गर्मी में बढ़ते तापमान के साथ पशुओं के लिए गहराया हरे चारे का संकट 

Ishtyak KhanIshtyak Khan   15 April 2017 11:55 AM GMT

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गर्मी में बढ़ते तापमान के साथ पशुओं के लिए गहराया हरे चारे का संकट गर्मी आते ही पशुओं के लिए चारे का संकट गहराया गया है।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

औरैया। गर्मी आते ही पशुओं के लिए चारे का संकट गहराया गया है। गेहूं की फसल कटने पर सूखे पड़े खेत, उड़ रही धूल के बीच भूखे पशु खेत में खड़े डंठल, मेड़ पर खड़ी घास के सहारे हैं। हाईवे पर शहर से चार किलोमीटर गाँव बिचैली निवासी पशु पालक देवेंद्र सिंह (55 वर्ष) बताते हैं, “गर्मी के मौसम में ज्वार ही हरे चारे का साधन है, लेकिन प्राइवेट नलकूप से लगाना महंगा पड़ता है। इसलिए पशुओं को खेतों में चरने के लिए छोड़ देते हैं। शाम को घर में भूसा और बाजरे की कुटी देते हैं।”

खेतों में खड़ी गेहूं की फसल के बीच पशुओं को हरा चारा आराम से मिल रहा था। फसल के कटने पर हरे चारे का संकट बढ़ गया है। किसान पशुओं को भूसा तो खिला देते हैं, लेकिन उसमें हरा चारा नहीं मिल रहे हैं। जायद की फसल की बुवाई में देरी होने की वजह से मई माह से पहले हरा चारा मिलना मुश्किल है।

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शहर से छह किलोमीटर दूर फफूंद मार्ग पर स्थित गाँव देवरपुर निवासी राम किशोर (46 वर्ष) के पास तीन भैंसे और दो गाय हैं। उनका कहना है, “इस मौसम में हरा चारा न मिलने से पशु अस्वस्थ हो रहे हैं। गिर रहे दूध को पूरा करने के लिए राजकीय पशु चिकित्सालय से मिलने वाले पाउडर को पशुओं को दे रहे हैं।”

गर्मी के मौसम में पशुओं स्वस्थ्य रखने के लिए उनका खास ख्याल रखना होगा। हरी घास न मिलने की वजह से पशु का स्वास्थ्य गिरने लगता है। इसलिए चरने के बाद जब पशु घर पर आए तो उसे गुड़ का पानी पिलाएं। ठंडे मौसम में चरने के लिए भेजें। दिन में पांच बार पानी पिलाएं, लपट से बचाने के लिए बंद जगह में बांधे।
एके सिंह, डिप्टी सीबीओ

पशु पालक इस समय पशुओं को खेतों में छोड़ देते हैं जो चारे की तलाश में एक से लेकर दो किलोमीटर दूर तक भटकते रहते हैं। गेहूं के खेत में खड़े डंठल और मेड़ों पर खड़ी घास से पशु अपनी भूख मिटा रहे हैं। बढ़ते तापमान के बीच जहां हरे चारे का संकट गहरा गया है। नदी, तालाबों में पानी न आने की वजह से पशुओं को पानी की भी समस्या हो रही है। इससे पशुओं में जहां दूध की मात्रा गिर रही है वहीं पशुओं का स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है।

तेज धूप से बचने के लिए पशु पेड़ की छाया का सहारा ले रहे हैं। सुबह से चरने के लिए छोड़े गये पशु दोपहर में छाया में खड़े हो जाते हैं। इसके बाद धूप ढलने पर फिर चरने के लिए निकलते हैं। जायद की फसल में ज्वार ही हरे चारे का प्रबंध है। इसके अलावा मक्का, बाजरा, लोबिया, उड़द, मूंग, मूंगफली की खेती से निकलने वाली हरी घास से ही चारे से निपटने का साधन है।

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