संस्कार हीन शिक्षा से वही होगा जो हो रहा है

शिक्षक संघों और मजदूर संघों में अधिक अन्तर नहीं रह गया है और छात्रों को भी छात्र संघों के माध्यम से राजनैतिक दलों के संस्कार दिए जा रहे हैं।

Dr SB MisraDr SB Misra   28 Nov 2018 7:26 AM GMT

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संस्कार हीन शिक्षा से वही होगा जो हो रहा है

चुनाव प्रचार में लगे नेता एक दूसरे को गालियां दे रहे हैं, कीचड़ उछालते हैं, स्याही, टमाटर, अंडे, जूते और पत्थर फेंकते हैं, और अब तो मां बाप को गालियां देने पर उतर आए हैं। आचार संहिता भी पर्याप्त अंकुश नहीं लगा पाती। जिन्होंने पचास के दशक का चुनाव प्रचार देखा है उन्हें बेहद पीड़ा होती होगी।


राहुल गांधी ने उन पर जूता फेकने के लिए भाजपा को और स्याही फेंकने के लिए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सीसोदिया ने कांग्रेस और भाजपा को दोषी ठहराया था। नरेन्द्र मोदी के लिए फेंकू, लाशों का सौदागर, चोर चौकीदार, नीच, और न जाने कितने अपशब्द कहे गए। सभी उपद्रवी चाहे जिस दल के हों, शिक्षित हैं लेकिन संस्कारित नहीं हैं। संस्कार विहीन शिक्षा से असंयमित व्यवहार की ही आशा की जा सकती है।

राजनीति में शिक्षा का जितना तिरस्कार हुआ है उतना अन्यत्र कहीं नहीं। बाबू और चपरासी के लिए भी कुछ शिक्षा चाहिए होती है लेकिन मंत्री या सांसद बनने के लिए चाहे आप पास हों या फेल, चाहे निष्कासित किए गए हों या अनुचित माध्यम के प्रयोग के लिए डिग्री ही जब्त हुई हो या जेल गए हों, आप नेता बनकर देश के कर्णधार बन सकते हैं । ऐसे नेताओं के पास न शिक्षा है और न संस्कार।

भारत में शिक्षानीति और पाठ्यक्रम बनाने वाले लोग निकिता ख्रुश्चोव की विचारधारा से सम्बन्ध रखते थे। वही ख्रुश्चोव जिन्होंने यूएनओ में एक भाषण देते हुए लेक्चर पोडियम पर जूता पटक पटक कर अपना गुस्सा दिखाया था। उनके अनुगामी भारतीय नेताओं ने रेल की पटरियां उखाड़ीं, गाड़ियों जलाईं, स्कूल और दफ्तर बन्द कराए, चक्का जाम संस्कृति को जन्म दिया और कहा ''हर जोर जुल्म के टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है"। इसी परम्परा को निभाते हैं संसद और विधान सभा में जाकर और अभद्र गालियां देते हैं चुनाव प्रचार में।

आज देश में यौन उत्पीड़न, फिरौती,उगाही और मार काट की घटनाएं प्रायः सुनने में आती हैं और प्रायः अपराधी होते हैं संस्कारहीन शिक्षा पाए देश के कर्णधार नेता। नौजवानों द्वारा लूट खसोट, स्टंट ड्राइविंग, चोरी डकैती, आतंकवाद, इन सब के पीछे संस्कारों का अभाव ही रहता है।

स्कूलों में संस्कार डालने हैं तो बच्चों को प्रार्थना के लिए जाते और वहां से लौटते समय यां दोपहर का मिड्डे मील खाते समय अनुशासित ढंग से चलना या भेजन लेना, पंक्ति में बैठना और भोजन के बाद अपने बर्तन साफ करना सिखाया नहीं जाता। उस समय पता नहीं चलता लेकिन जब वे थोड़ा बड़े होते हैं और रेल टिकट की खिड़की पर धींगा मुश्ती करते हैं फिर राजनीति में आकर टिकट के लिए सिर फुटौवल करते हैं तो संस्कारों की कमी सामने आती है। संस्कार डालने वाले स्वयं संस्कारयुक्त नहीं हैं।

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शिक्षक संघों और मजदूर संघों में अधिक अन्तर नहीं रह गया है और छात्रों को भी छात्र संघों के माध्यम से राजनैतिक दलों के संस्कार दिए जा रहे हैं। ऐसे में आचार्य की खोई हुई गरिमा उसे कैसे मिलेगी यदि वह अपनी गरिमा स्वयं अर्जित नहीं करेगा। वह छात्र छात्राओं को संस्कारित कर सकेगा जब वह स्वयं आदर्श प्रस्तुत करेगा। ध्यान रहे हमारे नेता उसी समाज से निकल कर आतें हैं जो शिक्षा संस्थाएं बनाती हैं।

स्कूल या कालेज में छात्र केवल 6 घन्टे रहता है जब वह शिक्षा और संस्कार पाता है बाकी समय अभिभावकों को बच्चों की चिन्ता करनी होती है। अध्यापन के बाद अध्यापक ट्यूशन, खेती या व्यापार करता है। स्कूल में देर से पहुंचना और जल्दी चल देना सामान्य बात है। संस्कार देने का समय ही कहां है। महापुरुषों के जन्म और मृत्यु के दिनों पर छुट्टी करके उनके जीवन आदर्शों के विषय में बताया ही नहीं जाता।

Photo by Jigyasa Mishra

छात्रों के ज्ञान मूल्यांकन के साथ यदि सम्बन्धित अध्यापकों द्वारा उनके व्यवहार, चरित्र और सामूहिक जीवन को भी जोड़ा जाय तो अन्तर पड़ेगा। कापियों का मूल्यांकन तो नौकरी देने वाली संस्थाएं अलग से कराती हैं। सरकार यह सुनिश्चित कर सके कि छात्रों के साथ अध्यापक अधिकाधिक समय बिताएं तो भी अन्तर पड़ेगा। संस्कारों के लिए जरूरी नहीं कि बच्चों को मन्दिर या मस्जिद जाने के लिए मजबूर किया जाय लेकिन देश विदेश के महापुरुषों के विषय में उन्हें नित्य बताया जाना चाहिए कि किन जीवन मूल्यों के लिए वे जिए और मरे, बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण होगा।

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जिन कारणों से हमारे जीवन मूल्यों का ह्रास हुआ है उनमें शिक्षा प्रमुख है। उन कारणों कों दूर करने की आवश्यकता है। नेताओं में संस्कार डालने के लिए शिक्षा के साथ ही चुनाव प्रणाली में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। राजनीति में गिरावट के लिए किसी एक पार्टी या संगठन को दोषी नहीं माना जा सकता, अन्तर केवल डिग्री का है।

     

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