महाराष्ट्र के किसान ध्यान से इसे पढ़ें, बुवाई में ज़ल्दबाजी कहीं महँगी न पड़ जाए

देश में लाखों किसान मानसून का इंतज़ार कर रहे हैं। यह न सिर्फ एक मौसमी घटना है बल्कि उनकी ज़मीन को हरा-भरा करने और रोज़गार को बनाए रखने का ज़रिया भी है। महाराष्ट्र में मानसून के मौसम में अब तक माइनस 86 प्रतिशत बारिश दर्ज़ की गई है। खरीफ़ फ़सलों की बुवाई में देरी हो रही है। पुणे और सतारा जिलों से एक ग्राउंड रिपोर्ट।

D SarikaD Sarika   20 Jun 2023 7:04 AM GMT

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महाराष्ट्र के किसान ध्यान से इसे पढ़ें, बुवाई में ज़ल्दबाजी कहीं महँगी न पड़ जाए

महाराष्ट्र के सतारा में बारिश की कमी वाले इलाके ‘खाटव’ में रहने वाले 44 वर्षीय किसान जगताप काफी मायूस हैं।

पुणे और सतारा, महाराष्ट्र। मानसून में देरी के हर बीतते दिन के साथ, रमेश जगताप को इस दिवाली अपनी दूसरी बेटी की शादी करने का सपना फीका पड़ता दिखाई दे रहा है। महाराष्ट्र के सतारा में बारिश की कमी वाले इलाके ‘खाटव’ में रहने वाले 44 वर्षीय किसान जगताप काफी मायूस हैं।

चिंता में डूबे किसान ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मानसून के आने में पहले ही काफी देर हो चुकी है, मैंने अभी तक अपने खेत में कुछ भी नहीं बोया है। अगर बारिश हुई तो मुझे बाजरा बोना पड़ेगा। और अगर अगले 15 दिनों तक बारिश नहीं हुई तो मैं सिर्फ रबी (सर्दियों की फसल) ज्वार ही बो पाऊँगा। उसके लिए भी मानसून के मौसम के अंत में पर्याप्त बारिश होना चाहिए।" रमेश अपनी चार एकड़ ज़मीन पर ख़ेती के लिए बारिश पर निर्भर हैं।


जगताप की सूखी और बँजर ज़मीन से लगभग 180 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में भगवान राउत ने भी अपनी दो एकड़ ज़मीन को जोत कर बुआई के लिए तैयार कर रखा है। पिछले साल 12 जून तक पुणे के मुलशी के किसान ने सोयाबीन की बुवाई कर दी थी, लेकिन इस साल 17 जून को जब गाँव कनेक्शन ने उनके खेत का दौरा किया तो वह बँजर थी।

64 साल के किसान ने शिकायत करते हुए कहा, “पिछले कुछ हफ्तों से, मैं और मेरी पत्नी खरीफ की फसल की बुवाई के लिए खेत को तैयार करने में काफी मेहनत कर रहे हैं। लेकिन बारिश नहीं हो रही है।” वह आगे कहते हैं, “हमारे इलाके के कई किसानों ने पहले ही बुवाई शुरू कर दी है, लेकिन बारिश में देरी के कारण उन्हें दो बार बुवाई करनी पड़ सकती है जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाएगी। इसके अलावा, सोयाबीन की बुवाई में देरी से कीटों और बीमारियों की संभावना भी बढ़ जाती है। और फिर फसल की उपज पर असर पड़ता है।"

भारतीय किसानों की हर साल मानसून पर दांव लगाने की कवायद शुरू हो चुकी है। मानसून सिर्फ एक वार्षिक मौसम घटना नहीं है, बल्कि यह उन लाखों किसानों के लिए उम्मीद की किरण है, जो पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं। मानसून के देर से आने की वजह वह फसल नहीं रोप पा रहे हैं।


राउत ने कहा, " देर से आने वाला मानसून पूरे फसल चक्र को प्रभावित करता है। इससे हमारी रबी की फसल पर भी असर पड़ेगा।"

उनकी पत्नी छाया राउत ने शिकायत की, “पिछले साल ही बेमौसम बारिश के कारण हमारी फसलें बर्बाद हो गई थीं। अब देर से आने वाले मानसून ने हालात काफी खराब कर दिए हैं। मुझे चिंता है कि हम अपना कर्ज़ कैसे चुकाएंगे।''

महाराष्ट्र में अब तक माइनस 86 प्रतिशत बारिश

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, महाराष्ट्र के कुल 36 जिलों में से 35 में भारी बारिश की कमी दर्ज की गई है और एक जिले को 'नो रेन' श्रेणी के तहत वर्गीकृत किया गया है।


राज्य में माइनस 86 फीसदी की भारी कमी है। 102.30 मिलीमीटर (मिमी) वर्षा की सामान्य मानसून वर्षा के मुकाबले, इस दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में राज्य में 1 जून से 18 जून के बीच सिर्फ 14.50 मिमी वर्षा हुई है।

