मधुमक्खी पाल कर आप भी कमा सकते हैं 16 लाख रुपये, जानिए कैसे करें ये व्यवसाय

पिछले कुछ सालों में मधुमक्खी पालन के व्यवसाय की तरफ लोगों का रुझान बढ़ा है। कई ऐसे परिवार हैं जो साल में इससे अच्छी कमाई कर लेते हैं। राजस्थान के पिंटू मीना ने 28 बॉक्स से इसकी शुरुआत की थी आज 400 बॉक्स में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं।

Bedika AwasthiBedika Awasthi   8 Feb 2024 8:07 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मधुमक्खी पाल कर आप भी कमा सकते हैं 16 लाख रुपये, जानिए कैसे करें ये व्यवसाय

आजकल पिंटू मीना और प्रेम बाई का ज़्यादातर समय खेत में रखे बक्सों के साथ ही बीतता है।

आप सोच रहे होंगे कि आखिर इन बक्सों में क्या ख़ास है? चलिए हम बताते हैं। इन बक्सों में रहती हैं किसानों और पर्यावरण की सहेलियाँ यानी मधुमक्खियाँ।

मधुमक्खियों की खासियत तो आप सभी जानते ही होंगे, जिनके बिना फूलों से फलियाँ नहीं बन सकती हैं। वही मधुमक्खियाँ पिंटू मीना की कमाई का ज़रिया बन गईं हैं।

राजस्थान, गंगापुर सिटी जिले के नयागाँव में 28 बक्सों से मधुमक्खी पालन की शुरुआत करने वाले पिंटू के पास आज 400 बॉक्स हैं।

पिंटू मीना गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मधुमक्खी पालन मैंने अपने पिता से सीखा था; हम जुलाई से लेकर फरवरी तक बॉक्स अपने क्षेत्र में ही रखते हैं, यहाँ अच्छा शहद मिल जाता है।"


वो आगे कहते हैं, "इस साल लगभग 15 से 16 लाख की कमाई होगी और अगर किसान चाहे तो मधुमक्खी पालन करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, लेकिन उन्हें इनका पालन करने से पहले `पूरी जानकारी होनी ज़रूरी है।"

मधुमक्खी पालन का गणित समझाते हुए वो कहते हैं, "पालकों को इसमें निवेश करने से पहले ये ज़रूर जान लेना चाहिए कि किस हिस्से में फूलों में मधु की उपलब्धता है।"

शरद ऋतु में विशेष रूप से अधिक ठंड पड़ती है और सर्दी से बचने के लिए मधुमक्खी पालकों को टाट की बोरी का दो तह बनाकर अंदर के ढक्कन के नीचे बिछा देना चाहिए। यह काम अक्टूबर में करना चाहिये। इससे मधुमक्खी के बक्से का तापमान एक समान गर्म बना रहता है। संभव हो तो पॉलिथीन से प्रवेश द्वार को छोड़कर पूरे बक्से को ढक देना चाहिए। या घास फूस या पुवाल का छापर टाट बना कर बक्सों को ढक देना चाहिए।

ग्रामीण भारत में कृषि आधारित उद्यमिता से जुड़े तमाम दूसरे कामों की तरह मधुमक्खी पालन से कमाई भी बॉक्स की संख्या, आसपास फसल, काम करने के तरीके, मार्केटिंग आदि पर निर्भर करती है।


मधुमक्खियां सिर्फ शहद नहीं देती बल्कि वो प्रकृति की खाद्य श्रृंखला की अहम कड़ी हैं। कृषि और खाद्य जानकारों के मुताबिक 70 फीसदी फसलें मधुमक्खियों द्वारा परागण करने से होती है। ऐसे में मधुमक्खी फसलों के अच्छे उत्पादन में भी लाभदायक है।

पिंटू मीना ने गाँव कनेक्शन से आगे बताया कि "एक मधुमक्खी पालन बॉक्स से 10 दिन में 4-5 किलो शहद का उत्पादन कर सकते हैं; लेकिन ठंड में इस बार उत्पादन पूरी तरह प्रभावित है; कम उत्पादन होने के कारण इस बार किसानों से कंपनी 145-150 प्रति किलो के भाव से शहद खरीद रही है।"

मधुमक्खी पालन के आय व्यय का गणित

गंगापुरसिटी जिले के सहायक कृषि अधिकारी पिन्टू मीना पहाड़ी मधुमक्खी पालन का गणित समझा रहे हैं।

वैसे तो ये सब मौसम और फसल में लगने वाले फूलों के ऊपर निर्भर करता है; लेकिन औसतन एक बॉक्स से लगभग 4-5 किलो शहद 10 दिन में मिल जाता है। बाकी दिनों में जब फसल में फूल कम रहता है, तब भी एक बॉक्स से साल भर का औसत 30-35 किलो निकल जाता है।

