फांसी से भी नहीं डरते बलात्कारी, इन्हें कौन सी सजा मिले

Dr SB MisraDr SB Misra   16 Nov 2016 1:09 PM GMT

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फांसी से भी नहीं डरते बलात्कारी, इन्हें कौन सी सजा मिलेसाभार: इंटरनेट

डॉ . एसबी मिश्रा

अदालत में उनका गुनाह साबित नहीं होगा और इसलिए गुनहगारों को फांसी के फंदे तक पहुंचाना तो दूर उन्हें सजा दिलाना भी सम्भव नहीं होता। लगता है प्रदेश में आपराधिक मानसिकता की महामारी फैल रही है और बहुत बार रक्षक स्वयं भक्षक बन रहे हैं यानी पुलिस वाले ही रेप का गुनाह कर रहे हैं। जब दुनिया के कुछ देशों में फांसी की सजा समाप्त करने की बातें चल रही हैं तब हमारे यहां यह सजा नाकाफी साबित हो रही है। इससे बड़ी और क्या सजा हो सकती है जिससे बलात्कारी डरेंगे। गुनाहविज्ञान के ज्ञाताओं को कुछ उपाय सोचना होगा।

जब 2012 के दिसम्बर में दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की घटना हुई तो सारा देश उद्वेलित हो गया था। संसद ने ऐसे गुनाह की सजा मौत देने का कानून पास किया था। संसद और समाज ने सोचा था कि अब बलात्कारी खौफ खाएंगे। ऐसा हुआ नहीं बल्कि लगता है बलात्कार की घटनाएं बढ़ गईं या फिर जागरूक मीडिया ने रिपोर्टिंग सघन कर दी है। यदि फांसी की सजा पर्याप्त नहीं है, तो दूसरा अचूक उपाय खोजना होगा। आखिर गुनाहगार लोग फांसी से डरते क्यों नहीं। इसका कारण है देश की न्यायिक प्रक्रिया अपनी गति से चलती है और भ्रष्ट पुलिस गुनाहगारों को सजा नहीं दिला पाती।

यौनाचरण के विषय में दो विचार धाराएं हैं, एक तो कठोर सजा की व्यवस्था जो सऊदी अरेबिया और मध्यपूर्व के दूसरे इस्लामिक देशों में प्रभावी ढंग से लागू की जाती है और दूसरी अमेरिका जैसे देशों की स्वच्छंद यौनाचार की व्यवस्था जहां यौन आचरण लड़के-लड़कियों के विवेक पर छोड़ दिया जाता है, फिर भी राक्षसी मानसिकता का इतना वर्चस्व नहीं है। भारत में हम न इधर में हैं न उधर में, जहां अमेरिकी परम्परा अपनाते हुए टीवी और सिनेमा में यौनाचरण पर दृश्य तो खुलकर दिखाते हैं परन्तु मध्यपूर्व की तरह यौन भावनाओं पर अंकुश लगाना चाहते हैं। जहां मध्यपूर्व के इस्लामिक देशों में न्यायालयों की चिन्ता रहती है कि गुनाहगार को जल्द से जल्द सजा मिले वहीं हमारे देश में चिन्ता है कहीं बेगुनाह को सजा ना मिल जाए। इसलिए न्यायिक प्रक्रिया लम्बी खिंच जाती है।

हमारे देश के राजनेताओं में भी यौनाचार के विषय में कोई स्पष्ट सोच नहीं है। हमारे वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह का कहना है कि लड़के हैं गलती हो जाती है, क्या फांसी दोगे। प्रोफेसर रामगोपाल का सोचना है कि मीडिया सरकार को बदनाम करता रहता है। यदि फांसी की सजा कुछ को दी भी जाती है तो उसका खौफ नहीं बनता। यदि बलात्कारी को चैराहे पर तड़प-तड़प कर मरने के लिए टांग दिया जाए तो क्या समाज में खौफ फैलेगा? यदि फांसी के बजाय उन्हें अंग भंग करके छोड़ दिया जाए तो शर्मिन्दगी आएगी, कहना कठिन है।

मारने की जगह एक सजा हो सकती है जलील होकर जिन्दगी भर जीने के लिए छोड़ देना। एक पौराणिक कथा है कि ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या का जब इन्द्र ने यौन उत्पीड़न किया था तो गौतम ने उसे शाप दिया था कि तुम्हारे सारे शरीर पर योनियां बन जाएं और उनमें कुष्ठ रोग हो जाए, कहीं भी तुम्हारा सम्मान न हो। इसी तरह यदि यौन उत्पीड़न करने वालों की स्पष्ट पहचान बना दी जाए तो समाज में दूर से ही दुष्कर्मी पहचाने जाएंगे, तिरस्कृत होंगे और हर क्षण उन्हें अपना अपराध याद रहेगा।

हमारे देश में कछुआ चाल से चलने वाला न्याय न तो पीडि़तों को राहत देता है और न अपराधियों को भय। आवश्यकता इस बात की है कि समाज कों संस्कारित किया जाय परन्तु उसमें बहुत समय लगेगा। जब तक भ्रष्टाचार, व्यभिचार और दुराचार के अपराधियों के लिए विशेष अदालतें नहीं होंगी और फैसला एक निश्चित अवधि में नहीं आएगा, अपराध पर अंकुश नहीं लगेगा।

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