मन्दिर प्रवेश की लड़ाई को कानूनी दायरे में रखें
डॉ. शिव बालक मिश्र 16 April 2016 5:30 AM GMT

देश की कुछ हिन्दू महिलाएं अचानक मन्दिर प्रवेश को लेकर सक्रिय हो गई हैं और माननीय उच्चतम न्यायालय ने उनके पक्ष में आदेश भी पारित कर दिया है। फिर भी वे कभी एक मन्दिर में तो कभी दूसरे में जबरिया प्रवेश करती हैं। कानून व्यवस्था के लिए समस्या खड़ी करती हैं। यदि पुजारी लोग अदालत का आदेश नहीं मानते तो उन पर अवमानना का मुकदमा दायर कर सकती हैं। उनसे यह सिफारिश होगी कि इस तरह कानून को अपने हाथ में न लें।
सोचने का विषय है कि एक तरफ शाहबानो जैसी उनकी ही बहनें अपने अस्तित्व की लड़ाई अदालत से जीतकर भी हार रही हैं और अनेक मसलों पर तो अदालतें भी राहत नहीं दे सकतीं। तमाम मुद्दे हैं जो सम्पूर्ण महिला समाज को उद्वेलित कर रहे हैं। इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए कि महिलाओं के जीवन-मरण की समस्याओं को नजरअंदाज करके शनिदर्शन को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दें और फिर घायल होकर अस्पताल में भर्ती होना पड़े।
हमारी संसद एक बहुत बड़ा मन्दिर है जिसकी चौखट पर नरेन्द्र मोदी ने मत्था टेका था और जिसको नमन करके प्रवेश करते हैं। उस मन्दिर में अपनी संख्या के अनुपात में प्रवेश करना सभी महिलाओं का अधिकार है। इसमें केवल हिन्दू महिलाएं ही नहीं सभी धर्मों और जातियों की महिलाएं अपनी संख्या के अनुपात में प्रवेश कर सकें यह संघर्ष का विषय होना चाहिए। देश की दौलत में अपनी संख्या के अनुपात में उन्हें हिस्सा मिले, क्या इस बात पर संघर्ष नहीं करना चाहिए।
महिलाओं पर अत्याचार और उनका यौन उत्पीड़न होता रहता है लेकिन पुलिस और सेना में उनको आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व नहीं है। महिलाओं से गुजारिश करनी चाहिए कि संसद में पहुंचने के बाद आवश्यकतानुसार संविधान बदल लें और चाहें तो मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या पगोडा में प्रवेश का अधिकार मौलिक बना लें। अपनी किसी भी लड़ाई में मुस्लिम महिलाओं को न भूलें क्योंकि ज्यादातर समस्याएं एक जैसी हैं और मन्दिर प्रवेश कोई जीवन-मरण का प्रश्न नहीं है। दुनिया के इस्लामिक देश ‘‘तलाक, तलाक, तलाक” को मान्यता नहीं देते, यहां तक कि पाकिस्तान भी नहीं तो भारतीय महिलाओं को इस विषय पर एकजुट नहीं होना चाहिए?
धर्मस्थानों की व्यवस्था के लिए समितियां, संगठन या बोर्ड बने हैं। उन्होंने कुछ अनुशासन के नियम बनाए हैं। उन नियमों का पालन तो होना ही चाहिए। वैसे जहां-जहां सरकार ने मन्दिरों को अपने नियंत्रण में ले रखा है वहां इस प्रकार का कोई विवाद नहीं है। तो फिर क्या ये ठीक होगा कि सभी मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाय। सेक्युलर देश में जो भी व्यवस्था बने वह सभी धर्मस्थानों पर लागू हो। टुकड़ों में समस्याओं का हल न खोजा जाए।
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