सरसों की इन किस्मों की बुवाई से बढ़ेगा उत्पादन

Ashwani NigamAshwani Nigam   24 Sep 2017 6:34 PM GMT

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सरसों की इन किस्मों की बुवाई से बढ़ेगा उत्पादनसरसों की खेती।

लखनऊ। देश में खाद्ध तेलों की जितनी मांग है उसको पूरा करने के लिए हर साल 50 प्रतिशल तेल बाहर से आयात करना पड़ता है। खाद् तेलों में सबसे ज्यादा मांग सरसों तेल की होती है, ऐसे में आरएच-0725, सीएच-2800 और पीडीजेड-1 नामक सरसों की तीन किस्मों को विकसित किया है जिसकी खेती करके किसान अधिक उत्पादन ले सकते हैं।

इस बारे में जानकारी देते हुए सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर के निदेशक डॉ. पीके राय ने बताया, ''नई किस्मों के प्रति किसानों में जागरूकता की कमी और रबी सीजन में सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण तिलहन का जितना उत्पादन होना चाहिए नहीं हो रहा है। सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर, राजस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने देश की विभिन्न जलवायु को ध्यान में रखते हुए जिन तीन किस्मों को विकसित किया है उसको बुवाई के लिए अधिसूचित किया है।''

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रबी सीजन में सरसों की बुवाई का समय मध्य अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इसबार किसान सरसों की इन तीनों उन्नत किस्मों की बुवाई कर सकते हैं। सरसों की इन किस्मों से तेल भी अधिक मिलता है, सरसों की जो अभी तक की मौजूदा किस्में हैं उसमें 33 प्रतिशत तेल निकलता है लेकिन इन किस्मों में 45 प्रतिशत तेल मिलेगा।

सरसों की आरएच-0725 किस्म को उत्तरी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और जम्मू के असिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए विकसित किया गया है। यहां के किसान इसकी बुवाई कर सकते हैं। देश के वह क्षेत्र जहां की मिट्टी में लवणता अधिक है, ऐसी जगहों को ध्यान में रखते हुए सीएच-2800 को विकसित किया गया है। पीडीजेड-1ऐसी किस्म है जो सामान्यत सरसों उत्पादक हर राज्यों में हो सकती है।

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देश में सरसों उत्पादन वाले प्रमुख राज्यों में राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र हैं। अकेले राजस्थान में देश का कुल 50 प्रतिशत सरसों पैदा होता है।

सरसों अनुसंधान निदेशालय भरतपुर देश के 14 राज्यों के 81 जिलों में किसानों को सरसों की नई किस्मों की खेती करने के लिए जागरूक करने के साथ ही प्रशिक्षण भी रहा है। डॉ. पीके राय ने बताया कि तोरिया, पीली सरसों, गोभी सरसों, भारतीय राई, करन राई और तारामीरा की कई किस्मों के विकास का काम निदेशालय के कृषि वैज्ञानिक कर रहे हैं। देश को खाद्ध तेलों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए निदेशालय के वैज्ञानिक किसानों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

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