मराठवाड़ा और विदर्भ दोनों ही इलाके में बार-बार पड़ने वाले सूखे और किसानों की आत्महत्या के लिए जाने जाते हैं। दोनों राज्यों में अब तक शून्य से 90 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है। मध्य महाराष्ट्र में माइनस 84 फीसदी कम बारिश हुई है, जबकि कोंकण और गोवा मौसम उपखंड में माइनस 80 फीसदी बारिश हुई है।


सरकार ने कहा, बुवाई में ज़ल्दबाजी न करें

स्थिति को ध्यान में रखते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को आगाह किया है कि जून में खरीफ फसलों की बुवाई में जल्दबाजी न करें।

कृषि विभाग ने किसानों को बुवाई प्रक्रिया शुरू करने से पहले बारिश की तीव्रता का पता लगाने के लिए साफ तौर पर चेतावनी देते हुए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। राज्य के कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने कहा, “फसल बोते समय यह सुनिश्चित करें कि कम से कम 100 मिमी बारिश हो। थोड़ी सी बारिश के बाद ही बुवाई शुरू न कर दें।”


मौसम विभाग ने भी किसानों से जल्दबाजी में फसल न बोने की सलाह दी है। साथ ही कहा है कि विभाग की तरफ से रोज मानसून संबंधी दी जा रही जानकारी पर नज़र रखें और उसी के अनुसार अपनी बुवाई की योजना बनाएं।

भगवान राउत और रमेश जगताप जैसे किसान जहाँ बारिश का इंतजार कर रहे हैं वहीँ पुणे के सासवड क्षेत्र के गणपत अबा थोपटे जैसे कुछ किसानों ने अपनी खरीफ फसलों की बुवाई शुरू कर दी है।

थोपटे ने हाथ जोड़कर आसमान की ओर देखा और फिर गाँव कनेक्शन से कहा, “हमने जोखिम उठाया है और खरीफ के लिए बुवाई शुरू कर दी है। हम अपने खेत को खाली नहीं छोड़ सकते हैं। इस हफ्ते हम बारिश की उम्मीद कर रहे हैं उम्मीद है हमें दोबारा बुवाई नहीं करनी पड़ेगी।"

बहुत कम खरीफ की बुवाई

महाराष्ट्र राज्य में खरीफ सीजन में कुल 14.202 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन पर खेती की जाती है। इसमें अगर गन्ने की बुवाई को जोड़ दिया जाए तो यह 15.297 मिलियन हेक्टेयर हो जाएगी। हालाँकि, मानसून के देरी से आने से नियोजित खेती को लागू करने में मुश्किलें आई हैं। सरकारी सूत्रों के अनुसार, अभी तक, सिर्फ 0.077 मिलियन हेक्टेयर में बुवाई की गई है।

कोंकण क्षेत्र में, खेती का क्षेत्र 0.414 मिलियन हेक्टेयर है। इस मौसम में अब तक सिर्फ 0.003 मिलियन हेक्टेयर (0.77 प्रतिशत) ही खेती हो पाई है। इसी तरह, नासिक संभाग में, कुल खेती क्षेत्र 2.065 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें से सिर्फ 0.062 मिलियन हेक्टेयर (2.99 प्रतिशत) बुवाई के अंतर्गत आया है।

पुणे संभाग में बुवाई अभी तक शुरू नहीं की गई है। कोल्हापुर संभाग का कृषि क्षेत्र 0.728 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें से सिर्फ 0.007 मिलियन हेक्टेयर (0.91 प्रतिशत) क्षेत्र में बुवाई की गई है। छत्रपति संभाजी नगर में इस साल खरीफ सीजन के लिए कुल 2.090 मिलियन हेक्टेयर खेती योग्य क्षेत्र में से 0.001 मिलियन हेक्टेयर (0.06 प्रतिशत) क्षेत्र में बुवाई हुई है।

जहाँ तक मराठवाड़ा के लातूर क्षेत्र का संबंध है, 2.767 मिलियन हेक्टेयर के कुल कृषि योग्य क्षेत्र में से सिर्फ 0.002 मिलियन हेक्टेयर (0.07 प्रतिशत) क्षेत्र बुवाई के अंतर्गत आया है। अमरावती संभाग का कुल कृषि योग्य क्षेत्र 3.259 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें से अब तक केवल 0.002 मिलियन हेक्टेयर (0.06 प्रतिशत) ज़मीन पर खरीफ की बुवाई हो पाई है। इसी तरह, नागपुर संभाग में, जहाँ खेती योग्य क्षेत्र 1.925 मिलियन हेक्टेयर है, सिर्फ 0.03 प्रतिशत ही बोया गया है।

ज़ाहिर है, ऐसे में महाराष्ट्र के किसानों के लिए आने वाला यह साल मुश्किल भरा हो सकता है।

KisaanConnection Maharastra 

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