साल भर में औसत लगभग 13-14 क्विंटल शहद प्राप्त हो जाता है, जो 100 रुपये किलो कम्पनी खरीद लेती है; ये 13-14 लाख के लगभग कुल बिक जाता है। इसमें से लगभग 1,50,000 रुपये लेबर चार्ज, 2,00,000 के लगभग बॉक्स को एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट करने पर ट्रांसपोर्ट चार्ज आता है।


10000 रुपए के लगभग दवा और रुपए लाख रुपये के लगभग गर्मी के मौसम में जब फूल नही रहता तब मधुमक्खियों को जीवित रखने के लिए उन्हें भोजन के रूप में चीनी खिलाते हैं उसका खर्च हो जाता है इसके अन्य खर्चे लगभग 60 हज़ार रुपये का हो जाता है।

इस प्रकार कुल खर्च 5 लाख 20 रुपये के लगभग हो जाता है। आखिर में शुद्ध लाभ अगर सारी परिस्थिति अनुकूल रहे तो 7,80,000 रुपए हो जाता है।

पाँच तरह प्रकार की होती हैं मधुमक्खियाँ

मधुमक्खियों की पाँच तरह की प्रजातियाँ होती हैं। इनमें कुछ देशी प्रजाति है तो कुछ विदेशी।

1. एपिस सेरेना इंडिका- आमतौर पर इसे देशी मधुमक्खी के नाम से जाना जाता है। इस प्रजाति का पालन आसानी से किया जा सकता है। एक साल में इसके एक बॉक्स से 10 से 15 किलोग्राम शहद का उत्पादन किया जा सकता है। इस प्रजाति की मधुमक्खियाँ इंसान पर झुंड में अटैक नहीं करती है।

2. एपिस मेलीफेरा- मधुमक्खी की यह यूरोपीय प्रजाति है। इस प्रजाति की मधुमक्खियाँ भी इंसानों पर झुंड में हमला नहीं करती है। इसलिए इसका पालन आसानी से किया जा सकता है। इस प्रजाति के एक बॉक्स से सालाना 30-60 किलो शहद का उत्पादन किया जा सकता है। हालाँकि भारत में सालाना उत्पादन 30 किलोग्राम होता है।


3. डाइगोना बी- इसे आमतौर पर डंक रहित मधुमक्खी कहा जाता है, जो इंसानों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाती है। इसका पालन किया जा सकता है, लेकिन उत्पादन बेहद कम होता है। इसका शहद औषधीय गुणों से भरपूर और खाने में कड़वा होता है। इसलिए इसका प्रयोग केवल विभिन्न प्रकार की दवाइयाँ बनाने में ही किया जाता है। इस प्रजाति की मधुमक्खियाँ खुद मोम का उत्पादन नहीं करती हैं। यह विभिन्न पेड़ पौधों से गोंद इकट्ठा करके छत्ता बनाकर शहद को सहेजती हैं।

4. एपिस फ्लोरिया- यह आकार में छोटी और जंगल में रहने वाली होती हैं। जो भारत में खेतों किनारे या जंगलों में विभिन्न पेड़ पौधों में पाई जाती है। इस प्रजाति की मधुमक्खी एक जगह नहीं रूकती है। इस वजह से इसका पालन संभव नहीं है।

5. एपिस डॉर्सेटा- एपिस फ्लोरिया की तुलना में इसका आकार काफी बढ़ा होता है। यह भी जंगलों में पाई जाती है। यह इंसानों पर झुंड में अटैक करती है। इसलिए इसका पालन संभव नहीं है।

स्वीट क्रांति के तहत सरकार कैसे मदद करती है

मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (एनबीएचएम) चला रही है।

देश में इसकी शुरुआत 2017 में हुई थी, जिसका उद्देश्य देश में हनी और वैक्स आदि के जरिये किसानों और ग्रामीणों को आजीविका के नए अवसर देना और आमदनी बढ़ाना है।

देश में मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करने के लिए खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग राज्य / मंडलीय कार्यालय / खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, सीबीआरटीआई, मधुमक्खी पालन एनजीओ, राज्य मधुमक्खी पालन विस्तार केंद्र और मधुमक्खी पालन सहायक या मास्टर ट्रेनर आदि के माध्यम से जागरूकता, ट्रेनिंग, मार्केटिंग और लोन आदि के संबंध में जानकारी और सुविधाएँ दी जाती हैं।

#Honeybee #Women Beekeeper KisaanConnection 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.