देश की तरक्की के लिए ज़रूरी है किसानों पर विशेष ध्यान

किसान ज़्यादा इसलिए आशावान भी थे, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए स्वयं किसानों के लिए 'एमएसपी गारंटी कानून' की अनिवार्यता की लगातार वकालत तत्कालीन केंद्र सरकार के सामने करते रहे हैं।

Dr Rajaram TripathiDr Rajaram Tripathi   2 Feb 2024 10:26 AM GMT

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देश की तरक्की के लिए ज़रूरी है किसानों पर विशेष ध्यान

'हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,

बहुत निकले मेरे अरमां फिर भी कम निकले'..

बजट 2024 के संदर्भ में मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेर देश के किसानों पर बिल्कुल सटीक बैठता है। अंतरिम बजट 2024 से सबसे ज़्यादा निराशा देश के हतभाग्य किसानों को हुई है। यूँ तो पिछले कुछ वर्षों से सरकार अन्य सेक्टरों की तुलना में कृषि और किसानों की योजनाओं और अनुदानों पर लगातार डंडी मारती आई है, किंतु यह यह बजट आगामी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले का बजट था, इसलिए देश की जनसंख्या के सबसे बड़े वर्ग किसानों ने इस बजट से कई बड़ी उम्मीदें लगा रखी थी।

बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यूं तो कई बार देश के अन्नदाता किसानों का जिक्र किया और उन्हें देश की तरक्की का आधार भी बताया, किंतु उनके बजट का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि उनके इस जिक्र का तथा किसानों को लेकर उनकी फिक्र का बजट आबंटन पर विशेष असर नहीं है।

हकीकत यह है कि कृषि से जुड़ी अधिकांश योजनाओं के बजट में इस बार निर्ममता से कटौती की गई है।

देश का किसान देश का पेट भरने के लिए प्रयास में गले तक कर्ज में डूबा हुआ है, पर बजट में कर्ज़ माफी का जिक्र तक नहीं है।

किसानों को आशा थी कि मोदी जी किसानों की नाराज़गी को दूर करने हेतु कर्ज़ माफी के साथ ही देश भर के किसानों की बहु प्रतीक्षित ज़रूरी मांग.. हरेक किसान की हर फसल को अनिवार्य रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने हेतु एक 'सक्षम न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून' की घोषणा अवश्य करेंगे। किसान ज़्यादा इसलिए आशावान भी थे, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए स्वयं किसानों के लिए 'एमएसपी गारंटी कानून' की अनिवार्यता की लगातार वकालत तत्कालीन केंद्र सरकार के सामने करते रहे हैं। और अब जबकि पिछले दस साल से गेंद उनके ही पाले में है, तो किसानों को उम्मीद थी कि शायद मोदी जी इस बार उनके हित में गोल दाग ही दें। परंतु मोदी जी ने तो गोल करने की तो बात ही छोड़िए गेंद की ओर देखा तक नहीं।


अब जरा किसानों से संबंधित कुछेक योजनाओं और उन्हें आवंटित बजट का ईमानदारी से हम बिंदुवार विश्लेषण करें।

1- पीएम किसान सम्मान निधि की राशि 6000 से बढ़ाकर 12000 करने और इसके दायरे में सभी किसानों को लाने की बात भी, जब से यह योजना लागू हुई है तब से की जा रही है। इस संदर्भ में मीडिया के आंकड़े कहते हैं कि इस योजना की शुरुआत में लगभग 13.50 करोड़ किसानों को स्वनाम धन्य प्रधानमंत्री जी के नाम से 'पीएम किसान सम्मान निधि' दिया जाना प्रारंभ हुआ था। यानी जब योजना शुरू हुई तो मानो पूर्णमासी के चंद्रमा की तरह थी, किंतु 11वीं किस्त पहुँचते पहुँचते क्रमशः घटते घटते द्वितीया के चांद की तरफ एकदम सिकुड़ के रह गई। जी हाँ इस योजना के लाभार्थियों की संख्या घटते-घटते केवल साढ़े तीन करोड़ रह गई।

सरकार ने लगातार इस योजना से बहुसंख्य किसानों को अपात्र घोषित कर बाहर का रास्ता दिखाया और इसके लाभार्थी किसानों की संख्या और इसकी राशि और किस्त दर किस्त कम होती चली गई। बहुसंख्यक किसानों को अपात्र घोषित करते हुए पहले उनके खातों में जमा की गई राशि अब कड़ाई से वसूली जारी है। इन किसानों का सम्मान भी गया और निधि भी जा रही है।

