राजस्थान के धौलपुर में लगती है अनोखी पाठशाला, जिसमें शामिल होते हैं सिर्फ बकरी पालक

यहां हर गाँव में एक ‘बकरी पालक पाठशाला’ नामक स्वयं सहायता समूह काम कर रहा है। इसके अलावा कई गाँवों ने मिलकर एक ‘जागो बकरी पाठशाला’ नामक एक मंच बनाया हुआ है, जहां वो सब बकरी पालन पर चर्चा करने के लिए महीने में एक बार मिलते हैं।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   22 Feb 2023 10:18 AM GMT

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धौलपुर (राजस्थान)। राजस्थान के धौलपुर जिले के दूर-दराज के गाँवों में रहने वाले लोगों के लिए बकरियां उनकी सबसे अच्छी दोस्त साबित हुई हैं। इस जिले के कई गाँवों जैसे भमपुरा, दुर्गासी, झिरी समेत करौली, सवाई माधोपुर और दौसा जैसे निकटवर्ती जिलों की जमीन पर कुछ भी उगा पाना व्यवहारिक तौर पर असंभव है। यहां पानी की भी कमी है। ऐसे में ये लोग अपनी आजीविका के लिए बकरियों पर निर्भर हैं। आज बकरी पालन उनके लिए कमाई का एक जरिया और बेहतर जिंदगी जीने की तरफ ले जाने वाला रास्ता बन चुका है।

धौलपुर की सरमथुरा तहसील के गिरोनिया गाँव में रहने वाले 30 परिवार बकरी पालन से जुड़े हैं। उनकी आमदनी का यही एकमात्र साधन है। गाँव में रहने वाली सीमा देवी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हम सब ने साल 2008 में एसएचजी से 1.5 प्रतिशत ब्याज दर पर लोन लिया और 4000 रुपये में 16 बकरियां खरीदीं थीं। 2021 में सरमथुरा में स्थापित किया गया बकरी संसाधन केंद्र (जीआरसी) बकरी पालन और मार्केटिंग सुविधाओं का प्रशिक्षण देकर हमारी काफी मदद कर रहा है।"

गिरोनिया की रहने वाली आशा देवी ने मजाक में कहा, "बकरियां 'किसान का एटीएम' हैं।" आशा देवी के पास 50 बकरियां हैं जो उनके आर्थिक रूप मजबूत होने की तरफ इशारा करती हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन से कहा, "अगर बकरी अपनी आखिरी सांस भी ले रही होती है तो भी हम उससे पैसा कमा सकते हैं। दुकानदार इसे मटन बेचने के लिए हमसे खरीद लेते हैं।"

धौलपुर की सरमथुरा तहसील के गिरोनिया गाँव में रहने वाले 30 परिवार बकरी पालन से जुड़े हैं।

झिरी गाँव के सीताराम बरैथा के पास 95 बकरियां हैं। उनके मुताबिक बकरियों पर लगभग 15000 रुपये खर्च करने के बाद साल भर पैसा कमाया जा सकता है। बरैथा कहते हैं, "अगर कोई 10 बकरियां खरीदने के लिए कुछ हजार रुपये का कर्ज लेता है, तो भी वह एक साल के भीतर उस कर्ज को चुका देता है।"

बकरी पालन के लिए राह दिखाता ग्रामीण संगठन

यहां हर गाँव में एक ‘बकरी पालक पाठशाला’ नामक स्वयं सहायता समूह काम कर रहा है। इसके अलावा कई गाँवों ने मिलकर एक ‘जागो बकरी पाठशाला’ नामक एक मंच बनाया हुआ है, जहां वो सब बकरी पालन पर चर्चा करने के लिए महीने में एक बार मिलते हैं। इन बैठकों में बेहतर तरीके से बकरी पालन करने, उनके सेहतमंद बने रहने और बीमारियों से बचाए रखने को लेकर आपस में जानकारी साझा की जाती है। गाँव के पैरा पशु चिकित्सा कर्मी इन पाठशालाओं में भाग लेते हैं और इन मामलों पर जागरूकता बढ़ाते हैं। स्वास्थ्य शिविर और टीकाकरण अभियान भी नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं।

बकरी की अर्थव्यवस्था

भामपुरा गाँव की राममूर्ति मीणा ने कहा कि बकरी साल में दो बार बच्चों को जन्म देती है और अपने जीवनकाल में लगभग आठ बार गर्भवती हो सकती है। मीना गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "एक बकरी 10 से 12 महीने की होने के बाद बिक्री के लिए तैयार हो जाती है। एक किसान को प्रति बकरी 7000 रुपये से 15,000 रुपये के बीच कुछ भी मिल सकता है।"

