विभाजन के बाद टूट गई थी भांगड़ा की परंपरा

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विभाजन के बाद टूट गई थी भांगड़ा की परंपराफसल काटने के समय होता है ये नृत्य।

लखनऊ। भांगड़ा एक जीवंत लोक संगीत व लोक नृत्य है जो पंजाब से शुरू हुआ है। सन 1880 के दशक के दौरान पंजाब के उत्तरी क्षेत्र में एक सामुदायिक नृत्य होता था जिसे भांगड़ा नृत्य कहा जाता है। भांगड़ा एक मौसम आधारित नृत्य था जो अप्रैल के महीने मे शुरू होता था और बैसाखी तक चलता था।

बैसाखी के समय फ़सल कटाई का अनुष्ठान करते समय लोग परंपरागत रूप से भांगड़ा करते हैं। भांगड़ा के दौरान लोग पंजाबी गीत गाते हैं तथा लुंगी व पगड़ी बांधे लोगों के घेरे में एक व्यक्ति ढोल बजाता है, जबकि भांगड़ा की शुरुआत फ़सल कटाई के उत्सव के रूप में हुई, परन्तु आगे चलकर यह विवाह तथा नववर्ष समारोहों का भी अंग बन गया। पिछले 30 वर्षों के दौरान भांगड़ा के लोकप्रियता में विश्व भर में वृद्धि हुई है।

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पंजाब में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य गिद्दा कहलाता है। यह एक खुशनुमा नृत्य है, जिसमें एक गोले में बोलियाँ गाई जाती हैं तथा तालियाँ बजाई जाती हैं। दो प्रतिभागी घेरे से निकलकर समर्पण भाव से सस्वर बोली सुनाती हैं व अभिनय करती हैं जब कि शेष समूह में गाती हैं। यह पुनरावृत्ति 3-4 बार होती है। प्रत्येक बार दूसरी टोली होती है, जो एक नई बोली से शुरुआत करती है। इसके अलावा नृत्य व कला के और भी बहुत प्रकार हैं जैसे कि झूमर, लुड्डी, जुली, डानकारा, धमाल, सामी, किकली, और गटका।

1947 में पंजाब क्षेत्र के विभाजन के बाद बैसाखी मेलों की परंपरा टूट गर्इ और जिन क्षेत्रों में सामुदायिक नृत्य भांगड़ा होता था उनमें से ज्यादातर पाकिस्तान में चले गए। परंतु भारत के पंजाब प्रांत के पंजाबियों ने इस नृत्य को जीवित रखा। अब भांगड़ा केवल बैसाखी के मेले तक सीमित नहीं रहा । इसे पूरे साल किसी भी खुशी के अवसर पर देखा जा सकता है। आजकल पुरूषों के साथ स्त्रियां भी यह नृत्य करती हैं। पंजाबियों के खुशी की अभिव्यकित का एक रूप है भांगड़ा नृत्य।

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