सवाल यह है कि इन लाभार्थी किसानों की सूची सरकारी विभागों ने बनाई, उनके बैंक खाते बैंक अधिकारियों ने खोले, और उनमें राशि प्रधानमंत्री जी ने डाली फिर इनमें हुई गलतियों का ज़िम्मेदार किसान कैसे हो गया? यद्यपि गत वर्ष के समान इस बार भी इस योजना के लिए 60 हज़ार करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान है, पर आगे कितने किसानों तक यह पहुँचेगी यह अभी भी पूरी तरह से तय नहीं है।

2- कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की अगर बात करें तो इसका पिछला बजट 1.25 लाख करोड़ का था, जबकि इस वर्ष का बजट 1.27 लाख रखा गया है। अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से देखें तो वर्तमान महँगाई दर और मुद्रास्फीति को देखते हुए यह बजट पिछले वर्ष के बजट से भी कम है।

3- किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए 22-23 में शुरू की गई 'मार्केट इंटरवेंशन स्कीम एंड प्राइस सपोर्ट स्कीम' के लिए 4 हज़ार करोड़ दिए गए थे। इस साल इसकी राशि और बढ़ाए जाने का अनुमान था, किंतु इस बार इस योजना के लिए राशि ही आवंटित नहीं की गई।

4- बजट का एक और दिलचस्प पहलू देखिए; पहली बात तो यह कि वित्त मंत्री ने बजट में दावा किया कि चार करोड़ किसानों को बीमा लाभ के दायरे में लाया गया। जबकि देश में लगभग 20 करोड़ किसान परिवार हैं। यानी केवल 20 फीसदी किसान बीमा लाभ प्राप्त कर पाते हैं।

दूसरी बात यह है कि प्रधानमंत्री जी के नाम पर ही घोषित इस 'पीएम फसल बीमा योजना' के बजट में भी कटौती कर की गई है। इस योजना के लिए 14,600 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है,जबकि पिछले वर्ष इसके लिए 15,000 करोड़ रुपये का था।

5- इसी तरह प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम आशा) का बजट मौजूदा वित्त साल में 2200 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से 463 करोड़ की कटौती करके, 1737 करोड़ रुपये किया गया है।

6-प्रधानमंत्री की ही किसानों के लिए एक और योजना 'पीएम किसान संपदा योजना' पर भी कैंची चली है इसके लिए 729 करोड़ का बजट प्रावधानित किये गये हैं जबकि पिछली बार 923 करोड़ रुपये था।

7-प्रधानमंत्री जी के ही नाम पर चलने वाली एक और महत्वाकांक्षी योजना 'पीएम किसान मान धन योजना' का बजट 138 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से घटाकर 100 करोड़ रुपये कर दिया है।

8- देश में शाकाहारियों के भोजन में प्रोटीन का मुख्य स्रोत हैं दालें। राज्यों में दालों के लिए सरकार ने पिछले बजट में 800 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। लेकिन इस बार इस योजना को भी बजट नहीं मिला है।

9- आश्चर्यजनक तथ्य है कि साल भर जैविक/प्राकृतिक खेती पर खूब बात और खूब सेमिनार का आयोजन होता है, पर बजट देते वक्त रासायनिक खाद पर दी जा रही सब्सिडी की तुलना में चिड़िया के चुग्गा बराबर बजट भी जैविक खेती के लिए नहीं होता। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने वाली योजनाओं के बजट में कटौती हुई है। 'प्राकृतिक राष्ट्रीय मिशन' का पिछले साल का बजट 459 करोड़ रुपये था जिसे घटाकर 366 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

जबकि रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी के लिए इस बजट में 1.64 लाख करोड़ रुपये यानी कि प्राकृतिक खेती की तुलना में लगभग 500 गुना ज़्यादा का प्रावधान किया गया है। (हालाँकि यह भी पिछले बजट में 1.75 लाख करोड़ रुपये और संशोधित अनुमान में 1.89 लाख करोड़ से लगभग 10 प्रतिशत कम है)। पोषक तत्वों के लिए इस वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित हनुमान 60 हजार करोड़ का था जबकि इस बजट में 45 हज़ार करोड़ का ही प्रावधान किया गया है।

10-खेती किसानी के उत्थान तथा ग्रामीण बाज़ार को मजबूत बनाने के लिए देश में 10 हज़ार एफपीओ गठित करने की योजना भी इस बजट में कटौती की कैंची से नहीं बच पाई है। पिछले बजट में एफपीओ के लिए 955 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, इस बार इसे भी घटाकर 582 करोड़ रुपये कर दिया है। अर्थात एफपीओ योजना भी अब सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।

(डॉ राजाराम त्रिपाठी 'अखिल भारतीय किसान महासंघ' (आईफा) के राष्ट्रीय संयोजक, ये उनके निजी विचार हैं)

Budget 2024 KisaanConnection 

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