#WorldMusicDay झांसा मिला हीरो बनने का और बन गए संगीत निर्देशक  

Shivendra Kumar SinghShivendra Kumar Singh   25 Jun 2017 5:20 PM GMT

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#WorldMusicDay झांसा मिला हीरो बनने का और बन गए संगीत निर्देशक  इस्माइल दरबार को उनके पिता मुंबई एक्टर बनाने की बात कहकर ले गए थे

1970 के आस-पास की बात है। सूरत में एक छोटा सा बच्चा दुनिया के बाकि बच्चों की तरह ही अपना बचपन जी रहा था। क्रिकेट खेलना, पतंगबाजी करना और बाकि वक्त में गिल्ली डंडा खेलना यही उस बच्चे का शौक था। यही उसकी दुनिया थी। पढ़ाई-लिखाई में उसका मन दूर-दूर तक नहीं लगता था। बड़ी मुश्किल से पांचवी की परीक्षा पास करके बच्चे को छठी में एडमिशन मिला था। उस बच्चे के पिता मुंबई में रहते थे।

मां को दिख रहा था कि उसके बच्चे के लिए आने वाले कल की चुनौतियां बढ़ रही हैं। उन्हें ये भी समझ आ गया था कि लाख जोर जबर्दस्ती करने के बाद भी वो पढ़ाई में शायद ही कुछ अच्छा कर पाएगा। आखिर में एक दिन मां ने कलेजे पर पत्थर रखकर बच्चे को खुद से दूर करने का फैसला किया। मां ने बच्चे के पिता से कहा कि अगर वो चाहते हैं कि उनका बच्चा आने वाले कल में कुछ करे तो उसे अपने साथ ले जाएं। पिता की भी मुंबई में हालत अच्छी नहीं थी। वो खुद भी एक तरह का संघर्ष ही कर रहे थे। उनके पास खुद रहने के लिए कोई ‘परमानेंट’ जगह नहीं थी, बावजूद इसके उन्हें अपनी पत्नी की बात समझ आ गई। परेशानी ये भी कि 12-13 साल के बच्चे को उसकी मां से अलग कैसे किया जाए। इसके लिए पिता ने एक प्लान बनाया। बच्चे को ये बताया गया कि वो उसे अपने साथ मुंबई हीरो बनाने के लिए ले जा रहे हैं।

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मां से अलग होने का फैसला बच्चे के लिए भी आसान नहीं था लेकिन हीरो बनने का सपना आंखों में पल रहा था। बचपन में जब भी उसने इधर-उधर अमिताभ बच्चन या धर्मेंद्र साहब को देखा था उसकी आंखों में उन जैसा बनने का सपना पल रहा था। बच्चे ने मुंबई जाने के लिए हामी भर दी। एक रोज उसके पिता करीब 300 किलोमीटर का सफर तय करके उसे मुंबई लाए। उस वक्त तक बच्चे की उम्र यही कोई बारह-तेरह साल रही होगी। तब तक उसने सातवीं कक्षा पास भी नहीं की थी। खैर पिता ने बच्चे को मुंबई लाने के बाद बड़ा फैसला किया। वो उसे लेकर पंडित राम प्रसाद शर्मा के पास गए। पंडित राम प्रसाद शर्मा संगीत के अच्छे जानकार थे। उनके बेटे और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी के प्यारेलाल को पूरी दुनिया जानती है।

