लीची उत्पादन पर कैसा रहेगा बढ़ती गर्मी का असर? विशेषज्ञाें ने बताया नुकसान से बचने का तरीका

मार्च-अप्रैल में बढ़े तापमान का असर लीची उत्पादन पर भी पड़ सकता है, विशेषज्ञों ने फसल को बचाने के लिए सुझाव दिए हैं, जिससे नुकसान से बचा जा सकता है।

Divendra SinghDivendra Singh   20 April 2022 11:16 AM GMT

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लीची उत्पादन पर कैसा रहेगा बढ़ती गर्मी का असर? विशेषज्ञाें ने बताया नुकसान से बचने का तरीका

भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, पूरे देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। फोटो: पिक्साबे

मार्च महीने के आखिरी सप्ताह के बाद से अचानक बढ़े तापमान ने लीची किसानों की भी चिंता बढ़ा दी है, विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च-अप्रैल में बढ़े तापमान का लीची उत्पादन पर असर पड़ सकता है।

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बिसनपुर बखरी गाँव के लीची किसान सुधीर कुमार पांडेय की एक हेक्टेयर की बाग है। सुधीर बताते हैं, "पहले चमकी बुखार की अफवाह, फिर कोविड के कारण किसानों को नुकसान हुआ, पिछले साल भी गर्मी बढ़ गई थी, लेकिन इस बार तो कुछ ज्यादा ही गर्मी बढ़ गई है।"

वो आगे कहते हैं, "जिन किसानों के पास सिंचाई की ड्रिप इरीगेशन जैसी सुविधा है उनके लिए तो ठीक है, लेकिन जो सामान्य तरीकों से सिंचाई करते है, उनकी लागत तो और बढ़ जाएगी।"

विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च-अप्रैल में बढ़े तापमान का लीची उत्पादन पर असर पड़ सकता है। फोटो: गाँव कनेक्शन

भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, पूरे देश में लगभग 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में लीची की खेती होती है। विश्व में चीन के बाद सबसे अधिक लीची का उत्पादन भारत में ही होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं।

बिहार में ज्यादातर किसान लीची की शाही और चाइना किस्म की खेती करते हैं, लीची की बागवानों का साल भर का खर्च इन्हीं लीची के बागवानी पर ही चलता है, ऐसे में अगर लीची के उत्पादन पर असर पड़ा तो किसानों की कमाई पर भी असर पड़ेगा।

लीची ग्रोवर्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह लीची की स्थिति के बारे में बताते हैं, "यही कुछ महीने तो लीची किसानों के लिए काम के होते हैं, साल भर किसान इसका इंतजार करता है, लेकिन जिस तरह से गर्मी बढ़ी है किसानों के लिए खेत में नमी बनाए रखना मुश्किल हो गया है।"

मार्च में बढ़े तापमान का लीची के उत्पादन पर क्या असर पड़ेगा, इसपर बिहार के मुज्जफरपुर में स्थित लीची अनुसंधान निदेशालय के प्रभारी निदेशक डॉ एसडी पांडेय कहते हैं, "जो तापमान 27-28 होना चाहिए वो 35-40 तक चला जाएगा तो इसका असर तो उत्पादन पर पड़ेगा ही। जितना तापमान अप्रैल-मई में होना चाहिए उतना मार्च में हो गया। तापमान बढ़ने फूल से फल बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है और फल गिरने लगते हैं, पेड़ पर जो फल बचते हैं उनका साइज भी छोटा रहा जाता है।"


वो आगे कहते हैं, "अगर खेत में नमी नहीं रहेगी तो फल गिरने लगेंगे, अभी कितने प्रतिशत उत्पादन पर असर पड़ेगा ये कहना मुश्किल है, लेकिन असर तो पड़ेगा।"

इस समय पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मधुमक्खी पालक मधुमक्खी के बॉक्स लेकर बिहार के मुजफ्फरपुर जैसे लीची वाले इलाकों पहुंच जाते थे, लेकिन लॉकडाउन में लोग जहां हैं, बढ़ती गर्मी का असर शहद उत्पादन पर भी पड़ सकता है।

डॉ पांडेय बताते हैं, "अगर गर्मी का असर फूल और फल पर पड़ेगा तो जाहिर है कि इसका असर मधुमक्खी पालन भी पड़ेगा, क्योंकि गर्मी की वजह से परागण कम होगा।"

लीची किसानों को अभी भी डर है कि अगर ऐसा ही मौसम रहा तो और नुकसान हो जाएगा। इसलिए इस समय कुछ बातों का ध्यान रखकर अभी भी किसान नुकसान से बच सकते हैं। इस बारे में डॉ एसडी पांडेय कहते हैं, "अभी भी किसान कुछ उपाय अपना सकते हैं, हम किसानों के लिए एडवायजरी भी जारी कर रहे हैं, जिससे किसान समय रहते अपनी फसल बचा लें।

इन बातों का ध्यान रखकर नुकसान से बच सकते हैं किसान

  • लीची की शाही किस्म में फल लग चुके हैं और अगर फल लौंग का आकार ले चुका है तो पौधों के थालों में हल्की सिंचाई करें तथा सूखी घास की मल्च बिछाएं।
  • शाही किस्म के पौधों में बोरेक्स (20%) 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। बोरेक्स की सही मात्रा का उपयोग करे, नहीं तो नुकसान हो सकता है।
  • 8-12 वर्ष के पौधों में 350 ग्राम यूरिया व 250 ग्राम पोटाश डालें और 15 वर्ष के ऊपर के पौधों में 450-500 ग्राम यूरिया व 300 से 350 ग्राम पोटाश डालें ध्यान रहें कि उर्वरकों का प्रयोग पर्याप्त नमी होने पर ही करें।
  • लीची फल बेधक (बोरर) कीट से बचाव के लिए थीयाक्लोप्रिड (21% एस.सी) 0.6 मिली/लीटर पानी अथवा नोवाल्यूरान 10 ई.सी. 1.5 मिली/लीटर या संयुक्त उत्पाद (नोवाल्यूरान 5.25% इन्डोक्साकार्ब 4.5%) एस.सी. 1.5 मिली/लीटर दवा का घोल बनाकर छिड़काव करें। फल बड़ी लौंग के आकार के हो जाने के बाद ही दवा का छिड़काव करें।
  • अच्छे परिणाम के लिए कीटनाशी/कवकनाशी के साथ स्टिकर 0.3 मिली./लीटर या सर्फ एक चम्मच प्रति 15 लीटर पानी में प्रयोग अवश्‍य करें।
  • मंजर/फल झुलसा व अन्य रोग से बचाव के लिए कीटनाशक के साथ ही कवकनाशी थायोफेनेट मिथाइल 70 प्रतिशत डब्ल्यू.पी. 2 ग्राम प्रति लीटर का बगीचें में फल लगे या बिना लगे सभी पौधों पर छिड़काव करें।
  • चाईना प्रजाति में अभी छिड़काव न करें। शाही किस्म में भी अभी यदि मधुमक्खी का विचरण हो रहा हो तो कुछ दिन रूककर ही छिड़काव करें।

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