मौसम की बेरुख़ी से ख़रबूज़े ने बदला 'रंग, लागत पाने को तरस रहे हैं किसान

जायद की फ़सल में ख़रबूज़े का ख़ास स्थान है, लेकिन उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर इसकी ख़ेती करने वाले किसान इस बार मायूस हैं। मौसम के साथ नहीं देने से मुनाफ़े तक की उम्मीद ख़त्म होती नज़र आ रही है।

Sumit YadavSumit Yadav   26 May 2023 1:00 PM GMT

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उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। उन्नाव के रामसिंह खेड़ा गाँव में मई महीने की तपती दोपहर में पारा 45 डिग्री के पार जा चुका था, बावज़ूद इसके लक्ष्मीकांत सैनी वहाँ से हटने की हिम्मत नहीं जुटा सके। उन्हें डर था, कहीं थोड़े बहुत बचे ख़रबूजों से भी वो हाथ न धो बैठें।

बिछियां विकास खण्ड के इस गाँव के लक्ष्मीकांत भूमिहीन किसान हैं, परिवार पालने के लिए उन्होंने चार बीघा ज़मीन बटाई ली है। सरसों काटने के बाद लक्ष्मीकांत ने दो बीघा ज़मीन पर ख़रबूजे की ख़ेती की है।

"आवारा जानवरों से खेत बचाने के लिए चौबीस घंटे रखवाली करनी पड़ती है, दो बीघा ख़रबूजा तैयार करने में करीब 35 हज़ार रूपये का ख़र्च आया है और अभी लग ही रहा है। लेकिन खेत से बच्चों को खाने के लिए एक फल नही मिला" 62 साल के लक्ष्मीकांत ने गाँव कनेक्शन को बताया।

लक्ष्मीकांत पिछले कई साल से ख़रबूजा की खेती कर रहे हैं, लेकिन खरबूज़े में इतना नुकसान कभी नहीं हुआ।


लक्ष्मीकांत आगे बताते हैं,"ऊपर नीचे हर साल होता है लेकिन कभी मुनाफ़ा मिल जाता था तो कभी लागत निकल आती थी। इस साल जैसा कभी नुकसान नहीं हुआ।"

"चार प्रतिशत ब्याज़ पर साहूकार से पच्चीस हज़ार रुपये उधार लिए थे, सोचा था फसल बेच कर चुका देंगे, लेकिन बारिश और पत्थर गिरने से पूरी फ़सल तबाह हो गई। एक फ़ल बेचने के लिए नहीं मिला। हमारे लिए तो ज़हर खाने की नौबत आ गई है, "आसमान की तरफ हाथ उठाकर डबडबाई आखों से लक्ष्मीकांत सैनी ने बताया।

पाँच बेटियों और तीन बेटों के पिता लक्ष्मीकांत पर दस लोगों की ज़िम्मेदारी है। बड़ी बेटी की दो साल पहले कानपुर में शादी कर दी थी। लक्ष्मीकांत सोच रहे थे कि इस बार ख़रबूजे से कुछ पैसा मिला तो छोटी बेटी की शादी भी कर देंगे। लेकिन ये सपना टूट गया।

खेत में सूखे पेड़ और सड़ रहे ख़रबूजे के फलों को दिखाते हुए उन्होंने बताया कि फ़सल तैयार करने में परिवार रात दिन मेहनत कर रहा है,एक हज़ार रुपये किलो बीज मिला था। दो बीघा में दो किलो बीज लगाया। खाद, निराई और दवा में हज़ारों रुपये खर्च हुए। किराए के ट्यूबवेल से पानी लेकर सिंचाई करते हैं, 250 रूपये एक घण्टे के लिए देना पड़ता है। एक बार पानी लगाने में आठ से नौ घण्टे लगते हैं।


