पशुओं के हरे चारे का विकल्प बन सकती है ‛नेपियर हाइब्रिड बाजरा घास'

यह एक बहुवर्षीय चारा फसल है, जिसे किसी प्रकार की जलवायु एवं मिट्टी में उगाया जा सकता है

Moinuddin ChishtyMoinuddin Chishty   3 Jun 2019 9:09 AM GMT

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पशुओं के हरे चारे का विकल्प बन सकती है ‛नेपियर हाइब्रिड बाजरा घास

जोधपुर। इन दिनों केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) में नेपियर बाजरा हाइब्रिड घास को लेकर अनुसंधान किया जा रहा है। यह एक बहुवर्षीय चारा फसल है, जिसे किसी भी प्रकार की जलवायु एवं मिट्टी में उगाया जा सकता है। थार मरूस्थल में जिन किसानों के पास सिंचाई की सुविधा है, वे भी इसको आसानी से उगा सकते हैं।

शुष्क क्षेत्रों के लिए सीओ-4, सीओ-5 जैसी किस्में ज्यादा उपयोगी हैं। इसे उगाने के लिए इसका तना या रूट स्लिपस काम में ली जाती है। एकल फसल के लिए इसको 1*1 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इस प्रकार प्रति हेक्टेयर 10,000 पौधों की आवश्यकता होती है। चारे की पौष्टिकता बढाने के लिए इसको 3*1 मीटर में लगाते हैं। बीच की जगह में खरीफ ऋतु में चवंला, सेम, तितली मटर लगाते हैं और रबी की फसल में जई या रिजका लगा सकते हैं।

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इस प्रकार लगाई गई फसल से एक वर्ष में 215 टन हरे चारा का उत्पादन मिल जाता है, जो पूरे साल उपलब्ध रहता है। हरे चारे में लगभग 13 फीसदी प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। इसकी पाचन क्षमता 60 फीसदी के करीब होती है।

प्रधान वैज्ञानिक डा. आरएन कुमावत ने बताया," काजरी में इस घास पर शोध चल रहा है। हमने 0.1 हेक्टेयर में चारा फसल का प्रदर्शन लगाया है, जो कि वर्षा आधारित जल के संग्रहण तथा सोलर पैनल द्वारा उत्पादित सौर उर्जा के इस्तेमाल से पानी एवं उर्जा की पूर्ति करता है। बूंद-बूंद तथा माइक्रो स्प्रिन्कलर पद्धति से सिंचाई की जाती है।

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एक वर्ष में नेपियर बाजरा हाइब्रिड घास की 6 कटाई की जाती है, जिससे लगभग 13 टन हरा चारा मिल जाता है और दलहनी फसल चंवला से 1.2 टन हरा चारा तथा रबी में बोई रिजका से 7 टन हरा चारा मिल जाता है। इस प्रदर्शन इकाई से 21.5 प्रति 0.1 हेक्टेयर टन हरा चारा वर्ष पर्यन्त मिलता है, जो कि दुधारू पशुओं के लिए आवश्यक हरे चारे की पूर्ति करता है। 0.1 हेक्टेयर में सोलर प्लांट लगाने का खर्च 80,000 रुपए है, जिसका जीवनचक्र करीब 25 वर्ष होता है। कोई भी किसान छत से पानी को एकत्र करके इसे लगा सकते हैं। वर्ष में 6 बार कटाई करने पर एक पौधे से लगभग 40 किलो हरा चारा मिल जाता है।"

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काजरी निदेशक डा. ओपी यादव बताते हैं," इस घास की मुख्य विशेषता है कि यह 2000 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर देने की क्षमता रखती है। एक बार लगाने के बाद 10-12 वर्षों तक दोबारा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती।


जोधपुर, पाली, बाड़मेर, नागौर, जालोर, बीकानेर, भीलवाड़ा, उदयपुर एवं चित्तौड़गढ़ के किसानों को अब तक 61,300 तनों की कटिंग्स दी जा चुकी हैं। सभी जगह कटिंग्स अच्छी तरह से सफल हुई हैं। इस साल के अप्रैल-मई महीनों में किसानों को 13,000 कटिंग्स दी जा चुकी हैं। अन्य किसान भी इसके जीवंत प्रदर्शन को देखकर प्रेरित हो रहे हैं।

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शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में गरीब, सीमान्त एवं लघु किसानों तथा भूमिहीन मजदूरों के लिए पशुपालन का कार्य एक प्रमुख व्यवसाय एवं आय का साधन है। दुधारू पशुओं के भोजन में हरा चारा एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, जिससे दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन में जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है। हरे चारे का उत्पादन पशुओं के लिए चारा खरीद रहे डेयरी उद्योग, पशुपालन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है।"

(लेखक कृषि एवं पर्यावरण पत्रकार हैं)

   

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