की ओर निकल जाएंगे।
The agrarian crisis won't be restricted to only the rural for much longer. The pressure will fall in urban India soon enough.
— P. Sainath (@PSainath_org) November 28, 2018
Support the farmers' march to parliament tomorrow and dayafter. #DilliChalo #KisanMuktiMarch https://t.co/iKQrhAY23B
संसद मार्ग पर ही किसानों का 'किसान संसद' लगाने का कार्यक्रम है। बता दें, इससे पहले जब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था तब किसानों ने भी संसद के बाहर किसान संसद लगाई थी। इस संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर दिया गया था।
दिल्ली चलो नारे को किसान और मजदूर संगठनों के साथ ही कई सामाजिक संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त है। वरिष्ठ कृषि पत्रकार और ग्रामीण मामलों के जानकार पी साईनाथ भी आंदोलन में शामिल हैं। पी साईनाथ लगातार कहते रहे हैं कि 'देश का कृषि संकट खेती से परे जाकर राष्ट्रीय संकट बन गया है, हमें किसानों के साथ खड़े होना होगा।' पी साईनाथ का लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें..
ये भी पढ़ें- किसान को हर फसल का मिले न्यूनतम समर्थन मूल्य, संसद बनाए कानून- वीएम सिंह
इस कृषि संकट को आप इन दो किसानों से समझ सकते हैं। दिल्ली से करीब 550 किलोमीटर दूर भारत की सबसे बड़ी गन्ना बेलट लखीमपुर खीरी में धौरहरा ब्लॉक में पंडितपुरवा गांव के सुभ्रांत शुक्ला का स्थानीय गोविंद सुगर मेला, ऐरा पर करीब 7 लाख रुपए बकाया है। फरवरी के बाद उन्हें गन्ने का एक पैसा नहीं मिला और फिर इतनी ही खेत में तैयार खड़ा है। लेकिन अब तक मिल चालू नहीं हो पाई है। सुभ्रांत दिल्ली के आंदोलन में गन्ने की समस्या के चलते शामिल नहीं हो पा रहे।
पिछले साल नवंबर में चीनी मिल चालू हुई, 3 महीने का पैसा मिला, उसके बाद का पैसा नहीं मिला। इस बार मिल अब तक चालू नहीं हुई है और निजी बेल (क्रेशर) वाले 120-130 रुपए गन्ना खरीद रहे हैं। ऐसे में अगर एक-एक साल किसानों को पैसा नहीं मिला तो वो क्या करेंगे। सुभ्रांत खुलकर बताते हैं, उन्होंने 2014 में मोदी के नाम पर भाजपा को वोट दिया था। अपनी नाराजगी की वजह वो बताते हैं, 'गुजरात में हुई 'वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल एग्रीकल्चर समिट -2013' में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर दिल्ली में उनकी सरकार बनती है तो वो कोल्ड ड्रिंग में फ्रूट जूस मिलाना अनिवार्य कराएंगे, किसानों की आमदनी और लोगों की सेहत बढ़ेगी।' ऐसे कई विचारों से मुझे लगा कि ये लोग सत्ता में आए तो कमाल कर देंगे लेकिन पता नहीं क्यों पीएम बनते ही वो सब भूल गए।
वहीं, लखीमपुर से करीब 1100 किलोमीटर दूर दिल्ली के पश्चिम दिशा में बीकानेर के आसूराम गोदारा कहते हैं, 'सरकारें लगातार किसानों से छलावा कर रही हैं। वसुंधरा सरकार ने कहा कि किसानों का कर्जमाफ़ करेंगे लेकिन किया सिर्फ सहकारी बैंकों का, अब राष्ट्रीयकृत और निजी बैंकों के जमाने में सहकारी बैंकों से कर्ज कितने किसान लेते हैं। यानि सरकार ने कर्ज़ भी माफ किया और किसानों का भला भी नहीं हुआ।'
वो आगे बताते हैं, 'हम लोग राजस्थान के विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों से सवाल कर रहे हैं, कांग्रेस से ये पूछ रहे कि कर्ज़माफी का वादा तो कर रहे हो लेकिन इनता पैसा लाओगे कहां से? वहीं बीजेपी वालों से उनके पुराने वाले याद दिला रहे हैं।'
One more team for #DilliChalo from telangana. Historic #KisanMuktiMarch from farmers from all corners of the country tomorrow and day after. Please join them! pic.twitter.com/TYLSXsLb5g
