राष्ट्रपति का फैसला बदलना किसके अधिकार क्षेत्र में आता है ?
डॉ. शिव बालक मिश्र 23 April 2016 5:30 AM GMT
उत्तराखंड में केन्द्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार ने जल्दबाजी में राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया था जबकि अगले ही दिन तो शक्ति परीक्षण होना था। महामहिम राष्ट्रपति ने परम्परा का सम्मान करते हुए हस्ताक्षर कर दिए होंगे। नैनीताल उच्च न्यायालय ने एक नई परम्परा डालते हुए महामहिम राष्ट्रपति के फैसले को उलट कर वहां पुरानी सरकार स्थापित कर दी है। अब सवाल है कल को क्या जिला न्यायालय भी या मुंसिफ़ की अदालत भी राष्ट्रपति का फैसला उलट सकेगी? यह कानून का विषय है, इसे कानून के ज्ञाता ही जानेंगे और उच्चतम न्यायालय, जहां केन्द्र सरकार ने अपील की है, अपना आदेश पारित करेगा।
नैनीताल के उच्च न्यायालय द्वारा कई मुद्दे एक साथ हल किए गए हैं और यह लम्बे समय तक बहस का विषय रहेगा। पहला मुद्दा तो यही रहेगा कि सरकार को स्थापित करने के लिए क्या राष्ट्रपति के फैसले को उलटना जरूरी था या फिर यथास्थिति में यह सुनिश्चित किया जा सकता था। उत्तर प्रदेश में एक बार गवर्नर रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त करके जगदम्बिका पाल और 17 अन्य मंत्रियों को शपथ दिला दी थी। पाल को सर्वश्री मुलायम सिंह, प्रमोद तिवारी और सुश्री मायावती का समर्थन था। विश्वास और अविश्वास की बात के बगैर वोटिंग के बाद कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री रहने दिया गया था। शायद अपने प्रकार का अकेला उदाहरण था।
पुराने समय में जब भी विवाद उठता था कि बहुमत किसके पास है तो कभी गवर्नर के दरबार में तो कभी राष्ट्रपति के सामने विधायकों की परेड कराई जाती थी। एसआर बोम्मई प्रकरण में कई बातों का फैसला माननीय उच्चतम न्यायालय ने कर दिया है। बहुमत का फैसला सदन में होगा और विधायकों की अयोग्यता का निर्णय स्पीकर करेगा। यहां पर नई परम्परा डालते हुए दोनों काम नैनीताल उच्च न्यायालय ने स्वयं कर दिए हैं इसलिए अन्तिम निर्णय उच्चतम न्यायालय में हो पाएगा, जहां केन्द्र सरकार ने अपील की है लेकिन इस भ्रमात्मक स्थिति में आम जनता को असुविधा जरूर हुई होगी। कई बार बड़ी राजनैतिक घटनाओं के पीछे छोटी बातें रहती हैं।
भारतीय जनता पार्टी में भुवनचन्द खंडूरी एक कुशल मुख्यमंत्री के रूप में काम कर रहे थे लेकिन जातीय समीकरण के चलते भगतसिंह कोश्यारी को लाया गया था। उनके मन में प्रतिस्पर्धा थी या नहीं लेकिन खींचतान तो रही। कांग्रेस ने बहुगुणा के बदले हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया और खामियाजा सामने है। पहाड़ की राजनीति एक जमाने से ब्राह्मण-ठाकुर के इर्द गिर्द घूमती रही हैं क्योंकि वहां पिछड़ी जाति के लोग नगण्य हैं और अनुसूचित संगठित नहीं हैं। आशा है जातीय समीकरण भविष्य में उठापटक के लिए जिम्मेदार नहीं बनते रहेंगे।
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