इस समय खरीफ की फसलों में बढ़ जाता है रोग-कीट का खतरा, ऐसे करें रोकथाम

इस समय फसलों की खास ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि बारिश से वातावरण में पर्याप्त नमी रहती है और तेज धूप होने से तापमान भी अधिक हो जाता है, ऐसे में कीटो व रोगों को पनपने का मौका मिल जाता है। इसलिए इस समय खास ध्यान देने की जरूरत होती है।

Divendra SinghDivendra Singh   25 Aug 2018 5:37 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
इस समय खरीफ की फसलों में बढ़ जाता है रोग-कीट का खतरा, ऐसे करें रोकथाम

इस महीने वातावरण में तापमान व नमी की अधिकता से खरीफ की फसलों में कई तरह के रोग व कीट लगने की संभावना बढ़ जाती है, ऐसे में किसान कुछ उपाय अपनाकर अपनी फसल को बचा सकते हैं।

अगस्त महीने तक किसानों ने धान, मक्का, अरहर, मूंगफली, उड़द, मूंग जैसी खरीफ की फसलों की बुवाई कर ली है, इस समय फसलों की खास ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि बारिश से वातावरण में पर्याप्त नमी रहती है और तेज धूप होने से तापमान भी अधिक हो जाता है, ऐसे में कीटो व रोगों को पनपने का मौका मिल जाता है। इसलिए इस समय खास ध्यान देने की जरूरत होती है।

धान की फसल का रखें विशेष ध्यान


धान में तना छेदक हरा, भूरा व सफेद पीठ वाला फुदका और पत्ती लपेटक कीट (2 सूड़ी प्रति पौधा) के नियंत्रण के लिए कारटाप हाईड्रोक्लोराइड 4 जी. 18 किग्रा. (3-5 से.मी. स्थिर पानी में) छिड़काव करें अथवा एमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 125 मिली. 500-600 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।

ये भी पढ़ें : प्लास्टिक मल्चिंग विधि का प्रयोग कर बढ़ा सकते हैं सब्जी और फलों की उत्पादकता

यदि हिस्पा के दो प्रौढ़ कीट या दो ग्रसित पत्ती प्रति हिल दिखाई दे तो बाईफेन्थ्रिन 10 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली प्रति हेक्टेयर अथवा क्यूनालफास 25 ईसी. 1.50 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर 500-600 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।

वर्तमान मौसम शीथ ब्लाइट के अनुकूल है अतः प्रकोप दिखाई देने पर हेक्साकोनाजोल 5.0 ई.सी. की 1.0 ली. मात्रा को 500-750 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।

मक्के की फसल में करें ट्राइकोकार्ड का प्रयोग

मक्का की बुवाई के 45-50 दिन बाद (सिल्किंग स्टेज) नत्रजन की कुल संस्तुत मात्रा की एक चौथाई टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। जैविक विधि से कीट नियंत्रण के लिए ट्राइकोग्रामा अण्डयुक्त ट्राईकोकार्ड 50000 प्रति एकड़ की दर से पत्तियों की निचली सतह पर 5-6 दिन के अन्तर से दो बार नत्थी करें।

ये भी पढ़ें : वैज्ञानिकों ने विकसित की मटर की नई प्रजाति, इसकी खेती से मिलेगी बंपर पैदावार


अरहर की फसल में लग सकता है पत्ती लपेटक कीट

अरहर में पत्ती लपेटक का प्रकोप दिखाई देने पर डाईमेथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मिली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

अगर उड़द की बुवाई में हो गई हो देरी तो इन किस्मों की करें बुवाई

जो किसान उर्द की बुवाई अभी तक किसी कारणवश नहीं कर सके है, वह शेखर-1, शेखर-2 व शेखर-3 की बुवाई इस माह में समाप्त करें।

उर्द /मूंग की पत्तियों पर सुनहरें चकत्ते पड़ गये हों या सम्पूर्ण पत्ती पीली पड़ गयी हो तो यह पीला चित्रवर्ण रोग (यलो मोजेक) है। यह रोग सफेद मक्खियों द्वारा फैलता है। ऐसे रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर जमीन में गाड़ दें। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 30 ई0सी0 01 लीटर या मिथाइल ओ-डिमेटान (25ई0सी0) 01 लीटर प्रति हे0 की दर से दो-तीन छिड़काव करें।

ये भी पढ़ें : बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर झारखंड का ये किसान सालाना कमाता है 25 लाख रुपए

इस समय मूंगफली में लग सकता है टिक्का रोग, ऐसे करें रोकथाम


मुंगफली की बुवाई के 30-35 दिन बाद दूसरी निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करें और हल्की-हल्की मिट्टी चढ़ाते रहे। खूटिया (पेगिग) बनते समय निराई गुड़ाई न करें। मूंगफली में टिक्का रोग लगने का समय है अतः सतर्क रहें। प्रकोप होने पर मैंकोजेब अथवा कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. 225 ग्राम/हे. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.4 किग्रा. अथवा जीरम 27 प्रतिशत तरल के 3 लीटर अथवा जीरम 80 प्रतिशत के 2 किग्रा. के 2-3 छिड़काव 10 दिन के अन्तर पर करें।

गन्ने में बेधक कीटों के नियंत्रण के लिए करें जैविक उपचार

बेधक कीटों के जैविक नियंत्रण के लिये 50 हजार ट्राइकोग्रामा अंड युक्त ट्राइकोकार्ड प्रति एकड़ लगायें। कार्ड टुकड़ों में काटकर पत्तियों की निचली सतह पर नत्थी कर दें। यह कार्य 10 दिनों के अंतराल पर दोहराएं। आगामी शरदकालीन गन्ने की बुवाई वाला खेत यदि खाली है तो हरी खाद के लिये सनई व ढैचा की बुवाई करें।

ये भी पढ़ें : हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों पर मौसम और सरकारी उदासीनता की मार

इन बातों का रखें ध्यान

  • वर्तमान मौसम भूरा धब्बा रोग के लिये अनुकूल है अतः प्रकोप होने पर मैकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. मात्रा 500-750 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।
  • कम बारिश वाले क्षेत्रों में पौधों के समुचित विकास के लिए विशेष रूप से धान में कल्ले व गांठ बनने की अवस्था में पर्याप्त नमी बनाए रखनी चाहिए।
  • फसल की शुरूआती अवस्थाओं (20-30 दिन) में खरपतवार से अधिक नुकसान होता है, इसलिए खरपतवार नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना चाहिए, खरतवार नियंत्रण के लिए निराई गुड़ाई करें और संभव हो सके तो पैडीवीडर का प्रयोग करें।
  • वातावरण में तापमान और नमी की अधिकता रहने से रोग व कीटों की वृद्धि हो जाती है, इसलिए कीट नियंत्रण के लिए प्रकाश प्रपंच, बर्ड पर्चर, फेरोमोन ट्रैप, ट्राइकोग्रामा और रोग नियंत्रण के लिए ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें।
  • दलहनी व तिलहनी फसलों में बालदार भुडली की आरम्भिक अवस्था को मिट्टी का तेल मिले पानी में डालकर नष्ट कर दें अथवा डाईक्लोरोवास 76 ई.सी. की 750 मिली. मात्रा 500-600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.