किसान आंदोलन: पंजाब में खेतों से क्यों उग रही है असंतोष की फसल

पिछले साल सालों से चल रहे किसान आंदोलन में पंजाब के किसानों की अहम भूमिका रही है; ऐसे में लोगों के मन में सवाल आता है कि देश के इतने राज्यों में पंजाब के किसान ही क्यों आंदोलन कर रहे हैं।

Arvind Kumar SinghArvind Kumar Singh   7 March 2024 11:11 AM GMT

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किसान आंदोलन: पंजाब में खेतों से क्यों उग रही है असंतोष की फसल

पंजाब खेती-बाड़ी में देश की आन-बान और शान है। पंजाब के किसानों की आय देश में सबसे अधिक है। देश में सबसे अधिक सिंचित इलाका भी पंजाब में है। पंजाबी किसानों को काफी रियायत भी राज्य सरकार देती है। एमएसपी पर पंजाब के किसानों का ही सबसे अधिक मात्रा में धान और गेहूँ खरीदा जाता है। देश में मंडी की सबसे बेहतरीन व्यवस्था भी पंजाब में ही है। लेकिन आज पंजाब की पहचान क्या बन गई है। पंजाब के किसान आंदोलन के रास्ते पर क्यों हैं।

पिछले चार सालों में दूसरी बार देशव्यापी किसान आंदोलन का नेतृत्व आखिर पंजाब के किसान क्यों कर रहे हैं। यह सवाल पिछली बार भी उठा था और उनको खालिस्तान, देशद्रोही, आंदोलन जीवी और बहुत से संबोधन मिले थे।

पहला आंदोलन जिन तीन कृषि कानूनों को लेकर 2020-21 के दौरान चला, उसकी बागडोर भी पंजाब के किसानों ने संभाली थी। 2020 में कोरोना काल के दौरान विपक्ष के विरोध के बावजूद जब सितंबर, 2020 में कृषि कानूनों को संसद में मंजूरी मिली तो सबसे पहले पंजाब के किसानों ने आंदोलन शुरू किया। तमाम अवरोधों को पार कर वे किसान दिल्ली की सीमाओं पर 25 नवंबर 2020 तक पहुँच गए।


तब सरकार को ऐसा अंदाजा था कि दो चार दिन नारेबाजी करके किसान लौट जाएंगे। पर वे लौटे नहीं। धीरे धीरे उनका आंदोलन देशव्यापी बन गया। पंजाब के साथ सबसे पहले हरियाणा के किसान खड़े हुए। इसका दायरा बाद में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र समेत कई इलाकों तक पसर गया है। 700 से अधिक किसानों की मौत के बाद 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। साथ ही एमएसपी के समाधान के लिए समिति बना कर रास्ता निकालने की बात कही। 11 दिसंबर 2021 को 378 दिनों तक चला ये आंदोलन समाप्त हुआ।

इस किसान आंदोलन की खूबी यह थी कि देश के सभी अग्रणी किसान संगठनों ने मिल कर एक साझा मंच संयुक्त किसान मोर्चा खड़ा किया। कई मौकों पर स्वामीनाथन सिफारिशों के आधार पर किसानों को सी-2 प्लस 50 प्रतिशत फॉर्मूले के आधार पर सभी फसलों को एमएसपी पर खरीद गारंटी देने का कानून बनाने की अपनी माँग को वे दोहराते रहे। 20 माह बाद पंजाब के किसानों ने ही आंदोलन का नेतृत्व संभाल लिया।

सवाल उठता है कि आखिर पंजाब के किसानों से किसे और क्यों कष्ट है। क्या उनको कष्ट है जो कृषि उपज में पंजाब का मुकाबला नहीं कर पाते, या फिर उनको कष्ट है जिनकी राजनीतिक धारा को पंजाब के किसान नकारते रहे हैं। बेशक ये राजनीतिक मुद्दे हैं, लेकिन असल बात तो यही है कि मौजूदा समीकरणों में पंजाब का किसान भी उसी तरह परेशान है जैसा तमाम सुविधाओं से विपन्न इलाकों का किसान है।

देश के कई राज्यों की तुलना में पंजाब की आबादी कम और अभी भी करीब तीन करोड़ है। पंजाब के हिस्से में सफलता की कहानियाँ भी हैं और विपन्नता की भी। देश का महज 1.53 प्रतिशत क्षेत्रफल पंजाब के हिस्से में है। पर यहाँ के हुनरमंद और मेहनती किसानों की बदौलत पंजाब अभी भी देश की खाद्य सुरक्षा की धुरी बना हुआ है। पंजाब,हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आयी हरित क्रांति ने देश को अनाज उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया।

आज दुनिया के सात सबसे बड़े गेहूँ उत्पादक इलाकों में पंजाब भी शामिल है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के बाद दुनिया का तीसरा सबसे अधिक मार्केटेबल सरप्लस गेहूँ यहाँ पैदा होता है। वहीं धान के मामले में इसका नंबर थाईलैंड के बाद दूसरा है।

