गायिकी से लेकर अभिनय तक छाया रहा केएल सहगल का जादू 

Divendra SinghDivendra Singh   11 April 2018 11:09 AM GMT

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गायिकी से लेकर अभिनय तक छाया रहा केएल सहगल का जादू फिल्म देवदास के एक दृश्य में कुंदन लाल सहगल।

एक समय था जब हर रविवार सुबह रंगोली मेंं ‘एक बंगला बना न्यारा’ या फिर ‘जब दिल ही टूट गया’ जैसे गीत न बजते रहें हों, अपनी गायिकी व अभिनय से लोगों को दीवाना बना देने वाले कुंदल लाल सहगल का आज जन्मदिन है।

केएल सहगल का जन्म 11 अप्रैल, 1904 को जम्मू में हुआ था, हिन्दी फ़िल्मों में वैसे तो गायक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन देवदास (1936) जैसी कुछ फिल्मों में अभिनय करके उन्होंने दर्शकों को अपने अभिनय का भी दीवाना बना रखा है।

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साल 1930 हिन्दी फिल्मों का वो दौर था जब बोलती फिल्में आने लगीं थीं, कुन्दन लाल सहगल हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। 1930 और 40 के दशक की संगीतमयी फ़िल्मों की ओर दर्शक उनके अभिनय और दिलकश गायकी के कारण खिंचे चले आते थे। पाकिस्तानी शायर अफ़ज़ाल अहमद सैयद ने उनके बारे में लिखा था, “जैसे काग़ज़ मराकशियों ने ईजाद किया था, हुरूफ़ फिनिशियों ने, सुर गंधर्वों ने, उसी तरह सिनेमा का संगीत सहगल ने ईजाद किया।

कुंदल लाल सहगल।

दुनिया में कई रहस्य हैं चुनौती देते। चुनौती सहगल भी दे गए हैं। फ़क़ीरों-सा बैराग, साधुओं-सी उदारता, मौनियों-सी आवाज़, हज़ार भाषाओं का इल्म रखने वाली आंखें, रात के पिछले पहर गूंजने वाली सिसकी जैसी ख़ामोशी, और पुराने वक़्तों के रिकॉर्ड की तरह पूरे माहौल में हाहाकार मचाती एक सरसराहट... बता दो एक बार, ये सब क्या है? वह कौन-सी गंगोत्री है, जहां से निकल कर आती है सहगल की आवाज़?”

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कभी की थी सेल्समैन की नौकरी

सहगल ने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन सबसे पहले उन्होंने संगीत के गुर एक सूफ़ी संत सलमान युसूफ से सीखे थे। सहगल की प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी और जीवनयापन के लिए उन्होंने रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।

कहते हैं कि वे एक बार उस्ताद फैयाज ख़ां के पास तालीम हासिल करने की गरज से गए, तो उस्ताद ने उनसे कुछ गाने के लिए कहा। उन्होंने राग दरबारी में खयाल गाया, जिसे सुनकर उस्ताद ने गद्‌गद्‌ भाव से कहा कि बेटे मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसे सीखकर तुम और बड़े गायक बन सको। इसके बाद 1940 में वे मुंबई गए और अपने बॉलीवुड करियर की शुरूआत की। यहां उन्हें कई बार रिजेक्शन का भी सामना करना पड़ा। पर बाद में लोग उन्हें संगीत का बादशाह मानने लगे और वो अपने फन के दम पर बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार बने।

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रेडियो सीलोन पर हर सुबह बजता था सहगल का गीत

सहगल की आवाज़ की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था। सहगल की आवाज़ लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन गई थी।

देवदास से मिली कामयाबी

केएल सहगल ने वैसे तो अपने कैरियर की शुरुआत बतौर अभिनेता साल 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ से हुई थी, उसके बाद सुबह का सितारा, जिंदा लाश जैसी फिल्में भी की, लेकिन असर नहीं दिखा पायी।उन्हें असली कामयाबी मिली देवदास से। वर्ष 1935 में शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक-अभिनेता सहगल शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे।

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