किसान महापंचायत : आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजा, एमएसपी गारंटी, बीज विधेयक- किसान नेता राकेश टिकैत के प्रमुख मुद्दों की सूची

22 नवंबर को लखनऊ में हजारों किसान, यह बताने के लिए इकट्ठा हुए कि आंदोलन केवल तीन कानूनों के बारे में नहीं था। साल भर से चल रहे इस किसान आंदोलन में अब तक 700 किसानों की जान जा चुकी है। किसानों को और क्या चाहिए? धरना स्थल से ग्राउंड रिपोर्ट।

Shivani GuptaShivani Gupta   23 Nov 2021 8:41 AM GMT

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश। सालभर से आंदोलन कर रहे किसान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की 19 नवंबर की घोषणा से संतुष्ट नहीं हैं। जिसमें उन्होंने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला लिया था। वह अपनी मांगों को लेकर आज लखनऊ में एक महापंचायत कर रहे हैं। अधेड़ उम्र की किसान रेखा देवी भी इस 'महापंचायत' में भाग लेने कि लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंची हैं। किसानों के हक के लिए वह पिछले कई महीनों से दिल्ली के सिंघू बार्डर पर धरने पर बैठी हुईं थी।

लखनऊ के इकोगार्डन पार्क में हो रही इस महापंचायत की रिपोर्ट करने के लिए जब गांव कनेक्शन वहां पहुंचा तो, महिलाओं के एक समूह को खाने की व्यवस्था में जुटा हुआ पाया। विरोध स्थल पर काफी सारी महिलाएं रोटियां बेल रहीं थीं। उनमें से रेखा देवी भी एक थीं।

कानपुर देहात जिले से आयी रेखा देवी। फोटो: अभिषेक वर्मा

कानपुर देहात जिले की रहने वाली रेखा देवी काफी लंबे समय से अपने कृषि परिवार में बार-बार होने वाले नुकसान को देखती आ रहीं हैं। उन्होंने देश के कृषि क्षेत्र में गड़बड़ी को दूर करने का दृढ़ संकल्प लिया और सिंघू बार्डर पर साल भर से चल रहे किसानों के आंदोलन का हिस्सा बन गईं। उन्होंने कहा कि किसानों के मुद्दे केवल कृषि कानूनों तक ही सीमित नहीं हैं। कृषि संकट बहुत बड़ा है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इस महापंचायत का आहवान किया है। इसमें भारत के 40 किसान संघों से जुड़े, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा के कई राज्यों के किसान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के तीन दिन बाद लखनऊ में इक्ट्ठा हो रहे हैं।

रेखा गुस्से से पूछती हैं,"उनके (पीएम मोदी) पास देखभाल करने के लिए कोई संतान नहीं है, लेकिन हमारे पास है। हम गरीबी में जी रहे हैं। राजा को अपनी प्रजा (लोगों) को सुनना चाहिए। हमने उन्हें अपनी व्यथा सुनने के लिए चुना है। अब हमारे पास क्या बचा है? पुराने और फटे कपड़े?"

वह आगे कहती हैं, "मुझे पीएम मोदी की बातों पर विश्वास नहीं है। मैं चाहती हूं कि कृषि कानूनों को संसद में बिना किसी देरी के निरस्त किया जाए। नौकरी भी नहीं है, बेरोजगारी (बेरोजगारी) बहुत है। किसान परिवारों के पास अपनी आजीविका चलाने का साधन नहीं है, मंहगाई भी बढ़ रही है।"

'संतुष्टी से बहुत दूर'

किसान और उनके नेता प्रधानमंत्री की कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा से संतुष्ट नहीं हैं। हालांकि वे तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे थे लेकिन उनका कहना है कि ये एक'अपूर्ण जीत' है जिसे वे प्रधानमंत्री से वापस लेने का आग्रह करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हजारों किसानों को संगठित करने वाले सबसे लोकप्रिय किसान नेता राकेश टिकैत ने गांव कनेक्शन को बताया कि देश में कृषि क्षेत्र को प्रभावित करने वाले कई मुद्दे हैं।