किसी जमाने में लोग उदाहरण देकर पंजाब के संपन्न किसानों के बारे में बताते थे। पर आज वह बात नहीं। आज पंजाब के किसान उत्पादन ज़रूर अधिक कर रहे हैं, पर उनकी खेती की लागत बहुत अधिक बढ़ गयी है। भूजल का स्तर बहुत तेजी से घट रहा है। संपन्न किसान भी कर्जदार बन रहे हैं। मशीनीकरण ने उन पर और दबाव बना दिया है। ज़्यादातर ब्लॉक ‘डार्क जोन’ की श्रेणी में आ गए हैं।

सवाल यह है कि पंजाब इस हालत में क्यों पहुँचा है। इसके पीछे के चंद कारणों की पड़ताल अगर करें तो पता चलेगा कि खेती की बढ़ती लागत इसकी मुख्य वजह है। अंधाधुंध कृषि मशीनीकरण के चलते ट्रैक्टर स्टेटस सिंबल बनने लगा और ऐसे छोटे किसानों ने भी ट्रैक्टर खरीद कर खुद को कर्ज में डूबा लिया, जिनका काम एक जोड़ी बैल से चल सकता था। कई किसानों ने आढतियों से भारी कर्ज लिया और जमीन बेचने को मजबूर हुए।


पंजाब में करीब 10 लाख परिवार खेती पर ही आश्रित हैं। इनमें केवल 9,000 ऐसे हैं जिनके पास 50 एकड़ से अधिक ज़मीन है। 11 हज़ार किसानों के पास 25 से 50 एकड़ ज़मीन है। बाकी अधिकतर किसानों के पास चार एकड़ से कम ज़मीन हैं।

पंजाब में करीब 35 लाख हेक्टेयर में गेहूँ बोया जाता है। रबी सीजन में कुल फसल क्षेत्र में 80 फीसदी गेहूँ ही होता है। 12 फीसदी गेहूँ क्षेत्र पर पंजाब देश की कुल उपज का 20 प्रतिशत से अधिक पैदा करता है। पर धान की बात अलग है क्योंकि 1965 से पहले पंजाब में धान का क्षेत्र नहीं था। यह अलग बात है कि बासमती की लंबी प्रजातियाँ होती थीं। 1965-66 में महज 29 हज़ार हेक्टेयर इलाका धान के तहत था जो अब 28.80 लाख हेक्टेयर से अधिक पहुँच गया है। 1998 से 2018 के बीच राज्य के 18 जिलों में हर साल भूजल स्तर एक मीटर से अधिक गिरा।

राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 27 दिसंबर 2012 को माना था कि पंजाब का किसान आज भारी कर्ज में दबा है। ग्रामीण कर्जदारी 35 हजार करोड़ रुपए है।

हाल के दशकों में पंजाब ने काफी उतार चढ़ाव झेले। लंबा दौर आतंकवाद का भी देखा जिस कारण ग्रामीण पंजाब में भारी अशांति रही। 1981 से 1991 के बीच आतंकवाद में पंजाब में कई हज़ार लोग मारे गए और गिरफ्तार हुए।

लेकिन स्थिति सामान्य होने के बाद खेती बाड़ी ठीक से चलने लगी तो डगमगाने लगी। अब पंजाब में पलायन का दौर जारी है। पिछले 5 सालों में करीब दस लाख लोगों ने पंजाब छोड़ दिया, जिसमें से करीब चार लाख छात्र और बाकी श्रमिक थे। नौजवान शिक्षा रोजगार के लिए कई देशों में जा रहे हैं। हर साल करीब 29 हज़ार करोड़ रुपए यहाँ से विदेश जा रहे हैं।

हरित क्रांति के पहले पंजाब के किसानों की स्थिति देश के बाकी किसानों जैसी ही थीं। एक खुशहाल पंजाबी किसान उसे माना जाता था जिसके पास "अच्छा दूध देने वाली एक भूरी भैंस, एक जोड़ी बैल, आसानी से बिजाई कर सकने के लिए बारिश की चंद बूंदे, दही बिलोने के लिए एक खनकती मटकी, गेहूँ से भरपूर अनाज घर हो।“

यह जो बातें मैं लिख रहा हूँ वह 1960 के आरंभिक दौर के पंजाब सरकार के एक विज्ञापन का हिस्सा है जिसमें सुधरे बीजों, खेती की नवीन प्रणालियों, आधुनिक कृषि उपकरणों के साथ सहकारिता की वकालत की गयी थी।

लेकिन यह पंजाब बदलता चला गया। आज पंजाब भारत का इकलौता ऐसा राज्य है जिसकी कुल कृषि भूमि का 99.9 प्रतिशत सिंचित है। सबसे अधिक ट्रैक्टर और कृषि मशीनरी पंजाब में है। प्रति हेक्टेयर गेहूँ उत्पादकता या दूसरी फसलों की उत्पादकता में अभी भी पंजाब और हरियाणा की बादशाहत कायम है। देश की 1.53 प्रतिशत ज़मीन पंजाब के पास है जिस पर पंजाब के किसान देश का 18 प्रतिशत गेहूँ, 12 प्रतिशत धान और चार प्रतिशत कपास पैदा करते है। वे केंद्रीय पूल में 38 फीसदी गेहूँ और 29 प्रतिशत धान का योगदान देते हैं।

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