फिल्म हम दिल दे चुके सनम में पहली बार दिया था म्यूजिक

बच्चे को पंडित रामप्रसाद शर्मा के पास ये कहकर ले जाया गया कि अगर उसे हीरो बनना है तो पहले संगीत सीखना पड़ेगा। 13 साल के बच्चे ने पंडित राम प्रसाद शर्मा और उनके बेटे प्यारेलाल जी के भाई गणेश शर्मा से वायलिन सीखना शुरू कर दिया। वहां संगीत सीखने आने वालों में जाने माने अभिनेता मनोज कुमार का बेटा और रीना रॉय की बहन भी आती थीं। इन नामचीन लोगों को देखकर उस बच्चे को लगाकि अब चाहे जो हो उसके अभिनेता बनने का रास्ता साफ है। उसने संगीत सीखने को एक्टिंग की पहली सीढ़ी मानते हुए गंभीरता से वायलिन सीखना शुरू कर दिया। ये सिलसिला करीब 12 साल तक चला। बीच-बीच में जब इस बच्चे ने पिता से पूछा कि ‘एक्टिंग’ का क्या हुआ उसे दिलासा दिया गया कि बस इसके बाद ‘एक्टिंग’ की ही बारी है।

संजय लीला भंसाली अपनी पहली फिल्म डायरेक्ट कर रहे थे। ये फिल्म उन्होंने और जाने-माने अभिनेता इरफान की पत्नी सुत्पा सिकदर ने मिलकर लिखी थी। उस फिल्म का संगीत तैयार कराने के लिए जब-जब संजय स्टूडियो में आते थे उन्हें लगता था कि ऑरकेस्ट्रा में बैठा एक कलाकार उन्हें घूर रहा है। संजय को घूरने वाले ये कलाकार इस्माइल दरबार ही थे।

आखिर में करीब 25 साल की उम्र में उस बच्चे को समझ आ गया कि उसे झांसा दिया गया है उसकी मौजूदा ट्रेनिंग का ‘एक्टिंग’ से कोई लेना देना नहीं हैं। तब तक वो बच्चा बड़ा हो चुका था और उसका मन संगीत में रम चुका था। एक कैथोलिक टीचर से वायलिन की बारिकियां सीखने के बाद उसने कुछ कार्यक्रमों में परफॉरमेंस का मज़ा भी चख लिया था। क्या आप अंदाजा लगा पाए कि ये किस बच्चे की कहानी है, अगर नहीं तो हम बताते हैं कि ये कहानी है जाने-माने म्यूजिक डायरेक्टर इस्माइल दरबार की।

इन बारह वर्षों का सफर इस्माइल दरबार के लिए बहुत मुश्किल था, जो स्वाभाविक भी है। इन बारह वर्षों में इस्माइल कम से कम 12 बार मुंबई से भागकर सूरत आ गए। इस्माइल को मां के हाथ की कढ़ी और खिचड़ी बहुत पसंद थी। मां अपने बच्चे की मुसीबत समझती थी उसने कढ़ी, खिचड़ी बनाना ही बंद कर दिया। बेटे का आने वाला कल चमकाने के लिए हर तरह का दुख परिवार ने देखा।

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इस्माइल के पिता हुसैन साहब बहुत शानदार सेक्साफोन बजाते थे। रफी साहब की आवाज में बहुत लोकप्रिय हुए गीत ‘ये दुनिया उसी की जमाना उसी का’ में उन्होंने ही सेक्साफोन बजाया था। ये अलग बात है कि इसका क्रेडिट उन्हें कभी नहीं मिला। लोग उनके बारे में कम ही जानते थे। बेटे इस्माइल दरबार को इस बात से गुस्सा आया। उसने तय कर लिया कि वो किसी जाने-माने संगीतकार की ऑरकेस्ट्रा में सिर्फ एक म्यूजिशियन बनकर नहीं रहेगा।

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आग में घी डालने का काम लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने ही कर दिया। एक रोज रिकॉर्डिंग के दौरान उन्होंने इस्माइल को टोककर ये कह दिया कि उन्हें अभी और प्रैक्टिस की जरूरत है। इस्माइल को अपनी संगीत-साधना पर खड़े किए गए सवाल से ज्यादा बुरा ये लगा कि उनसे कमतर कलाकार उस रिकॉर्डिंग में बजा रहे थे। गुस्से में इस्माइल दरबार महबूब स्टूडियो से बाहर आ गए। कसम खा ली कि अब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की बराबरी का काम करके दिखाएंगे। बराबरी का काम यानी फिल्मों में संगीत देना।

