उत्तर प्रदेश की आधी आबादी को नई सरकार से क्या हैं उम्मीदें?

मुफ्त राशन, गैस सिलेंडर, स्मार्टफोन, स्कूटर और न जाने कितने वादों के साथ उम्मीदवारों ने वोटरों को लुभाया था। अब जब चुनावों के परिणाम आ चुके हैं और भाजपा फिर से सरकार बनाने की तैयारियों में लगी है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की 44 प्रतिशत मतदाता यानी यहां की महिलाएं फिर से बनने वाली इस नई सरकार से क्या उम्मीद कर रही हैं? एक रिपोर्ट

Shivani GuptaShivani Gupta   15 March 2022 6:57 AM GMT

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मोहनलालगंज (लखनऊ), उत्तर प्रदेश। 10 मार्च को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित किए गए। यहां हाल ही में मतदान हुए थे। इनमें से चार राज्यों - उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नई सरकार बनाने के लिए तैयार है, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) को पंजाब में बहुमत मिला है।

भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कुल 403 विधानसभा क्षेत्रों में से 255 सीटें जीती हैं। महिलाएं जिन्हें आधी आबादी कहा जाता है, वो इस राज्य के कुल मतदाताओं का 44 प्रतिशत हिस्सा हैं। चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का महिला मतदाताओं की तरफ खासा ध्यान था और चुनावी वादों में महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे काफी अहम थे।


यूपी चुनाव परिणाम 2022 के बाद, गांव कनेक्शन ने लखनऊ जिले के ग्रामीण इलाकों में महिला मतदाताओं से मुलाकात की और नई सरकार से उनकी क्या उम्मीदें हैं? ये जानने की कोशिश की।

एक प्राथमिक विद्यालय में बड़े-बड़े बर्तनों को साफ कर रही, भाजपा समर्थक शैलेंद्री देवी शर्मा पार्टी के सत्ता में वापस आने से काफी खुश नजर आ रहीं थीं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ अपने काम के लिए समय पर पैसा न मिल पाने पर परेशान भी थीं। वह एक स्कूल में रसोइए का काम करती हैं। उन्हें सुबह 8 से दोपहर 3 बजे की नौकरी के बदले में हर महीने 1,500 रुपये मानदेय मिलता है।

50 साल की शैलेंद्री देवी शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया, "पिछली सरकार में हमें एक हजार रुपए महीना मिलता था। इस सरकार ने हमारा मानदेय बढ़ाकर पंद्रह सौ कर दिया है।" वह मोहनलालगंज निर्वाचन क्षेत्र के मीसा ग्राम पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में काम करती हैं, जो राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 25 किलोमीटर दूर है।



उन्होंने कहा, "हमें समय पर पैसा नहीं मिल पा रहा है। पिछली बार सितंबर (2021) में मानदेय मिला था। बिना वेतन के पांच महीने हो गए हैं।" शर्मा आने वाले होली के त्योहार को लेकर भी खासी चिंतित हैं, क्योंकि उनके पास त्योहार मनाने के लिए पैसे ही नहीं हैं। वह कहती हैं, "सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे हमें समय पर वेतन मिलता रहे।"

मोहनलालगंज उन 255 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है जहां भाजपा ने सत्ता बरकरार रखी है। इस सीट पर बीजेपी के अमरेश कुमार ने 43.58 फीसदी वोट शेयर से जीत हासिल की है। समाजवादी पार्टी की सुशीला सरोज 16,000 से अधिक वोटों से हारी हैं।

मतदाताओं का एक नया वर्ग- फ्री राशन लाभार्थी

ग्रामीण मतदाताओं का कहना है कि भाजपा की जीत के प्रमुख कारणों में से एक कारण, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अतिरिक्त और मुफ्त राशन का वितरण है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गरीब और प्रवासी मजदूरों को प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो अतिरिक्त गेहूं या चावल दिया जा रहा है। भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने इस खाद्य सुरक्षा कल्याण योजना की घोषणा की थी। इसके अलावा, यूपी सरकार इन लाभार्थियों को अलग से पांच किलो अनाज उपलब्ध करा रही है।

केसरी रंग की साड़ी पहने कलावती अपने गेहूं के हरे-भरे खेतों में घूम रही थीं। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, "हमें सरकार की ओर से हर महीने मुफ्त राशन मिल रहा है। हमें खुशी है कि बीजेपी वापस आ गई है।"


