फेसबुक और व्हाट्सऐप पर खेती-किसानी का ज्ञान सीख मुनाफे की फसल काट रहे किसान

Divendra SinghDivendra Singh   16 Nov 2017 3:13 PM GMT

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फेसबुक और व्हाट्सऐप पर खेती-किसानी का ज्ञान सीख मुनाफे की फसल काट रहे किसानसोशल मीडिया से तेजी से जुड़ रहे हैं किसान।

भारत में खेती-किसानी के ढर्रे बदल रहे हैं। प्रगतिशील किसान परंपरागत खेती को छोड़कर मुनाफे वाली खेती करने की कोशिश में हैं। किसानों ने अपने-अपने ग्रुप बना रखे हैं। गन्ना उत्पादक, जैविक, कृषि सलाह, खेती बाड़ी जैसे कई ग्रुप हैं जिसमें वैज्ञानिक भी शामिल हैं जो किसानों की समस्याओं का मौके पर ही निदान करते हैं।

लखनऊ। अब किसान व्हाट्सऐप और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के साधन से जुड़ कर एक-दूसरे से जानकारियां साझा कर रहे हैं। साथ ही इन्हीं ग्रुप में कृषि विशेषज्ञ भी उन्हें सही सलाह भी देते हैं। इनती ही नहीं कई किसान तो अपनी फसल और दूसरे उत्पादन इन्हीं ग्रुप के जरिए बेच रहे हैं।

देश में इन दिनों किसानों ने अपनी पसंद और जरुरत के मुताबिक या तो व्हाट्सऐप ग्रुप और फेसबुक पेज बनाया है या दूसरे वाले में शामिल हैं। गन्ना किसानों के फेसबुक पेज सुगर केन ग्रोवर ऑफ इंडिया में 35 हजार लोग शामिल हैं, जिसमें कई पाकिस्तान के भी हैं। तो सीतापुर के विकास सिंह तोमर कृषि समाधान ग्रुप चलाते हैं, जिसमें कई जिलों के किसान अपनी रोज की समस्याएं, उपलब्धियां और एक दूसरे से अपनी बात रखते हैं।

विकास तोमर का ग्रुप

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) डॉ. पुरुषोत्तम व्हाट्सऐप ग्रुप और फेसबुक के माध्यम से किसानों को नयी जानकारियां देते हैं। साथ ही उनकी समस्याओं का समाधान भी करते हैं। इस ग्रुप में मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे कई प्रदेशों के हजारों किसान जुड़े हुए हैं।

सोशल मीडिया में अपनी शुरुआत के बारे में डॉ. पुरुषोत्तम बताते हैं, “सितम्बर 2014 में जब मैं ऑफिस में ही रहता था तो आइडिया आया कि कैसे इस तकनीक से किसानों की मदद की जाए, कैसे सोशल मीडिया किसानों के लिए मददगार साबित हो सकती है, तब पहली बार फेसबुक पर पल्स क्रॉप प्रमोशन ग्रुप (दलहन प्रचार समूह) नाम से ग्रुप बनाया, जिसमें किसानों को कृषि जुड़ी नई जानकारियों के साथ ही उनकी समस्याओं का समाधान भी किया जाता है।”

ग्रुप में उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले का किसान हैं तो मध्य प्रदेश के जबलपुर के भी किसान हैं, जो एक-दूसरे से अपनी जानकारी साझा करते हैं। ग्रुप में दूसरे वैज्ञानिक और जानकार भी हैं, जो किसानों को उचित सलाह देते हैं।

वो आगे बताते हैं, “फेसबुक के बाद व्हाट्सऐप ग्रुप चलाने की बात आयी तो एक दिन फेसबुक पर पोस्ट किया कि किसानों की मदद के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप बनाने जा रहा हूं, जो भी किसान जुड़ना चाहे जुड़ सकता है। तो पंजाब के एक किसान कैलाश शर्मा का मैसेज आया कि मैं आपकी मदद कर सकता हूं। उसके बाद हम ने ग्रुप की शुरुआत की।”

सितम्बर 2014 से शुरू हुए इस ग्रुप के सदस्यों ने भी अपने अलग-अलग ग्रुप बना लिए हैं। लगभग ऐसे 20 और ग्रुप चल रहे हैं। एक पशुपालन ग्रुप है, जिसमें देश भर के पशु पालक जुड़े हुए हैं। पूरे देश के किसान आपस जानकारियां बांटते हैं। पशुपालन ग्रुप में देश भर के अलग-अलग राज्यों की देसी गाय की जानकारी मिल जाती है।

मेरठ के नितिन काजला सहयोगी किसानों के साथ मिलकर साकेत नाम से जैविक खेती को लेकर संस्था और ग्रुप चलाते हैं।

डॉ. पुरुषोत्तम हरदोई के मल्लावा के तिंदुआ गाँव के रहने वाले हैं, 1998 में अल्मोड़ा आइसीएआर में कृषि वैज्ञानिक के पद नियुक्त हुए थे। उसके बाद 2004 में कानपुर में ज्वाइन कर लिया। डॉ. पुरुषोत्तम कहते हैं, “मैं आईआईपीआर में वैज्ञानिक हूं, लेकिन ये सभी ग्रुप्स अनोफिशियल ही चलाता हूं, क्योंकि संस्थान के अपने नियम हैं। अभी तो पूरी कोशिश है कि संस्थान के साथ ये ग्रुप्स चलाएं। हम वैज्ञानिक किसानों के मदद के लिए हैं, ऐसे में हमें किसानों की मदद करनी चाहिए।”

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फेसबुक के बाद व्हाट्सऐप ग्रुप चलाने की बात आयी तो एक दिन फेसबुक पर पोस्ट किया कि किसानों की मदद के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप बनाने जा रहा हूं, जो भी किसान जुड़ना चाहे जुड़ सकता है।
डॉ. पुरुषोत्तम, वरिष्ठ वैज्ञानिक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान

गुजरात के करौली जिले के कमालपुर ग्राम पंचायत के पिंटू लाल मीना भी इस ग्रुप से जुड़े हुए हैं। पिंटू बताते हैं, “ग्रुप से बहुत सी जानकरियां मिलती हैं, मैं अपने ग्राम पंचायत में कृषि पर्यवेक्षक का काम करता हूं तो अपने ग्राम पंचायत के किसानों को दूसरे प्रदेशों की नयी तकनीक की जानकारी इसी ग्रुप से दे पाता हूं।”

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