मांगुर मछली पर क्यों लगी रोक?

Diti BajpaiDiti Bajpai   21 Feb 2019 8:07 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
मांगुर मछली पर क्यों लगी रोक?

लखनऊ। पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है विदेशी थाई मांगुर पालने वाले मछली पालकों पर अब कार्रवाई हो सकती है। एनजीटी (राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण) ने 22 जनवरी को इस संबंध में निर्देश भी जारी किए है, जिसमें यह कहा गया हैं कि मत्स्य विभाग के अधिकारी टीम बनाकर निरीक्षण करें और जहां भी इस मछली का पालन को हो रहा है उसको नष्ट कराया जाए।

निर्देश में यह भी कहा गया हैं कि मछलियों और मत्स्य बीज को नष्ट करने में खर्च होने वाली धनराशि उस व्यक्ति से ली जाए जो इस मछली को पाल रहा हो।

यह भी पढ़ें-सीमेंट के बने टैंकों में करें मछली पालन, सरकार भी दे रही अनुदान

''इस मछली को वर्ष 1998 में सबसे पहले केरल में बैन किया गया था। उसके बाद भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 देश भर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंधित लगा दिया गया था। यह मछली मांसाहारी है यह इंसानों का भी मांस खाकर बढ़ जाती है ऐसे में इसक सेवन सेहत के लिए भी घातक है इसी कारण इस पर रोक लगाई गई थी।'' ऐसा बताते हैं, उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग के सहायक निदेशक डॉ हरेंद्र प्रसाद।

आगे हरेंद्र बताते हैं, ''इसका पालन बाग्लादेश में ज्यादा किया जाता है। वहीं से इस मछली को पूरे देश में भेजा जाता है। कई बार में छापे भी मारते है पर कोई कानून न होने की वजह से काई सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती है। यह मछली जहां मिलती है वहां इसको मार कर गाड़ दिया जाता है।''


भारत सरकार द्वारा वर्ष 2000 में थाई मांगुर के पालन, विपणन,संर्वधन पर प्रतिबंध लगाया गया था लेकिन इसके बावजूद भी मछली मंडियों में इसकी खुले आम बिक्री हो रही थी।

थाई मांगुर का वैज्ञानिक नाम क्लेरियस गेरीपाइंस है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 30-40 रुपए किलो मिल जाती है। इस मछली में 80 फीसदी लेड एवं आयरन के तत्व पाए जाते है।

यह भी पढ़ें- मछलियों से कैंसर का खतरा, आयात पर रोक लगाने की तैयारी में बिहार सरकार !

थाईलैंड में विकसित की गई मांसाहारी मछली की विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह जीवित रहती है। थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है। इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है।


राष्ट्रीय मत्स्य आंनुवशिकी ब्यूरो के तकनीकी अधिकारी अखिलेश यादव बताते हैं,''इसका सेवन मुनष्यों के लिए सेहत के काफी खराब है इससे मनुष्यों में कई घातक बीमारियां हो सकती है। लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान भी चलाया जाता है लंकिन बाजारों में कोई रोक-टोक न लगने के कारण इसकी बिक्री आसानी से की जा रही है। अपनी बात को जारी रखते हुए यादव आगे बताते हैं,''लखनऊ के आस-पास के गाँव में लालच के चक्कर में इसका पालन किया जा रहा है लेकिन इस पर भी कोई ध्यान नहीं दे रहा है।''

यह भी पढ़ें- मछली पालन शुरू करने जा रहे हैं तो इस वीडियो को जरूर देखिए


     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.