दिहाड़ी मज़दूर की पत्नी का कमाल, 200 महिलाओं को दिया रोज़गार
राजस्थान के छोटे से गाँव की 9वीं पास ब्रजेश भार्गव 250 से अधिक जूट का उत्पाद बनाती हैं। कभी दो वक़्त की रोटी के लिए सँघर्ष करने वाला उनका परिवार आज 200 महिलाओं को रोज़गार दे रहा है।
Rajesh Khandelwal 23 May 2023 8:55 AM GMT

ब्रजेश ने केवल नौवीं कक्षा तक पढ़ाई की है और अपना छोटा व्यवसाय शुरू किया है, जूट से 250 अलग तरह के घरेलू सामान बनाती हैं।
भरतपुर, राजस्थान। एक समय तक दिहाड़ी मजदूरी करने वाले सत्यप्रकाश भार्गव को आज अपनी पत्नी पर नाज़ है। वो कहते हैं, "जब तक मेरी पत्नी ने अपना व्यवसाय नहीं शुरू किया था, तब तक हमारे पास अपना कोई घर तक नहीं था, बड़ी मुश्किल से घर चल पाता था। दोनों बेटों की पढ़ाई किसी सपने से कम नहीं था।"
“चहूँओर पत्नी के काम की तारीफ सुनने को मिलती है तो बहुत अच्छा लगता है, उसकी मेहनत और काम से मेरी भी किस्मत बदल गई है। अब मैं भी उसके काम में हाथ बँटाता हूँ।" राजस्थान के भरतपुर ज़िले के खानवा गाँव के सत्यप्रकाश गाँव कनेक्शन को बताते हैं।
ब्रजेश भार्गव मुस्कुराई क्योंकि उनके पति ने उनकी तारीफ की। वह न केवल एक साल में 12 लाख रुपये तक मुनाफ़ा कमाती हैं, बल्कि करीब 200 अन्य ग्रामीण महिलाओं को रोज़गार भी दे रही हैं।
ब्रजेश ने केवल नौवीं कक्षा तक पढ़ाई की है और अपना छोटा व्यवसाय शुरू किया है, जूट से 250 अलग तरह के घरेलू सामान बनाती हैं। जैसे बैग, मैट, टेबलमैट, हैंडपर्स (पुरुषों और महिलाओं के लिए), और प्लांटर्स। उन्हें दिल्ली, जयपुर और आगरा जैसे शहरों से थोक ऑर्डर मिलते हैं। हाल ही में महिलाओं के कपड़ों की सिलाई भी शुरू की है।
Also Read: स्वयं सहायता समूह: महिलाओं की एकजुटता से मिली आत्मनिर्भरता, लेकिन अभी और जागरूक होना होगा
ब्रजेश गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी खुद कमा भी पाऊंगी। एक समय था जब सुबह का खाना बनाने के बाद नहीं मालूम रहता था कि हमारे पास रात में खाना होगा या नहीं। लेकिन, अब और नहीं। " उन्होंने कहा।
स्वयं सहायता
कई साल की कड़ी मेहनत के बाद, ब्रजेश और उनके परिवार के लिए चीजें तब शुरू हुईं जब 2016 में राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (आरजीएवीपी) के सदस्य स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) बनाने के लिए खानवा गाँव आए।
गैर-लाभकारी संस्था ने महिलाओं को आजीविका के बारे में बताया और समझाया कि कैसे वे घर से काम करके कुछ पैसे कमा सकती हैं। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को बैग बनाने और सिलाई का प्रशिक्षण भी दिया। एनजीओ राजस्थान में ग्रामीण गरीबों के आर्थिक अवसरों और सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के क्षेत्रों में छोटे और सूक्ष्म उद्यमों को बढ़ावा देता है।
ब्रजेश ने बताया, "लगभग चार या पाँच लोगों ने बैग, मैट, टेबल मैट, हैंड पर्स और प्लांटर्स बनाना शुरू किया था, लेकिन जल्द ही कारोबार बढ़ गया और अब खानवा के अलावा आसपास के दूसरे गाँवों से भी लगभग 200 औरतें एसएचजी में हैं।"
ब्रजेश इन महिलाओं को ट्रेनिंग देती हैं और उन्हें पर्याप्त काम देती हैं, जिससे उन्हें हर रोज़ करीब 600 रुपये कमाने में मदद मिलती है।
राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद के अलावा, उद्योग विभाग ने भी राज्य में कई प्रदर्शनियों में हाथ से बने उत्पादों को ले जाकर मदद की। महिलाओं ने वहाँ अपने उत्पाद बेचे और तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा।
“पिछले आठ साल में ऑर्डर के साथ ही हमारी कमाई भी बढ़ी है। प्रदर्शनियों और मेले में एक साल में लगभग 25-30 लाख कमाई हो जाती है। कच्चे माल की लागत और वेतन काटने के बाद मेरे हाथ में आठ से 12 लाख हैं।” ब्रजेश ने कहा। उनके मुताबिक़, नवंबर से मार्च में उनके उत्पादों की अच्छी खासी माँग रहती है।
उनके पति सत्यप्रकाश अलग-अलग जगहों से कच्चा माल लाते हैं। जूट पश्चिम बंगाल में कोलकाता से आता है जबकि कपड़ा गुजरात में सूरत से आता है।
उन्होंने कहा कि हर कदम पर ध्यान रखना होता है, कच्चे माल से लेकर आख़िर में बने उत्पादों पर ध्यान रखना होता है। “हम आपस में काम बाँट लेते हैं। और अंत में हम उत्पादों को सावधानी से पैक करने से पहले फिनिशिंग की बारीकी से जाँच करते हैं।" दो बच्चों की माँ ब्रजेश बताती हैं।
दिखने लगा है असर
ब्रजेश की साथी गाँव की सुशीला शुरू से ही उनके साथ काम कर रही हैं । “मैं घर से बँधी हुई थी और सिर्फ घर का काम करती थी, और कुछ नहीं। लेकिन ब्रजेश के साथ काम करके अब मैं परिवार की आय में योगदान देती हूँ, जो एक बड़ी मदद है। " सुशीला ने गाँव कनेक्शन को बताया।
खानवा की एक अन्य निवासी कुसुमा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पैसे के अलावा, ब्रजेश के साथ काम करने से मुझे आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और मेरे रिश्तेदार मुझे अधिक सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।"
राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद के ज़िला परियोजना प्रबंधक किशोरी लाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ब्रजेश ने न केवल अपने लिए बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी गाँव में सराहनीय काम किया है। गाँव,घर परिवार और समाज में नाम भी रोशन कर रही हैं । अब वह कई प्रदेशों का भ्रमण कर चुकी हैं, जो उनके लिए किसी सपने से कम नहीं। ज़िला कलेक्टर, राजीविका मिशन के प्रदेश स्तर के अधिकारी और नाबार्ड की टीम उनका कामकाज देख चुकी है।"
राजीविका मिशन (राजस्थान ग्रामीण आजीविका मिशन) ने ब्रजेश को 15,000 रुपये के अनुदान से मदद की। किशोरी लाल ने कहा, इसके बाद इसने उन्हें पाँच लाख रुपये का कर्ज़ दिया, जिसे उन्होंने पूरा चुका दिया है।
राजीविका मिशन ग्रामीण महिलाओं को सहायता प्रदान करता है जो एसएचजी की सदस्य हैं। साथ ही उन्हें राज्य और देश में मेलों और प्रदर्शनियों में ले जाकर, उनकी यात्रा, रहने और भोजन की व्यवस्था के साथ उनके उत्पादों को बेचने में मदद करता है।
राजीविका भरतपुर के जिला प्रबंधक (आजीविका एवं कौशल) हेमंत धाकड़ ने बताया कि राज्य में राजीविका के सभी उत्पाद राजसखी के नाम से अमेजन और फ्लिपकार्ट पर लिस्टेड हैं और ब्रजेश भार्गव के उत्पाद भी इनमें शामिल हैं।
“ब्रजेश के जूट उत्पाद फ्लिपकार्ट और अमेज़न पर ऑनलाइन लिस्टेड हैं।" किशोरी लाल ने कहा, ऑनलाइन उन्हें इतनी प्रतिक्रिया नहीं मिली है, लेकिन हम इंतज़ार कर रहे हैं और देख रहे हैं।
ब्रजेश को भरोसा है कि ऑनलाइन बिक्री जल्द ही रफ्तार पकड़ लेगी।
WomenEntrepreneur #rajasthan #story
More Stories