लेकिन अगले ही पल वह थोड़ी चिंतित हो गईं। उन्होंने सवाल किया, "क्या सरकार इस मुफ्त राशन को अभी से बंद कर देगी?" सरकार ने इस योजना को मार्च 2022 तक बढ़ा दिया था, जो जल्द ही खत्म होने वाली है। इस योजना से राज्य के लगभग 15 करोड़ लोगों के लाभान्वित होने का दावा किया गया है।

रामावती, अपने पुदीना और गेहूं के खेत के पास एक पेड़ की छाया में बैठी, हरहा - आवारा पशुओं पर कड़ी नजर रख रही थी। उन्होंने कहा, "ये हमेशा हमारी फसलों को बर्बाद कर देते हैं। हम चाहते हैं कि सरकार इस मुद्दे को हल करने के लिए कुछ करे।" वह आगे कहती हैं, "सब खुश नहीं हो सकते हैं लेकिन मैं भाजपा की सरकार बनने से बहुत खुश हूं। हांलाकि मुझे वो (अतिरिक्त पांच किलो) वाला राशन नहीं मिलता है। लेकिन फिर भी हर महीने 35 किलो राशन घर पर आ जाता है। ये राशन मुझे पहले नहीं मिलता था।"

आवारा पशुओं के मुद्दे पर सरकार कुछ करे

ग्रेजुएशन कर रही श्रद्धा यादव ने हाल के विधानसभा चुनावों में पहली बार मतदान किया था। वह कॉलेज से अपने गांव सेंगटा लौट रही थीं, जोकि लखनऊ से करीब 22 किमी दूर है। उन्होंने कहा कि आस-पास अच्छे स्कूल-कालेज नहीं हैं। पढ़ाई के लिए घर से इतनी दूर जाना और आना उनके रोजाना का काम है।

यादव ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमारे गांव के आसपास अच्छे स्कूल और कॉलेज नहीं हैं। कुछ सरकारी स्कूल हैं, लेकिन वहां टीचर नहीं हैं। मैं रोजाना लखनऊ के कैसरबाग में पढ़ने जाती हूं। पहले कुछ दूर तक पैदल चलती हूं फिर एक टैक्सी साझा करती हूं। जब हम दूर पढ़ने जाते हैं तो सुरक्षा संबंधी परेशानी भी साथ जुड़ी होती हैं। मेरी मां हमेशा चिंता करती है।"

श्रद्धा ने आगे कहा, "आज स्कूल जाते समय, टैक्सी में हर कोई कह रहा था कि बीजेपी वापस आ गई है। सब जाति और वर्ग की बात करते नजर आए। लेकिन असली मुद्दों पर कोई बात नहीं करता है।" वह सवाल करती हैं, "मैं एक छात्रा हूं और एक किसान की बेटी भी। मेरे पास केवल दो मुद्दे हैं- अच्छी शिक्षा तक पहुंच और आवारा पशु। हम खेती पर निर्भर हैं, अगर आवारा पशु हमारी फसल बर्बाद करते रहेंगे तो गुजारा कैसे चलेगा?"

पुरानी पेंशन योजना को बहाल करें

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा पुरानी पेंशन योजना की बहाली भी था। पिछले साल नवंबर में, हजारों सरकारी शिक्षक पूरे उत्तर प्रदेश में नई पेंशन योजना के विरोध में लखनऊ में इकट्ठा हुए थे। वे पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग कर रहे थे।

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सत्ता में आने पर सभी सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों के लिए पुरानी पेंशन योजनाओं को बहाल करने का वादा किया था। 2004 में केंद्र की भाजपा सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया था और इसके बदले अंशदायी पेंशन प्रणाली शुरू की थी। उत्तर प्रदेश में 2005 में नई व्यवस्था अपनाई गई थी।

मोहनलालगंज के उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक दीपिका वर्मा ने पूछा, "पुरानी पेंशन योजना में मिलने वाली एक निश्चित राशि हमारे सेवानिवृत्ति को सुरक्षित करती थी। लेकिन नई पेंशन योजना बाजार से जुड़ी है। अब रिटायर होने वाले शिक्षकों को हर महीने 1500-1700 रुपए महीना मिल रहा है। इस महंगाई में हम इतने पैसे में कैसे गुजारा कर सकते हैं?" वह आगे कहती हैं, "हम चाहते हैं कि जब हम रिटायर हों, तो हमें एक निश्चित राशि मिले ताकि हमारा भविष्य सुरक्षित रहे। हमें उम्मीद है कि नई सरकार हमारी स्थिति को समझेगी और पुरानी पेंशन को बहाल करेगी।''

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