भारतीय किसान संघ के नेता टिकैत ने गांव कनेक्शन से कहा, "हम चाहते हैं कि यह (मोदी के नेतृत्व वाली) सरकार काम करे। हमें नहीं पता कि मोदी सरकार ने अचानक यह फैसला क्यों ले लिया। इस बार सबसे बड़ा सवाल किसानों की मौत, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी, बीज के बिल का है। हम सरकार के साथ इस पर चर्चा करेंगे।"

इको गार्डेन में आयोजित किसान महापंचायत में शामिल राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव जैसे किसान नेता। फोटो: शिवानी गुप्ता

अनुमान है कि पिछले एक साल में विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान 700 से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है। किसान नेता टिकैत ने कहा,"सरकार ने किसानों की हत्या की है। इसके लिए उन्हें जवाबदेह होना होगा। अगर वे इन कानूनों को पहले वापस ले लेते तो यह शहादत न होती। इन मौतों के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराया जाएगा।"

पंजाब से एक बुजुर्ग किसान सुखविंदर सिंह सुबह-सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी पहुंचा है। पंजाब के फरीदकोट जिले के रहने वाले सिंह कहते हैं, "मैं यहां सुबह करीब पांच बजे आ गया था। सीमा पर विरोध प्रदर्शन में सात सौ किसान मारे जा चुके हैं। जब तक उनके परिवारों को मुआवजा राशि, नौकरी, शहीद का दर्जा और एमएसपी की गारंटी नहीं दी जाती है, तब तक हम धरना-परदर्शन करते रहेंगे, तब तक असी घर नहीं जाएंगे। (हम तब तक घर वापस नहीं जाएंगे)"

तीन कृषि कानून - किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम- 2020, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम,-2020 पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम- 2020 को प्रदर्शनकारी किसान नेताओं ने किसान विरोधी बताया है।

प्रदर्शनकारियों द्वारा इस कानून को निजी निगमों के हित और कृषि क्षेत्र के निगमीकरण के प्रयास के रूप में भी देखा गया।

किसान महापंचायत और आगामी चुनाव

19 नवंबर को पीएम मोदी ने इसी महीने संसद के शीतकालीन सत्र में तीन कृषि कानूनों को वापिस लेने का ऐलान किया था। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी नेताओं ने यूपी चुनाव से पहले अचानक फैसले के लिए मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना करने के लिए ट्विटर का सहारा लिया।

इस बीच, स्वराज इंडिया पार्टी के नेता योगेंद्र यादव ने गांव कनेक्शन को बताया कि इस आंदोलन में भारतीय राजनीति में बदलाव लाने की क्षमता है। उन्होंने कहा, "सरकार की अपराजेयता का भ्रम गायब हो गया है। मुझे विश्वास है कि सफल किसान आंदोलन पूरे देश की राजनीति में बदलाव लाएगा।"

छह मांगें

21 नवंबर को संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र भेजा, जिसका शीर्षक था, 'देश और किसानों के लिए आपका संदेश'

पत्र ने कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए प्रधान मंत्री के कदम का स्वागत करते हुए, उन अन्य शर्तों के बारे में बताया जिनके बारें में किसान बात करते आए थे। तीन सबसे जरूरी मुद्दे, जिनके बारे में उम्मीद थी कि सरकार इनके बारे में जरूर कुछ करेगी। ये मुद्दे थे- न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी अधिकार बनाना, बिजली संशोधन विधेयक 2020/21 के मसौदे को वापस लेना, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम 2021" में किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान को वापस लेना।

इनके अलावा, संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने, पिछले महीने 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में निर्दोष किसानों की हत्या के लिए दोषी गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने और किसान आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले 700 किसानों के लिए एक स्मारक बनाने की मांग की है।

लखीमपुर खीरी हिंसा में चार किसान, दो भाजपा कार्यकर्ता और एक पत्रकार रमन कश्यप समेत आठ लोग मारे गए थे। उनके परिवारों ने गांव कनेक्शन से कहा कि अगर इन कानूनों को पहले वापस ले लिया होता तो आज वे सभी जिंदा होते।

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अनुवाद: संघप्रिया मौर्या

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