धौलपुर के बिजौली का एक मिल्क प्रोसेंसिंग प्लांट ग्रामीणों से बकरियों का दूध खरीदता है। वहां से कई जगहों पर इसकी सप्लाई की जाती है। भामपुरा गाँव की हरेश बाई ने गाँव कनेक्शन को बताया, " एक बकरी रोजाना लगभग 400 से 600 एमएल दूध देती है और किसान उसे 30 से 35 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बेचते हैं।" वह आगे कहते हैं, "बकरी का दूध खासकर डिहाइड्रेशन, डेंगू आदि बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अच्छा माना जाता है।" उनके पास 48 बकरियां हैं और इनसे हर साला वह तकरीबन 85,000 रुपये कमा लेते है। उन्होंने यह भी कहा कि बकरियों के दूध से बने घी का इस्तेमाल दवाओं में भी किया जाता है


हरेश बाई ने बताया, “किसानों को बकरियों को खिलाने पर ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं होती है। वे ज्यादातर दलिया और नमक के साथ बाजरा खाती हैं। अनाज के कटने के बाद उन्हें खेतों में चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। बकरियों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए किसानों को सब्सिडी दर (25 रुपये) पर एक किलोग्राम खनिज का पैकेट मिलता है। इसमें से रोजाना 100 ग्राम बकरियों को खिलाया जाना होता है।”

बेहतर बकरी पालन के लिए केंद्र

फरवरी 2021 में, धौलपुर स्थित गैर-लाभकारी मंजरी फाउंडेशन की ओर से सरमथुरा में बकरी संसाधन केंद्र (गोट रिसोर्स सेंटर) की स्थापना की गई थी। फाउंडेशन ने एचडीएफसी बैंक से 25 लाख रुपये की आर्थिक मदद से इसे स्थापित किया था। इस केंद्र पर 495 किसान पंजीकृत हैं, जिन्हें 200 रुपये की मामूली रजिस्ट्रेशन फीस पर बकरी शेड स्थापित करने, बकरियों को पालने का प्रशिक्षण, चिकित्सा और अन्य मार्केटिंग सुविधाएं देने में मदद की जाती है। इसमें बकरियों का इलाज और उनका टीकाकरण भी शामिल हैं। मंजरी फाउंडेशन ने फेडरेशन स्तर के एसएचजी के जरिए किसानों को लगभग 1.5 प्रतिशत ब्याज पर 25000 रुपये तक का लोन में मदद की है।

यहां हर गाँव में एक ‘बकरी पालक पाठशाला’ नामक स्वयं सहायता समूह काम कर रहा है।

मंजरी फाउंडेशन के सत्येंद्र सेंगर ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सरमथुरा में लगभग चार हजार किसान सीधे तौर पर या फिर किसी अन्य तरीके से केंद्र से लाभान्वित हो रहे हैं। इस केंद्र में महीने में दो बार हाट या बाजार लगाया जाता है। सैकड़ों किसान केंद्र पर आते हैं।"

मंजरी फाउंडेशन बकरी पालकों की मदद के लिए गांव से जिला स्तर तक इस पेशे से जुड़े लोगों को ट्रेनिंग दिलवाती है। पशु धन सहायक और गांवों में अन्य सहायक कर्मचारी भी किसानों की मदद करते हैं। दिसंबर 2022 में, मंजरी ने एचडीएफसी की वित्तीय सहायता से धौलपुर के 30 किसानों को 15,000 की कीमत वाली दो बकरियां मुफ्त में दीं थीं।

महिला सशक्तिकरण

गिरोनिया की कुल 21 महिलाएँ एसएचजी की बकरी पालक पाठशाला से जुड़ी हुई हैं। उनका परिवार ज्यादातर बकरी पालन पर निर्भर हैं। उन्होंने सिर्फ दस से पंद्रह हजार रुपये के शुरुआती निवेश के साथ एक या दो बकरियां खरीदी थीं और आज सालाना एक लाख रुपये तक कमाईं कर रही हैं।

धौलपुर के भगतपुरा गाँव की बद्दी बाई ने 2005 में 11 बकरियां खरीदीं थीं। उनके पास अब 59 बकरियां हैं और उनकी सालाना कमाई एक लाख रुपये है। अपनी कमाई से बद्दी बाई ने अपनी तीन बेटियों और दो बेटों को पढ़ाया और एक घर बनाया है। उन्होंने बकरी पालन शुरू करने के लिए अपने गाँव में भामिया बाबा महिला बचत समिति नामक एसएचजी से 33,000 रुपये का कर्ज लिया था। और 1.5 प्रतिशत ब्याज के साथ उसे जल्द चुका भी दिया।

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