जन्मदिन विशेष: जब महज़ 13 साल की उम्र में बिना माइक के, जलसे में मोहम्मद रफ़ी ने गाया था गाना
Mohit Asthana 24 Dec 2018 5:54 AM GMT

''तुमने मुझे देखा होकर मेहरबां, रूक गई ये ज़मी रूक गया आसमां, जाने-मन जाने जां'' ये बोल सिर्फ इन्हीं की आवाज के लिये ही मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे थे। प्यार को अपनी सुरीली आवाज से जताने का अंदाज इनसे बेहतर शायद ही किसी के पास था। वो आवाज थी मरहूंम मोहम्मद रफ़ी की। जिस तरह उस दौर में हिरोइन की आवाज लता मंगेशकर थी उसी तरह हीरो की आवाज मोहम्मद रफ़ी हुआ करते थे। रफ़ी साहब 1924 में 24 दिसंबर को पंजाब के एक छोटे से गाँव कोटला सुल्तान सिंह में पैदा हुए थे।
एक किस्सा मशहूर है इस गाँव में रोज एक फ़कीर गुजरता था कहीं से गाता हुआ आता था और कहीं चला जाता था। गाँव में एक लड़का भी था वो रोज इस फ़कीर के पीछे-पीछे जाता था। जब वो फ़कीर गाँव से बाहर चला जाता था तब वो लड़का वापस अपने पिता की दुकान पर आता था और उसी धुन में गाना गुनगुनाने लगता था। रफ़ी साहब के हुनर का पता सबसे पहले कोटला सुल्तान सिंह के लोगों को पता चल गया। तकरीबन 11 साल की उम्र में ये परिवार सहित लाहौर रहने चले आए।
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जब पहली बार जलसे में गाया गाना
13 साल की उम्र में एक वाकया हुआ रफ़ी अपने बड़ भाई के दोस्त के साथ एक जलसे में गए जहां अपने दौर के मशहूर गायक केएल सहगल अपनी प्रस्तुति देने आने वाले थे। उनको सुनने वालों का तांता लगा हुआ था। बस यहीं से किस्मत ने अपना रंग दिखाना शुरू किया। हुआ ये कि उस जलसे में बिजली चली गई। ऐसे में केएल सहगल जहां ठहरे हुए थे उनको ये कहकर वहीं रोक दिया गया कि जलसे में बिजली चली गई है आने पर ही कार्यक्रम शुरू हो पाएगा। उधर जलसे में आए हुए लोग केएल सहगल को सुनने को बेचैन।
अब जिन्होंने जलसे का इंतजाम किया था वो इस बात से परेशान की इस भीड़ को कैसे मैनेज किया जाए। इस पर हमीद साहब(रफ़ी साहब के बड़े भाई के दोस्त) ने राय दी कि मेरे साथ ये बच्चा है 13 साल का। ये बहुत अच्छा गाता है जब तक केएल सहगल नहीं आते हैं तब तक ये सुनाएगा और जब वो आ जाएंगे तब बच्चा वहां से हट जाएगा। आयोजकों को राय समझ में आई और रफ़ी साहब को स्टेज पर बुलाया गया। अब बिना माइक के मोहम्मद रफ़ी एक के बाद एक गाने गाते रहे।
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इत्तिफ़ाक से बिजली आ गई। बिजली आने के बाद केएल सहगल स्टेज पर आ गए और रफ़ी को वापस स्टेज से नीचे उतार दिया गया। सहगल को जो ऑडियंस सुनने आई थी उनमें से एक थे श्याम सुंदर जो अपने समय के नामी संगीतकार थे उन्होंने भी रफ़ी की आवाज सुनी और जलसे के बाद उन्होंने अपने पास बुलाया और रफ़ी साहब के बारे में पूरी जानकारी ली।
इस तरह से श्याम सुंदर से जुड़ने के बाद म्यूजिक सीखने के साथ-साथ ऑल इंडिया रेडियो के लिये भी गाने लगे। रफ़ी साहब लगभग 20 वर्ष के थे उस समय श्याम सुंदर ने ही पहला ब्रेक दिया था। लेकिन ये फिल्म पंजाबी थी। साल 1944 में पहली हिंदी फिल्म के लिये गाया था फिल्म थी 'गाँव की गोरी' उसके बाद रफ़ी साहब ने ऐसे गाने गाए जिनके लिये लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।
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