स्टेकिंग विधि से सब्जियों की खेती कर मुनाफा कमा रहे किसान
स्टेकिंग विधि से टमाटर की खेती करने के लिए बांस के डंडे, लोहे के पतले तार और सुतली की आवश्यकता होती है। पहले टमाटर के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। इसमें तीन सप्ताह का समय लगता है। इस दौरान खेत में चार से छह फीट की दूरी पर मेड़ तैयार की जाती है।
Divendra Singh 4 Jan 2019 7:31 AM GMT

महोली (सीतापुर)। सब्जियों की खेती के लिए मशहूर महोली ब्लॉक के सैकड़ों किसान परंपरागत तरीके से खेती करने के बजाए खेती की नई तकनीक अपनाकर मुनाफा कमा रहे हैं। सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर महोली ब्लॉक के दर्जनों गाँवों में इस समय रस्सी के सहारे बंधे टमाटर के पौधे दिखायी देते हैं। यहां के कई गाँव के किसानों के लिए स्टेकिंग विधि फायदेमंद साबित हो रही है।
महोली ब्लॉक के अल्लीपुर गाँव में टमाटर की खेती करने वाले किसान विनोद मौर्या (23 वर्ष) बताते हैं, 'हमारी तरफ बड़ी मात्रा में किसान सब्जियों की खेती करते हैं, शुरुआत में किसान पुराने तरीके से ही टमाटर, बैंगन और दूसरी सब्जियों की खेती करते थे, लेकिन अब किसान स्टेकिंग विधि से ही खेती करते हैं।'
स्टेकिंग विधि से टमाटर की खेती करने के लिए बांस के डंडे, लोहे के पतले तार और सुतली की आवश्यकता होती है। पहले टमाटर के पौधों की नर्सरी तैयार की जाती है। इसमें तीन सप्ताह का समय लगता है। इस दौरान खेत में चार से छह फीट की दूरी पर मेड़ तैयार की जाती है।
स्टेकिंग में बांस के सहारे तार और रस्सी का जाल बनाया जाता है, जिस पर लताएं फैलती जाती हैं।
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महोली ब्लॉक के अल्लीपुर चौबे गाँव के किसान इंद्रजीत मौर्या ने इस बार आठ बीघा में टमाटर लगाया है। इंद्रजीत बताते हैं, 'टमाटर की खेती बाजार पर निर्भर करती है, जिस हिसाब मार्केट में दाम मिलता है, उसी हिसाब से फायदा होता है लेकिन स्टेकिंग विधि से फसलों की सुरक्षा हो जाती है।'
महोली ब्लॉक के लगभग 700 एकड़ क्षेत्रफल में बैंगन, टमाटर, मिर्च, करेला, लौकी जैसी सब्जियों की खेती होती है। यहां के किसानों के आय का मुख्य जरिया सब्जियों की ही खेती है। इंद्रजीत आगे बताते हैं, 'परम्परागत तरीके से एक बीघा में टमाटर की खेती करने पर पांच हजार रुपए की लागत आती है, वहीं स्टेकिंग विधि से टमाटर की खेती करने पर बांस, तार, मजदूरी आदि को मिलाकर कुल लागत बीस हजार रुपए की आती है।'
स्टेकिंग विधि से होता है फायदा
टमाटर, बैंगन, मिर्च, करेला जैसी फसलों को सड़ने से बचाने के लिए उनको सहारा देना जरूरी होता है। टमाटर का पौधा एक तरह की लता होती है और लदे हुए फलों को भार सहन नहीं कर पाते हैं और नमी की अवस्था में मिट्टी के पास रहने से सड़ जाते हैं। बैंगन की फसल में भी यही होता है, इसके भी पौधे फलों का भार नहीं सहन कर पाते हैं और पौधे टूट जाते हैं।
सहारा देने की विधि
मेड़ के किनारे-किनारे दस फीट की दूरी पर दस फीट ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं। इन डंडों पर दो-दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांधा जाता है। उसके बाद पौधों को सुतली की सहायता से उन्हें तार से बांध दिया जाता है जिससे ये पौधे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। इन पौधों की ऊंचाई आठ फीट तक हो जाती है, इससे न सिर्फ पौधा मज़बूत होता है, फल भी बेहतर होता है। साथ ही फल सड़ने से भी बच जाता है।
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