यूपी के किसानों के लिए उपकार की कृषि सलाह: जून के महीने में खेती से लेकर पशुपालन के इन ज़रूरी कामों को निपटा लें

जून में सामान्य औसत बारिश से कम होने की संभावना को देखते हुए किसानों को कम पानी वाली फसलों/किस्मों का चयन करना चाहिए।

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यूपी के किसानों के लिए उपकार की कृषि सलाह: जून के महीने में खेती से लेकर पशुपालन के इन ज़रूरी कामों को निपटा लें

जून महीने में किसान खरीफ फसलों की तैयारी शुरू कर देते हैं। ज़ायद की फसलें तैयार हो चुकी हैं, ऐसे में उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद ने किसानों के लिए ज़रूरी सलाह जारी की है।

जिन किसानों ने अब तक हरी खाद की बुआई नहीं की है वह सनई/ढैंचा की बुआई करें।

शोधित बीज का ही प्रयोग करें। यदि बीज शोधित नहीं है तो संस्तुति अनुसार बीज शोधन के बाद बुआई करें।

अरहर का अधिक उत्पादन हासिल करने के लिए मेड़ों पर बुवाई करें।

नर्सरी में पानी का तापमान बढ़ने पर क्यारी से पानी निकालें। कोशिश करें कि सिंचाई शाम को ही करें।


खरीफ फसलों की बुवाई से पहले बीज शोधन जरूर करें। धान के बीज को ट्राइकोडर्मा हरजियेनम की 4 से 6 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से शोधित करके बोएँ।

वर्तमान में मौसम परिस्थितियों में पर्याप्त नमी होने पर या पलेवा के बाद धान की सीधी बुवाई करें। सीधी बुवाई की स्थिति में प्रेटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत, ई.सी. 1.25 लीटर बुवाई के दो से तीन के अंदर और बिसपाइरीबैक सोडियम 10 प्रतिशत, ई.सी. 0.20 लीटर बुवाई के 15 से 20 दिन बाद प्रति हेक्टेयर की दर से नमी की स्थिति में लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से छिड़काव करना चाहिए।

धान की नर्सरी में खरपतवार के नियंत्रण के लिए प्रेटिलाक्लोर 30.7 प्रतिशत ई.सी. 500 मि.ली. एकड़ की दर से 5 से 7 कि.ग्रा. बालू में मिलाकर पर्याप्त नमी की स्थिति में नर्सरी डालने के 2 से 3 के अंदर प्रयोग करें।

धान की खेती

धान की नर्सरी में खैरा रोग दिखाई देने पर जिंक सल्फेट 0.5 प्रतिशत की दर से पानी में घोलकर छिड़काव करें।

धान की मध्यम अवधि वाली प्रजातियाँ मालवीय धान-1, नरेन्द्र धान-2064, नरेन्द्र धान 3112-1, नरेन्द्र धान-2065, शियाट्स धान-1, शियाट्स धान-2, शियाट्स धान-4, आई.आर-64 सब-1 तथा एनडीआर-9930111 की नर्सरी डालें।

सुगंधित धान की किस्मों पूसा बासमती-1728, एच.यू.आर.-1309, मालवीय सुगंध 4-3, एच.यू.आर.-1304, पूसा-1637, नरेन्द्र सुगंध, मालवीय सुगंध और वल्लभ बासमती-22 आदि की नर्सरी डालें।

अधिक जल भराव वाले क्षेत्रों हेतु जहां एक मीटर से अधिक पानी लगा रहता है, धान की संस्तुत किस्मों जलनिधि और जलमग्न की सीधी बुआई करें। उन क्षेत्रों में जहां खेत में पानी 50 से 100 सेमी. तक कम से कम 30 दिन भरा रहता है रोपाई के लिए एन.डी.जी.आर.-201, एन.डी.जी.आर.-702, जल लहरी और जल प्रिया की नर्सरी 10 जून तक अवश्य डाल दें।

