ये वजह है इस बार बनारसी आम 'लंगड़ा' के महँगा होने और 'लंगड़ा' कहे जाने की

बनारस का लंगड़ा आम इसबार मंडी में आते ही लंगड़ा रहा है। देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ‘लंगड़ा’ किस्म आम के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है। किसानों के मुताबिक, इसका कारण अप्रैल और मई में होने वाली बेमौसम ओलावृष्टि और बारिश है।

Dewesh PandeyDewesh Pandey   15 Jun 2023 11:19 AM GMT

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वाराणसी, उत्तर प्रदेश। 'लंगड़ा' ये शब्द सुनते ही आम के शौकिनों के मुँह में पानी आ जाता है। लंदन से लेकर जापान तक निर्यात हो चुके इस आम ने कई देशों को अपना दीवाना बनाया है। लेकिन इस बार ख़राब मौसम ने लंगड़ा आम की हालत पतली कर दी है। इस गर्मी में लंगड़ा आम ऊँचे दामों पर बिक रहा है। जहाँ पिछले साल यह आम 60 रुपये किलो था, इस साल 150 रुपये किलो है।

देशभर में करीब 1500 वैरायटी के आम पाए जाते हैं। इन्हीं में से एक है 'लंगड़ा '। इस साल 31 मार्च को इस विरासती शहर के मशहूर लंगड़ा किस्म के आम को प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग के साथ प्रमाणित किया गया था। लेकिन आम किसानों के लिए ये अब सिर्फ आम बात है।

अल्फांसो आम की तुलना में इसका स्वाद किसी मामले में कम नहीं है। यही वजह है लंगड़ा आम की देशभर में सबसे ज़्यादा माँग रहती है। लेकिन इस बार हालात अलग है। फ़सल तैयार हो गई, लेकिन किसानों के चेहरे पर मायूसी है।


चोलापुर प्रखंड के बरिसियानपुर गाँव के 50 साल के बाग मालिक राजेंद्र मौर्या ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मैं अपने लंगड़ा आम के बाग को 60,000 रुपये में छह महीने के लिए पट्टे पर देता हूँ । मेरे बगीचे में 100 पेड़ हैं। इस साल अनियमित मौसम और बेमौसम बारिश के कारण मुझे अपने बगीचे के लिए सिर्फ 45,000 रुपये ही मिल पाएँगे।” वह कहते हैं, "जिस किसान ने इसे पट्टे पर लिया है, वह मुझे पूरी कीमत देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि वह भारी नुकसान का सामना कर रहा है।"

मौर्य ने कहा, "पिछले 20 सालों सें में बाग चला रहा हूँ लेकिन ऐसी स्थिति मैंने पहले कभी नहीं देखी।" किसान ने आगे बताया, “नुकसान इतना ज़्यादा था कि लगभग 50 बीघा में फैले मेरे बाग से उत्पादन 60 टन से घटकर सिर्फ 30 टन रह गया है! यह मेरे अपने परिवार पर असर डालेगा क्योंकि यह बाग मेरे लिए साल में छह महीने की आय का एकमात्र स्रोत है।” (एक टन, 1,000 किलोग्राम के बराबर होता है।)

मौर्य के बाग से करीब 15 किलोमीटर दूर अजय कुमार राजभर भी अपना नुकसान गिना रहे हैं। चिरईगाँव ब्लॉक के रुस्तमपुर गाँव के एक आम किसान और व्यापारी, राजभर ने 150,000 रुपये की कीमत पर 250 बीघा बाग लीज पर ली थी।

किसान ने बताया, “खराब मौसम के अलावा, मुझे समय पर कीटनाशक लेने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। नतीजतन, कीट ने फसल पर कहर बरपाया है। ओलावृष्टि से आधे आम नष्ट हो गए और बाकी बचे आधे में कीटों के संक्रमण के कारण कम वृद्धि देखी जा रही है।"

-वाराणसी जिले के बागवानी विभाग के अनुसार, जिले में कुल 1,635 बाग मालिक हैं, जो लंगड़ा किस्म के आम की ख़ेती करते हैं।

जिला बागवानी अधिकारी ज्योति कुमार सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हमने इस साल 2,100 टन लंगड़ा आम उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया था। आम का ये मौसम अपने चरम पर है और अब तक हमने 1,410 टन उत्पादन दर्ज किया है।" अधिकारी ने अनियमित मौसम के अलावा, समय पर सिंचाई के बारे में सतर्क नहीं रहने के लिए किसानों को दोषी ठहराया। उनके मुताबिक इसके नुकसान की एक वजह उनकी लापरवाही भी थी।

