गन्ने में बेस्ट इंटरक्रॉप के लिए अब्दुल हादी को किया गया सम्मानित

vineet bajpaivineet bajpai   16 Feb 2018 4:18 PM GMT

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गन्ने में बेस्ट इंटरक्रॉप के लिए अब्दुल हादी को किया गया सम्मानितअब्दुल हादी।

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ की आज 67 वर्षगांठ मनाई गई। इस मौके पर संस्थान की तरफ से ऐसे किसानों को सम्मानित किया जो किसी भी फसल में दूसरे किसानों से बेहतर काम कर रहे हैं। इसी कार्यक्रम में अब्दुल हादी (49) को उत्तर प्रदेश में गन्ने में बेस्ट इन्टरक्रॉप के लिए सम्मानित किया गया।

अब्दुल हादी सीतापुर जिले के बखरिया गाँव के रखने वाले हैं। हादी के पास 14 एकड़ जमीन है और वो पूरी ज़मीन पर इन्टरक्रॉपिंग विधि से खेती करते हैं। उन्होंने बताया, ‘’मैं सरद कालीन गन्ने के साथ में चना, मसूर, सरसों, गेहूं, अरहर, आलू, चुकन्दर, गजर, मूली, सलजम, पालक और गोभी की खेती करता हूं। वसंत कालीन गन्ने के साथ में उड़द, मूंग, मूंगफली, मक्का, भिन्डी, लोबिया और सेम की खेती करता हूं।’’

अपनी खेती में हमेशा कुछ नया करने के जुनून ने हादी को सफल किसानों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। वो इससे पहले भी कई बार सम्मानित किये जा चुके हैं। इससे पहले वर्ष 2015 में हादी ने औसत से चार गुना गन्ने का उत्पादन कर एक नया रिकार्ड बना दिया था, जिसके लिए उन्हें सम्मानित किया गया था।

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अब्दुल हादी को गन्ने में बेस्ट इंटरक्रॉपिंग के लिए किया गया सम्मानित।

गन्ना पेराई सत्र 2012-13 में गन्ना उत्पादन के आधार पर हुयी प्रतियोगिता में अब्दुल हादी ने गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। उन्होंने उस गन्ना पेराई सत्र में प्रति हेक्टेयर करीब 1998 कुन्तल गन्ने का उत्पादन किया था। इसके लिये उन्हें 35000 रुपए, प्रशस्ति पत्र और स्मृति चिन्ह पुरुस्कात स्वरूप प्रदान किया गया था।

''फसल कोई भी हो अगर उसकी बुआई सही समय पर और सही विधि से की जाए और फसल को सही समय पर खाद-पानी दिया जाए तो जाहिर सी बात है, पैदावार अच्छी होगी।'' सीतापुर जि़ला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर उत्तर पूरब दिशा में बिसवां ब्लॉक में रहने वाले सफल किसान अब्दुल हादी बताते हैं। हादी सफल उदाहरण हैं कि वैज्ञानिक सलाह कैसे खेती को मुनाफे के व्यवसाय में बदल सकती है। हादी पलहे प्रचलित पारंपरिक ज्ञान के आधार पर ही गन्ने की खेती करते थे, जैसे ही उन्होंने वैज्ञानिक सलाह और अपने पारम्परिक ज्ञान के मेल से खेती शुरू की, सफलता हाथ लगी।

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''किसानों को बुआई के लिये अच्छे बीज का चयन करना चाहिये। कमजोर बीज नहीं बोना चाहिये इससे उत्पादन घटता है। गन्ने की बुआई गहराई में करनी चाहिये इससे जब गन्ना बड़ा हो जाता है तो वो पलटता नहीं है। गन्ना अगर पलट गया तो भी उत्पादन घट जाता है। किसान कई बार इन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान नहीं देते हैं जिससे उत्पादन घट जाता है।'' हादी वर्ष 2012 में गन्ना उत्पादन के लिए राज्य स्तर पर द्वतीय पुरुस्कार प्राप्त करने के साथ ही जि़ला स्तर पर प्रथम पुरुस्कार के विजेता बन चुके हैं।

अब्दुल हादी इससे पहले भी कई पुरस्कार जीत चुके हैं।

अब्दुल पिछले करीब चार वर्षों से धीरे-धीरे रासायनिक खाद का इस्तेमाल घटा रहे हैं, इसकी जगह वो जैविकखाद को दे रहे हैं। अब्दुल कहते हैं, ''वर्ष 2012-13 में जब मुझे गन्ना उत्पादन में राज्य स्तर पर पुरुस्कार जीता था उस बार मैंने रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया था। उसक अगले वर्ष (वर्ष 2013-14 में) मैंने 50 प्रतिशत रासायनिक और 50 प्रतिशत जैविक खाद का इस्तेमाल किया और उस वर्ष हमने 2950 कुन्तल गन्ने का उत्पादन किया हुआ।'' वो आगे बताते हैं, ''वर्ष 2013-14 में भी मैंने प्रतियोगिता में भाग लिया था, जिसका अभी रिजल्ट नहीं आया है। लेकिन हमें पूरी उम्मीद है कि इस बार मैं प्रथम पुरुस्कार पाऊंगा।'' वो पांच एकड़ ज़मीन पर जैविक खेती करते हैं और वो कोशिश कर रहे हैं कि वो पूरी ज़मीन पर जैविक तरीके से खेती करें।

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गन्ने के साथ धान में भी जीता पुरुस्कार

अब्दुल गन्ने के साथ-साथ पूरी तरह से जैविक खेती करके धान के अच्छे उत्पादन के लिये भी पुरुस्कार जीत चुके हैं। वो बताते हैं, ''पिछले वर्ष हमारे यहां कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया में एक प्रतियोतियोगिता कराई गयी थी, जिसमें करीब 70 किसानों ने भाग लिया था। इस प्रतियोगिता में किसानों को धान की पूरी तरह से जैविक खेती करनी थी।'' वो आगे बताते हैं, ''उसमें मैंने एक एकड़ में तीस कुन्तल धान का उत्पादन किया था और मुुझे प्रथम बायवर्ड अवार्ड मिला था।'' अब्दुल अब धीरे-धीरे पूरी तरह से रासायनिक खादों व कीट नासकों का इस्तेमाल करना बन्द कर रहे हैं। वो रासायनिक खद की जगह जैवीक खाद का इस्तेमाल करते हैं, जिसे वो खुद अपने घर पर तैयार करते हैं।

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