ऊसर धान की किस्मों सी.एस.आर.-36, सी.एस.आर.-43, नरेन्द्र ऊसर धान-2008, नरेन्द्र ऊसर धान-2009, सी.एस.आर.-60 तथा सी.एस.आर.-56 की नर्सरी डालें।

मक्का की खेती

खरीफ में देर से पकने वाले मक्के की संकर किस्मों एन.एम.एच.-713, वाई- 1402 के., बायो-9681, प्रो-316 (4640), एच.क्यू.पी.एम.-5, एच.क्यू.पी.एम.-8, सरताज, गंगा-11 तथा संकुल प्रजाति यथा प्रभात की बुआई करें।

अरहर की खेती

सिंचित क्षेत्रों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अरहर की अगेती संस्तुत प्रजाति पारस और पूरे उत्तर प्रदेश के लिए संस्तुत किस्मों यू.पी.ए.एस.-120, टा-21, पी.ए.-6 और पूसा-992 की बुआई 15 जून तक पूरा कर लें।

गन्ना की खेती

गन्ने में जरूरत के मुताबिक सिंचाई कर नमी बनाये रखें और खरपतवार नियंत्रण के लिए गुड़ाई करें।

चोटी बेधक के प्रभावी नियंत्रण के लिये 15 जून तक फ्यूराडान 1 किग्रा. (सक्रिय तत्व) या क्लोरेंटेन्लीप्रोल 375 एम.एल. प्रति हे. की दर से खेत में पर्याप्त नमी की अवस्था में प्रयोग करें।

पेड़ी गन्ने में मिलीबग और ब्लैकबग का प्रकोप होने पर इमिलाक्लोप्रिड 0.3 मि.ली./ली. पानी की दर से छिड़काव करें।

गन्ने में सूखा के प्रभाव से बचाव के लिए 2 प्रतिशत यूरिया व 2 प्रतिशत पोटाश का छिड़काव करें।

बागवानी

आम के परिपक्व फलों की तुड़ाई 8-10 मिमी. लम्बी डंठल के साथ करें, जिससे फलों पर चेप न लगने पाये। इससे स्टेम इण्ड रॉंट बीमारी नहीं लगती, पकने पर फल दाग रहित आकर्षक होते हैं और भण्डारण क्षमता 2-3 दिन बढ़ जाती है। तुड़ाई के समय फलों को चोट, खरोच न लगने दें और मिट्टी के सम्पर्क से बचायें।

फलों की तुड़ाई के लिए उपोष्ण बागवानी संस्थान की तरफ से विकसित तुड़ाई यंत्र सही है जिससे प्रति घण्टे 800-1000 फल तोड़े जा सकते है। यह यंत्र संस्थान में उचित मूल्य पर उपलब्ध है।

पशुपालन

वर्तमान मौसम में तापमान अधिक होने के कारण पशुओं में डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती हैं। इससे बचाव हेतु पशुओं को खनिज-लवण मिक्सचर खिलायें।

पशुओं को मुरझाया हुआ हरा चारा (विशेष रूप से ज्वार) ना खिलाएँ क्योंकि इसमें एच.सी.एन. तत्व (जहरीला तत्व) की अधिकता से पशु बीमार हो सकते हैं।

लम्पी स्किन रोग (एलएसडी) एक विषाणु जनित रोग है, जिसकी रोकथाम हेतु पशुपालन विभाग द्वारा टीकाकरण प्रोग्राम चलाया जा रहा है। सभी कृषक/पशुपालक अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय से सम्पर्क कर इसकी रोकथाम संबंधी उपाय और टीकाकरण की जानकारी ले सकते हैं।

मत्स्य पालन

तालाब निर्माण का ये सही समय है । जो किसान नये तालाब बनाना चाहते हों या अपने तालाब का सुधार काम करना चाहते हैं वे निर्माण कार्य पूरा करा लें और आगामी मौसम में मत्स्य पालन की तैयारी करें। इसके अनुदान के लिये मत्स्य विभाग से सम्पर्क करें।

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