उन्हीं दिनों एक और दिलचस्प वाकया हुआ। संजय लीला भंसाली अपनी पहली फिल्म डायरेक्ट कर रहे थे। ये फिल्म उन्होंने और जाने-माने अभिनेता इरफान की पत्नी सुत्पा सिकदर ने मिलकर लिखी थी। उस फिल्म का संगीत तैयार कराने के लिए जब-जब संजय स्टूडियो में आते थे उन्हें लगता था कि ऑरकेस्ट्रा में बैठा एक कलाकार उन्हें घूर रहा है। संजय को घूरने वाले ये कलाकार इस्माइल दरबार ही थे। संजय को घूरने के पीछे की वजह ये थी कि इस्माइल को लगता था कि ये डायरेक्टर संगीत को बड़ी अहमियत देता है। एक रोज इस्माइल ने अपने एक साथी से कहा भी था कि, यार ऐसे डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका कब नसीब होगा।

‘खामोशी’ का संगीत जतिन-ललित ने तैयार किया था। संजय लीला भंसाली तब तक इस्माइल दरबार को जानते तक नहीं थे। एक रोज इस्माइल दरबार संजय लीला भंसाली के बगल से निकले। संजय को ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ। इस्माइल दरबार कहते हैं कि ये किस्सा उन्हें संजय लीला भंसाली ने ही सुनाया था। यहीं से संजय और इस्माइल के बीच एक अनकहा रिश्ता शुरू हुआ। बाद में जब फिल्म खामोशी के बैकग्राउंड म्यूजिक का वक्त आया तब भी इस्माइल दरबार रिकॉर्डिंग के लिए जाते थे। इसके करीब तीन साल बाद संजय लीला भंसाली ‘हम दिल दे चुके सनम’ डायरेक्ट कर रहे थे। संजय कुछ नया करना चाहते थे। कहीं से घूमते-फिरते उनके पास इस्माइल दरबार का रिफरेंस पहुंचा।

संजय लीला भंसाली ने इस्माइल दरबार को फोन किया। इस्माइल के मन में इस बात का डर था कि अगर उन्होंने ये बता दिया कि उन्होंने ‘खामोशी’ में ऑरकेस्ट्रा में बजाया है तो संजय उन्हें खारिज कर देंगे। इस्माइल दरबार को लग रहा था कि एक ‘म्यूजिशियन’ को म्यूजिक डायरेक्टर बनाने का ‘रिस्क’ संजय लीला भंसाली शायद ही लेंगे। इस्माइल दरबार, संजय लीला भंसाली के घर उनसे मिलने गए। इस्माइल ने भंसाली को कुछ गाने सुनाए। उसके बाद संजय लीला भंसाली ने इस्माइल दरबार से पूछा कुछ नया सुनाने के लिए है क्या, इस्माइल की आदत थी कि वो किसी भी ‘सिचुएशन’ पर एक-दो गाने से ज्यादा नहीं सुनाते थे। उन्होंने संजय लीला भंसाली को ‘हम दिल दे चुके सनम’ का ‘टाइटिल ट्रैक’ सुनाया। संजय ने एक बार उस गाने को सुना, फिर दूसरी बार सुना, फिर तीसरी बार सुना।

इसके बाद की कहानी इतिहास बन गई। आज की किस्सागोई खत्म करने से पहले ये भी बता दें कि इस्माइल दरबार को हारमोनियम बजाना नहीं आता था। एक मीटिंग में उन्हें ये कहकर नीचा दिखाने की कोशिश की गई थी कि तुम्हें तो हारमोनियम बजाना तक नहीं आता तुम फिल्म का संगीत कैसे तैयार करोगे। इसी गुस्से में इस्माइल दरबार ने फिल्म हम दिल दे चुके सनम के गानों की धुन हारमोनियम पर तैयार की थी।

फिल्म और संगीत की दुनिया को अलग से समझने के पढ़िए महफिल

        

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