"कई बार दवा डाल चुका हूँ,लेकिन फ़ूल बड़ा होने से पहले ही सूख जाता है।" लक्ष्मीकांत इशारा करते हुए बताते हैं कि ख़रबूजे के लिए पछुआ हवा और गर्मी चाहिए। लेकिन इस साल ज़्यादातर पुरवा या उतरहरी (उत्तर दिशा से चलने वाली) हवा चलती रही। बारिश और ओलो ने मौसम ठंडा कर दिया, जिससे फसल बर्बाद हो गई।

रामसिंह खेड़ा से दस किलोमीटर दूर हड़हा गाँव के तौफ़ीक़ अहमद ने आठ बीघा ज़मीन ठेके पर ली है, इसके बदले तौफ़ीक़ को आठ कुंतल गेंहूँ प्रति बीघा के हिसाब से सालाना देना होता है। तौफ़ीक़ पिछले कई सालों से ख़रबूजे की भी खेती करते आ रहे हैं। इस साल भी चार बीघा ख़रबूजा लगाया था, लेकिन बारिश के बाद ख़राब हो गई।

"चार बीघा ख़रबूजा तैयार करने में चालीस हज़ार रुपए खर्च हुए, दो हज़ार रुपये किलो का बीज़ बोया था, साथ में चार बोरी डीएपी डाली थी लेकिन बारिश और ओलों से फ़सल में काफी रोग लगने लगा। कई बार दवा डाली, फ़सल तो किसी तरह बच गई ,लेकिन फल नहीं लग रहे।" 38 साल के तौफ़ीक़ ने बताया।

तौफ़ीक़ की चार बीघा फ़सल में अभी तक 20 किलो ख़रबूजा निकला था। बाज़ार ले गए तो कोई खऱीददार नहीं मिला। मज़बूरी में वहीं फेंक कर आना पड़ा। वे बताते हैं कि खऱीददार नहीं मिलने से ज़्यादा फल सड़ गए।


"जब फ़ल निकल नहीं रहा था तो फ़सल रख कर क्या करते, इसलिए हार कर खेत जुतवा दिया है। एक बीघा जो बचा है उसमें देखो क्या होता है। लागत तो अब निकलेगी नहीं,लेकिन बच्चों को खाने के लिए दस पाँच किलो निकल आए यही बहुत है।" दुःखी मन से तौफ़ीक़ ने कहा।

हड़हा से सात किलोमीटर दूर लोहचा में ख़रबूजा की बड़ी मंडी लगती थी। हर साल इस समय कई छोटी बड़ी गाड़ियाँ दिल्ली सहित दूसरे शहरों के लिए जाती थीं, यहाँ लगने वाली मंडी में स्थानीय व्यापारी किसानों से ख़रबूजा खरीदते थे। लेकिन इस साल लोहचा की ख़रबूजा मंडी में सन्नाटा है।

सब्ज़ी और चाट, समोसा की दुकानों के बीच मे दो तीन स्थानीय कारोबारी पँद्रह, बीस किलो ख़रबूजा रख कर बेच रहे हैं। इन्ही में से एक सलमान खान (28 साल) ने बताया कि इस बार मंडी में ख़रबूजा नहीं आ रहा है। पहले की तरह ट्रैक्टर, लोडर से ख़रबूजा लाने वाला कोई किसान नहीं है। पिछले साल जहाँ 20 रुपये का तीन किलो या पाँच किलो तक बिकता था, इस बार वही ख़रबूजा 25 से 30 रुपये किलो बिक रहा है।

कृषि विज्ञान केंद्र धौरा उन्नाव के डॉ धीरज तिवारी बताते हैं कि ख़रबूजे के लिए मौसम गर्म होना चाहिए। जितना ज़्यादा लू चलेगी, ख़रबूजा उतना मीठा होगा और पैदावार ज़्यादा होगी। इससे उसमें रोग भी नहीं लगता है। लेकिन इस साल ख़रबूजे का पौधा जब तैयार हो रहा था तभी ज़ोरदार बारिश और ओले गिरने से फ़सल सड़ गयी। ऊपर के पानी निकास वाले खेतों में जो फ़सल बची हैं वह मौसम के उतार चढ़ाव के कारण रोगग्रस्त हैं।


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