— Kavitha Kuruganti (@kkuruganti) November 28, 2018
किसान मुक्ति आंदोलन में राजस्थान, यूपी, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना से हजारों किसान शामिल हो रहे हैं।महाराष्ट्र में मिराज और बेंगलुरु से बाकायदा दो ट्रेनों की व्यवस्था की गई है। कर्नाटक से दिल्ली पहुंचीं किसान स्वराज 'आशा' से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता कविथा कुरुगंति गांव कनेक्शन को बताती हैं, 'दक्षिण भारत से करीब 10 हजार किसान दिल्ली पहुंच रहे हैं। सरकार ने भले ही किसानों की आत्महत्या के आंकड़े देने बंद कर दिए, लेकिन आत्महत्या का सिलसिला जारी है। तमिलनाडु में पिछले दिनों ही नारियल उत्पादक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्या के कारण समझेंगे तो उसके मूल में कर्ज़ का बढ़ना और सही दाम का न मिलना है। इसलिए हम लोग संपूर्ण कर्ज़माफी और गारंटेड एमएसपी की बात कर रहे हैं।'
कर्नाटक की सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी ने 43 हजार करोड़ रुपए की कर्जमाफी की बात की है। कविता कुरुगंति के मुताबिक उसका लाभ अभी किसानों को मिलना शुरू नहीं हुआ है। न्यूनतम समर्थन मूल्य भी यहां बड़ा मुद्दा है। अरहर के कटोरे कहे जाने वाले इस राज्य में किसानों की दशा बद्तर है। तो धान के कटोरे पश्चिम बंगाल में भी किसान परेशान हैं। अपने 45 साथियों के साथ दिल्ली पहुंचे उत्तर दिनेशपुर जिले में करनदिघी ब्लॉक के निवाय मुर्मू (23 वर्ष) धान और मक्का की खेती करते हैं। धान का सरकारी रेट भले ही पूरे देश में 1750 रुपए हो लेकिन इन्हें जिस रेट पर बेचा है वो कई सवाल उठाता है।
''हमने अपना धान 1200 रुपए क्विटंल में बेचा है। क्योंकि गांव के आसपास कोई सरकारी मंडी नहीं है। ऐसे तमाम सरकार योजनाओं के बारे में सुनता हूं लेकिन हमारे गांव तक नहीं पहुंच पाती।''- निवाय मुर्मू टूटी-फूटी हिंदी में अपनी दिल्ली आने की वजह बताते हैं।
मुर्मू जैसे देश में करोड़ों किसान हैं, जो सरकारी तय रेट पर अपनी फसल नहीं बेच पाते। इसलिए अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाने की मांग कर रही है।
वीएम सिंह कहते हैं, "आप कहीं से डीजल खरीदें वो सरकारी रेट से नीचे नहीं मिलता फिर किसान बेवकूफ है क्या जो अपनी फसल तय एमएसपी से नीचे बेचता है। अगर हमारा बिल पास हो जाए तो एमएमसी से नीचे खरीदना अपराध होगा।"
6 जून 2017 को मध्य प्रदेश में 6 किसानों की पुलिस की गोली से मौते के बाद बन अखिल भारतीय किसान समन्वय समिति ने पिछले वर्ष 20-21 को दिल्ली में किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया था। जिसमें देश के 186 किसान संगठन शामिल थे, इस दौरान किसानों ने मिलकर दो बिल तैयार किए थे। पहला था, 'कृषि उपज लाभकारी मूल्य गारंटी' दूसरा संपूर्ण कर्ज मुक्ति था। इन बिलों को 21 राजनैतिक दलों का समर्थन भी मिला, जिसके बाद महाराष्ट्र के किसान संगठन शेतकारी संगठना के अध्यक्ष और लोकसभा सांसद राजू शेट्टी ने दोनों बिलों को निजी विधेयक के रुम में लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया था।
किसान संगठन चाहते हैं, 11 दिसंबर से शुरु हो रहे संसद के शीतकालीन या उसके बाद विशेष सत्र में दोनों बिलों को पास किया जाए। दिसंबर में शुरु हो रहा शीतकालीन सत्र नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार का आखिरी संपूर्ण सत्र है।
योगेंद्र यादव कहते हैं, ''हमने पूरा देश घूमकर ये बिल तैयार किए थे। आप किसानों की आमदनी बढ़ाने की बात करते हो, हम भी वही कह रहे हैं। अगर आप सच में ऐसा चाहते हैं तो दोनों बिलों को पास कर दीजिए।''