मौसम की मार

वाराणसी के उदय प्रताप डिग्री कॉलेज में बागवानी विभाग के सहायक प्रोफेसर अवधेश नारायण सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया कि इस साल मार्च में ज़्यादा गर्मी ने आम के फूलों को मुरझा दिया था जिससे फल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

उन्होंने कहा, "शुरुआती चरणों में झुलसाने वाली गर्मी किसी भी फल के फूल के लिए नुकसानदायक साबित होती है। फूलों के नुकसान से उसके फल पर भी असर होगा। इस साल मार्च अप्रत्याशित रूप से गर्म था और इसके बाद अप्रैल और मई में हुई ओलावृष्टि ने फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया।”


आम की खेती करने वालों में, सबसे ज्यादा प्रभावित वे किसान हैं जिनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत उनकी वार्षिक आम की फसल है। तीम बिरसियानपुर गाँव के सुभाष कुमार गौतम ऐसे ही एक किसान हैं।

गौतम ने शिकायत करते हुए कहा, “मेरे बगीचे में कुछ 50-60 पेड़ हैं। मेरे जैसे किसानों को अपनी उपज के लिए 25-30 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहा है और व्यापारी इसे 70-80 रुपये किलो में बेच रहे हैं। यह गलत है और किसानों का शोषण है।

जिला उद्यान अधिकारी ज्योति कुमार सिंह ने भरोसा दिया कि विभाग जल्द ही आम के उत्पादन को बढ़ाने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए शिविर लगाएगा।

लंगड़ा कहे जाने के पीछे की कहानी

इस आम को लंगड़ा कहे जाने के पीछे भी एक कहानी है। वहाँ के लोग बताते हैं, करीब तीन-चार सौ साल पहले बनारस के एक शिव मंदिर में एक साधु आकर रुके। अपने साथ लाए आम के दो पौधों को उन्होंने मँदिर के पीछे लगा दिया था। उन्होंने दोनों पौधों की खूब सेवा की। करीब चार साल तक वो इसी मंदिर में रहे। जब आम की मंजरियाँ निकल आईं तो उसे तोड़ कर शिवलिंग पर उन्होंने चढ़ा दिया, और कहाँ अब इस मंदिर से मेरे जाने का वक़्त आ गया है। जाने से पहले साधु ने मँदिर के पुजारी से आग्रह किया कि फल निकलने पर आम को कई हिस्सों में काटकर शिव जी को चढ़ा दें और भक्तों को प्रसाद बाँट दिया करें, लेकिन इस बात का ध्यान रखें इसकी गुठली या कलम किसी को नहीं दें।


मंदिर के पुजारी ने ऐसा ही किया। लेकिन एक दिन जब इस स्वादिष्ट आम की खबर काशी नरेश को लगी तो उन्होंने खुद जाकर आम के पेड़ को देखा और फल खाया। उनके कहने पर पुजारी ने भगवान शिव से आज्ञा लेकर राजमाली को पौधे की कलमें सौप दी। रामनगर में लगे उन आम के पेड़ों से पूरे बनारस में ये ख़ास किस्म फ़ैल गई। इस आम को लंगड़ा इसलिए कहा जाता है क्योंकि जिस मँदिर के पुजारी ने कलमें दी थी वो दिव्यांग थे। उन्हें लोग लंगड़ा पुजारी के नाम से बुलाते थे। तभी से इस आम को लंगड़ा कहा जाने लगा।

भारत में आम का उत्पादन

भारत दुनिया का सबसे बड़ा आम उत्पादक है, जो दुनिया के आमों का लगभग आधा उत्पादन करता है। डेटा से पता चलता है कि 2019-20 फसल वर्ष (जुलाई-जून) के दौरान वार्षिक उत्पादन 20.26 मिलियन टन को छूने के साथ भारत दुनिया के लगभग आधे आम का उत्पादन करता है।

यहाँ फलों की लगभग एक हजार किस्में उगाई जाती हैं, लेकिन व्यावसायिक रूप से केवल 30 का ही इस्तेमाल किया जाता है। विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत से ताज़ा आमों का निर्यात 1987-88 में 20,302 टन था, जो 2019-20 में बढ़कर 46,789.60 टन हो गया।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा ) के अनुसार, महाराष्ट्र के अल्फांसो का देश से निर्यात होने वाले आमों में एक बड़ी हिस्सेदारी है। अन्य लोकप्रिय किस्मों में केसर, लंगड़ा और चौसा शामिल हैं। एपीडा वाणिज्य विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक स्वायत्त संगठन है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बनाए जाने वाले भारतीय बागवानी डेटाबेस के अनुसार, उत्तर प्रदेश देश में आम का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और बिहार का नंबर आता है।

mango farmer #banaras 

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