कश्मीरियत चली गई, कश्मीर बचा सको तो बचाओ

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कश्मीरियत चली गई, कश्मीर बचा सको तो बचाओgaonconnection

श्रीनगर के एनआईटी में कई दिनों से छात्रों के दो खेमे बन गए हैं। कश्मीरी छात्रों ने भारत की क्रिकेट टीम की हार पर खुशी मनाई तो शेष भारत के छात्रों ने भारत माता की जय के नारों के साथ जुलूस निकाला। स्थानीय पुलिस ने उनकी पिटाई कर दी। यह वो कश्मीर तो नहीं है जहां से शंकराचार्य ने दुनिया को सन्देश दिया था, गुरु तेग बहादुर और स्वामी विवेकानन्द ने धर्म का प्रचार किया था, सूफी सम्प्रदाय जहां पनपा था, अमरनाथ यात्रियों का स्वागत होता था और जिसे दुनिया का स्वर्ग कहते थे।

मान लेता हूं कि छात्रों में जोश अधिक और धीरज कम होता है लेकिन कश्मीरी के बड़ों ने कश्मीरी पंड़ितों को मारपीट के कश्मीर से बाहर भगा दिया जो दर-दर भटक रहे हैं। इतना ही नहीं, अतंकवादियों के जनाज़़े में हजारों की संख्या में शामिल होते हैं, पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगते हैं, पाकिस्तान और बगदादी के इस्लामिक झंडे फहराए जाते हैं और कश्मीर में आतंकवादियों को पनाह मिलती हैं। आश्चर्य होता है कि जवाहर लाल नेहरू को इन लोगों पर इतना भरोसा था कि वह राष्ट्रसंघ में प्लेबिसाइट यानी जनमतसंग्रह का वादा करके चले आए। इस पर फिर कभी।

पिछली सरकारों ने कश्मीरियत को बचाने के लिए धारा-370 लगाकर भारत और कश्मीर के बीच में पुल बना दिया, जब कि कश्मीर के राजा हरिसिंह ने अपने स्वामित्व वाले कश्मीर का भारत में विलय कर दिया था तो पुल की क्या जरूरत थी। संसद ने पास तो कर दिया कि भारत के पास वाला और पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर भी भारत का अभिन्न अंग है। लेकिन प्रस्ताव पास कर देने से वह अभिन्न अंग नहीं बन जाएगा।

पिछले 67 साल में हमारे नेताओं ने सेना के जवानों से नहीं पूछा होगा कि उनकी राय क्या है। प्रजातंत्र में सेना की राय नहीं चलती लेकिन हमारी सेना ने हजारों सिपाही गंवाएं और सिर कटाए हैं। धारा 370 की और कितनी कीमत चुकाओगे, कश्मीरियत बचाने के लिए और कितने सेनानी शहीद होंगे। मानता हूं कि पाकिस्तान के साथ युद्ध छेड़ने का समय नहीं है लेकिन गलबहियां डालने का भी समय नहीं है। हमारे जवानों के जान की कीमत यह देश कभी नहीं चुका सकता। अटज जी ने एक बार कहा था ‘‘कितनी बहनों की कलाइयां सूनी हो गईं और कितनी माताओं की मांग उजड़ गई।” लेकिन अब तो यह दर्द थमना चाहिए ।

नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार में जब कहा था कि धारा 370 की समीक्षा होनी चाहिए तो कुछ आशा बंधी थी। उन्हें दूसरों की कुर्बानियां चाहे याद न हों लेकिन श्यामाप्रसाद  मुखर्जी की शहादत तो नहीं भूल सकते। अटल जी तो श्यामाप्रसाद मुखर्जी के सचिव रहे थे, लेकिन वह भी लाहैार में शेरो शायरी करते रहे। सरकार का समय बीता और मौका हाथ से चला गया। मोदी भी कश्मीर का दर्द जानते हैं लेकिन समय बीत रहा है कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहे हैं। अमेरिका कब चाहेगा मसला हल हो जाय, लेकिन जनता की उम्मीद पर पानी फिर रहा है।  

कश्मीर समस्या का हल ढूंढने के लिए अटल जी की सरकार के दिनों में इज़राइल से एक रक्षा विशेषज्ञों की टीम आई थी। उस टीम का निश्चित मत था कि जब तक कश्मीर का आबादी सन्तुलन नहीं बदलेगा समस्या का हल सम्भव नहीं। उसके लिए विरोधी दल जो नरेन्द्र मोदी की ढुलमुल कश्मीर नीति की आलोचना करते हैं उन्हें एकजुट होकर धारा 370 समाप्त करानी चाहिए। कश्मीरी पंडितों, पाकिस्तान ये आए हिन्दुओं और रिटायर्ड सेना के जवानों को कश्मीर में बसाना चाहिए।

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