''लोकसभा चुनाव सामने है। किसानों को दिल्ली पहुंचकर मोदी जी से कहना है कि जुमलों की राजनीति नहीं चलेगी, हम आपके साथ चलेंगे पहले भी वोट दिया था, आगे भी चलने को तैयार है, लेकिन आपको बिल पास करने होंगे, वर्ना 2019 में जाना पड़ेगा।''- फेसबुक लाइव में वीएम सिंह कहते हैं
ये पहली बार नहीं है कि किसान संगठन दिल्ली पहुंच रहे हैं। दो अक्टूबर को उत्तराखंड से चलकर हजारों किसान भारतीय किसान यूनियन की अगुवाई में 2 अक्टूबर को दिल्ली पहुंचे थे, जिनका सामना यूपी बॉर्डर पर लाठी और आंसू गैस से हुआ था। इनकी भी मुख्य मांगों में स्वामीनाथन आयोग कि रिपोर्ट को लागू करते हुए फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य शामिल था। लेकिन सरकार का कहना है कि हम 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करेंगे और फिलहाल डेढ़ गुना दे रहे हैं।
तीन अक्टूबर को किसान क्रांति यात्रा के बाद रबी की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होने के बाद केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने ट्वीटर पर लिखा, "21 फसलों के एमएसपी में उत्पादन लागत से 1.5 गुना या उससे अधिक वृद्धि करने के परिणामस्वरूप वर्ष 2018-19 के दौरान कृषि आय में (रिटर्न के रूप में) 60,000 करोड़ रुपये की वृद्धि प्रदान करेगा।"
लेकिन किसान संगठन और जानकार इसे आधा अधूरा बताते हैं। किसान नेताओं के मुताबिक सरकार जो न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रही है वो एटू प्लस एएफएल है, यानि फसल में लागत और किसान के परिजनों की मजदूरी शामिल है। जबकि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक सीटू- फसल की डेढ़ गुना लागत, खेत, किसान की मशीनरी और सभी तरह के लेबर को मिलाकर लाभकारी मूल्य तय किया जाए। भारत में हरित क्रांति के जनक प्रो. एमएस स्वामीनाथ की अगुवाई में 2004 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किसान आयोग बनाया था, किसानों की भलाई के लिए इसे वर्ष 2007 में लागू होना था, लेकिन यूपीए सरकार इसे दबाए रही। जिसे बीजेपी ने मुद्दा बनाया और 2014 में एनडीए की प्रचंड जीत की एक वजह ये भी रहा।
29-30 नवम्बर को हो रहे किसान मुक्ति मार्च को मिल रहा है देश भर के विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं का समर्थन।
— Swaraj India (@_SwarajIndia) November 28, 2018
Students from various universities are extendnding their solidarity in support of #KisanMuktiMarch
दिल्ली चलो! pic.twitter.com/Sp9JZGpQzZ
वीएम सिंह कहते हैं, ''जैसे किसी सरकारी कर्मचारी को महंगाई भत्ता मिलता है या वेतन आयोग लागू होता है तो उसे काफी पीछे से लागू किया जाता है, जिसका उसे एरियर मिलता है। नियमत: स्वामीनाथ आयोग की रिपोर्ट भी 2007 में लागू होनी थी, यानि 11 साल तक किसानों का नुकसान हुआ। अब हम यही कह रहे हैं कि सरकार या तो किसानों को 2007 के बाद की फसल पर एरियर दे या फिर अब तक किसानों पर जो पूरा कर्ज करीब 13 लाख करोड़ है वो पूरा माफ कर हिसाब बराबर करें।''
वीएम सिंह आगे जोड़ते हैं, ''खेती को जिंदा रखना है तो स्वामीनाथन आयोग वाला दाम देना होगा, एक बार किसानों को पूरे कर्ज़ से मुक्त करना होगा। क्योंकि खेती घाटे का सौदा बन गई है। किसान के बेटे खेती नहीं करना चाहते और नौकरी उन्हें मिल नहीं रही। वो अवसाद में जा रहा है।''
ये खबर अपडेट की जा रही है...
ये भी पढ़ें- पी साईनाथ का लेख - बेदख़ल लोगों का लंबा मार्चः चलो दिल्ली
ये भी पढ़ें- दिल्ली से स्मॉग हटा तो दिखा किसानों का आक्रोश, क्या 2019 में दिखेगा असर ?
ये भी देंखे- किसान आंदोलन : खेत छोड़ सड़क पर क्यों उतर रहे किसान?
#गाँव कनेक्शन #नरेन्द्र मोदी
More Stories