खेत में लगे खरपतवारों से करें रोगों का इलाज
Devanshu Mani Tiwari 22 April 2017 3:03 PM GMT
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
सुल्तानपुर। अक्सर खेतों में लगे खरपतवार को किसान उखाड़कर फेंक देते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के किसान सुहैल आलम खेतों में उगे खरपतवारों को घर पर जैविक दवाइयों की तरह प्रयोग करते हैं।
सुल्तानपुर जिले के बल्दीराय क्षेत्र के गौरा बारमऊ गाँव के 40 साल के किसान सुहेल आलम आम के बड़े किसान हैं। आम के साथ ही वो आलू और टमाटर की भी खेती करते हैं। सुहेल बताते हैं, “आलू, टमाटर जैसे सब्जियों में अक्सर मकोय और भटकटैया जैसे खरपतवार लग जाते हैं। अमूमन किसान इन खरपतवारों को खेतों से उखाड़कर फेंक देते हैं, लेकिन इनमें औषधीय गुण भी होते हैं जो ख़ासी, बुखार, जुकाम के साथ-साथ जॉन्डिस और टिटनेस जैसी बीमारियों में फायदेमंद हैं।”
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खेतों में अपने आप ही उगने वाली मकोय, गजरा, भटकटैया, भकोइ और डरका जैसे खरपतवार कई दवाइयों को बनाने में काम आते हैं। आयुर्वेदिक और अंग्रेजी दवा कम्पनियों में ऐसे खरपतवारों की अच्छी मांग रहती है। ज्यादातर दवा बेचने वाली कंपनियां इन खरपतवारों को किसानों से खरीद भी रही हैं। सुहेल बताते हैं “खेत में जगह-जगह उगने वाली मकोय को हम अलग करके घर पर इकट्ठा कर लेते हैं। मकोय का फल अगर रोज़ाना सेवन किया जाए तो इससे ख़ासी नहीं होती है। इसकी पत्तियों को पीस कर इसका रस पीने से पीलिया नहीं होता है।”
इस जिले में पिछले 20 सालों से शाहगंज चौराहे पर आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज कर रहे डॉक्टर रामशबद मिश्रा बताते हैं, “सभी खरपतवार खाने लायक नहीं होते हैं। जैसे भटकटैया का ज्यादा मात्रा में सेवन खतरनाक होता है वहीं मकोय को रोज़ाना खाने से बवासीर, सूजन, दिल के रोग आंखों की बीमारी, गठिया, खांसी उल्टी और कफ जैसी बीमारियां नहीं होती हैं।”
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