डकैत ददुआ से लोहा लेने वाली 'पाठा की शेरनी' बेरोजगारी से हार रही

Neetu SinghNeetu Singh   19 Feb 2020 11:55 AM GMT

चित्रकूट। ददुआ जो बोलता था, वह चित्रकूट के लोग करते थे। चंबल के इस खूंखार डकैत के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी में नहीं थी, लेकिन इसी इलाके की रामलली (50 वर्ष) ने ददुआ के खिलाफ आवाज ही नहीं उठाई, बल्कि उसके खिलाफ विद्रोह भी किया। लेकिन आज रामलली चित्रकूट छोड़ना चाहती हैं। वजह उनके पास कोई रोजगार नहीं है।

रामलली प्रशासन से इनाम में मिली अपने बंदूक को साफ़ करते हुए बताती हैं, ''उन दिनों चित्रकूट में ददुआ का ही शासन था। उसके खिलाफ आम लोग तो क्या पुलिस प्रशासन के लोग भी बोलने से डरते थे। लड़कियों का सुंदर होना उनकी जान का दुश्मन था। सुंदर लड़कियों को ददुआ के आदमी उठा ले जाते थे, महिलाएं इससे त्रस्त हो चुकी थीं।''

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चित्रकूट जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर पूर्व में मानिकपुर ब्लॉक के हरिजनपुर गाँव जाने का रास्ता अब बन गया है, लेकिन तब ददुआ सड़क ही नहीं बनने देता था, ताकि पुलिस न आ सके। रामलली बताती हैं, ''वर्ष 2001 में ददुआ सतना के रहने वाले एक बैंक मैनेजर के लड़के को अगवा करके लाया था। लड़के को मौका मिला तो जंगल से भागकर मेरे घर पर आ गया। यह जानते हुए कि ददुआ के लोगों ने इसे उठाया है, हमने उसे अपने घर पर रखा। जब ददुआ के लोगों को यह बात मालूम हुई, तो वे लड़के को मांगने मेरे घर आ गए। हमने देने से इंकार कर दिया।''

पाठा की शेरनी

आगे बताती हैं, ''मेरे पति इस बात की जानकारी देने मनिकपुर पुलिस थाने जा रहे थे तो रास्ते में ददुआ के लोगों ने तीन किलोमीटर दौड़ाकर पकड़ लिया और मेरे पास एक चिट्ठी भेजी कि लड़के को वापस कर दो नहीं तो तुम्हारे पति को मार डालेंगे।''

पाठा की शेरनी नाम से मशहूर रामलली इससे भी हार नहीं मानी और गाँव की महिलाओं को लेकर थाने पहुंच गई। पुलिस पर दबाव बना और वह रामलली के साथ हो गई। इस तरह किसी तरह पुलिस ने रामलली के पति को ददुआ के चंगुल से छुड़ाया, लेकिन रामलली की मुश्किल यहीं खत्म नहीं हुई। आए दिन उसे ददुआ की धमकियां मिलने लगीं।

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इसे देखते हुए रामलली के घर सुरक्षा के लिए पुलिस लगा दी गई। रामलली बताती हैं, "उस दिन हमारे यहां सुरक्षा के लिए कुछ पुलिस थी। शाम को अचानक मेरे घर पर हमला हो गया। पुलिस के लोगों से बंदूक लेकर मैंने भी गोलियां चलाईं। सात घंटे तक गोलीबारी के बाद हमने ददुआ के लोगों को बंदूक छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया। पुलिस अधिकारी मेरे काम से बहुत खुश हुए और मुझे और मेरे परिवार को आठ बंदूकें सुरक्षा के लिए दी गईं।''

अपने पति के साथ रामलली

रामलली के पति राम सुमेर (65 वर्ष) बताते हैं, "वह दिन डरावना तो ज़रूर था, लेकिन रामलली की हिम्मत देखकर मुझे भी हिम्मत आ गई थी। ददुआ के सामने बोलने की किसी की हिम्मत नहीं थी और हमने तो उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया था। आज रामलली की हिम्मत का ही कमाल है कि हमारे गाँव के चार किलोमीटर दूर तक कोई भी डाकू आने का नाम नहीं लेता है। यहाँ अभी भी कुछ डाकू हैं।"

'यहां काम नहीं, छोड़ दूंगी चित्रकूट
'

कभी जिस रामलली की बहादुरी की लोग दाद देते थे, आज वह इस कदर मजबूर है कि चित्रकूट छोड़ने की बात करती है। रामलली बताती हैं, "जिंदगी को दाव पर लगाकर ददुआ से लड़ी, लेकिन बंदूक के अलावा सरकार से एक रुपए भी नहीं मिला मुझे। जिसके बैंक मैनेजर के बेटे को बचाया था, उन्होंने पांच सौ रुपए दिए थे। आज हमारे यहाँ कोई काम नहीं है। मैं भी अब बाहर जाकर पैसे कमाना चाहती हूं। अब जीवन नहीं चल पा रहा है।"

कैमरा- बसंत कुमार

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